Sunday 8 November 2015

( १ ) - गौ - चिकित्सा .थनरोग।

( १ ) - गौ - चिकित्सा .थनरोग।

थनैली ( सांडू रोग )
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यह बिमारी गाय- भैंस के स्तनों की बिमारी जो दूध देने वाले पशुओ को होती हैं , इसमें पशु का थन और थन का ऊपरी भाग सूजन आ जाती हैं । दर्द इतने ज़ोरों से होता हैं कि रोगग्रस्त पशु अपने थन को छूने तक नही देता । स्तन का रंग लाल हो जाता हैं ।थनों मे दूध पानी जैसा निकलता हैं ओर फिर जम जाता हैं । थनों से दूध के छिछडें निकलने लगते हैं। बिमारी बढ़ जाने से थनों मे पीव पड़ जाता हैं । रोगी पशु इस बिमारी से अत्यधिक बेचैन रहता हैं । सर्दी आदि अनेक कारणों से थन पक जाते है अथवा उनमे सुजन आ जाती है । कभी-कभी कोई थन फूल जाता हैं अथवा कड़ा हो जाता है । कभी -कभी थन चमकीले लाल रंग के हो जाते हैं तो कभी- कभी उन पर लाल लकीरें दिखाई देती हैं । रोगी पशु मे बुखार के लक्षण भी पाये जाते हैं ।

१ - औषधि - अरण्डी का तैल चार बार कपड़े मे छानकर गरम करके पशु के थन मे धीरे- धीरे मालिश करने से रोग दूर होते है।

२ - औषधि - दही आधा किलो और गुड एक पाव सुबह- सायं खिलाना भी लाभकारी हैं ।

३ - औषधि - गाय का घी एक पाव , कालीमिर्च आधा छटाक और नींबू का रस एक छटाक लें । इन तीनों को एक ही साथ मिलाकर पिलायें , लाभप्रद हैं ।

४ - पोस्ता का फल तथा नीम की पत्ती की भाप देना भी लाभप्रद हैं ।

५ - गन्धक की धूनी देने से भी लाभ होता हैं ।


२ - - थन फटना
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कारण व लक्षण - कभी - कभी जब अधिक ठण्ड पड़ती हैं और हवा भी अत्यन्त ठंडी चलती हैं तब अक्सर मादा पशु के थन फट जाते हैं । कभी - कभी दूध पीते बच्चे भी थन काट लेते हैं । भैंसों के कीचड़ में बैठने के कारण थन फट जाते है । तार लग जाने पर भी थन फट जाते हैं । गौशाला में गन्दगी और गढ़नेवाली जगह में बैठने के कारण भी थन फट जाते हैं ।

१ - औषधि - कोष्टा ४ नग , गाय के मक्खन या घी २४ ग्राम , कोष्टे को जलाकर , घी या मक्खन में मिलाकर , मरहम बनना चाहिए । फिर रोगी पशु के कटे हुए थन में दोनों समय, आराम होने तक , लगाना चाहिए । अगर दूधारू पशु हो , तो निकालने के पहले और बाद में , दोनों समय आराम होने तक यह मरहम लगाया जाय। इससे अवश्य आराम आयेगा ।

२ - औषधि - मधुमक्खियों के छत्ते का मोमदेशी १२ ग्राम , गाय का मक्खन या घी १२ ग्राम , दोनों को मिलाकर , गरम करके , मरहम बना लें । फिर रोगी के फटे हुऐ थन को दोनों समय , आराम होने तक , लगाया जाय ।

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३ - थन की सूजन
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कारण व लक्षण - दूधारू पशुओं का दूध निकालते समय मनुष्य को वायु सरता है तो यह रोग उत्पन्न हो जाता है । दूध निकालते समय जब वायु सरता हो तो उस समय थोड़ी देर हाथ से थन को छोड़ देना चाहिए । भैंसों को कीचड़ आदि में फुंसियाँ हो जाती हैं । दूधारू पशुओं के थनों में फुन्सियाँ हो जाती हैं । कभी - कभी वे पक भी जाती हैं और उनसे रक्त या पीप बहता रहता है । दूध निकालते समय मादा पशु के थनो में दर्द होता है ।

१ - औषधि - हल्दी १२ ग्राम , सेंधानमक ९ ग्राम , गाय का घी ३६ ग्राम , सबको महीन पीसकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु को दोनों समय, दूध निकालने के पहले और दूध निकालने के बाद , अच्छा होने तक ,लगायें ।

२ -औषधि - रोगी मादा पशु के थनो में नीम के उबले हुए गुनगुने पानी सें सेंकना चाहिए । सेंककर दवा लगा दी जाय ।

३ - औषधि - तिनच ( काला ढाक ) की अन्तरछाल को छाँव में सुखाकर, बारीक कूटकर, पीसकर तथा कपडें में छानकर १ ० ग्राम , पाउडर और १२ ग्राम गाय का घी , में मरहम बनाकर , रोगी पशु को , दोनों समय , अच्छा होने तक लगाना चाहिए ।
टोटका -:-
आलोक -:- कभी - कभी थनों में से ख़ून निकलने लगता है। ऐसी दशा में नीचे लिखा उपाय करना चाहिए ।

१ - औंधी जूती पर दूध की धार मारनी चाहिए और थन को दूध से पूरा- पूरा ख़ाली करना चाहिए ।

२- थन को रोज़ाना दोनों समय पत्थरचटा की धूनी देनी चाहिए।

३ - कोष्टा १० नग, गाय का घी २४ ग्राम , कोष्टे को जलाकर , महीन पीसकर , कपड़े से छानकर , घी में मिलाकर , दूध निकालने के पहले और दूध निकालने के बाद , दोनों समय लगाना चाहिए ।


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४ -
थन में दाह
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कारण व लक्षण - यह रोग दूधारू पशु को अधिक होता हैं । मादा पशु जब बच्चा जनता है , तो कमज़ोर हो जाता हैं । उसके दूग्धकोष में दूग्धउत्पादन की क्रिया ज़ोरों से होने लगती है । ऐसी हालत में कमज़ोर मादा पशु के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता हैं । मादा पशु गंदी जगह में बैठनें , उठनें , ख़राब हवा लगने और असमय में दूध दुहने से तथा दूग्ध- कोष में अचानक मार लगने से , यह रोग उत्पन्न होता है ।
लक्षण - मादा पशु का दूग्ध सूजकर लाल हो जाता है । पहले तो थनो में से दूध कम निकलता है , कुछ समय बाद थनों से सड़ी और गन्दी दुर्गन्ध आती है । छिबरेदार दूध निकलता है । कभी - कभी पीव और रक्त के गठिये भी निकलते हैं ।रोगी पशु अपने पिछले पाँव फैलाकर खड़ा रहता है । वह अधिक समय बैठ नहीं सकता । पशु को बुखार भी अधिक रहता है ।

१ - औषधि - दूध निकालते समय पूरा - पूरा दूध निकाला जाय और फिर बाद में थनो पर गाय का घी मला जाय ।

२ - औषधि - नीम के उबले हुऐ गुनगुने पानी से रोगी पशु के दूग्धकोष को दोनों समय , आराम होने तक , सेंका जाय और फिर नीचे लिखें लेप किये जायें । आँबाहल्दी २४ ग्राम , फिटकरी १२ ग्राम , गाय का घी ४८ ग्राम , दोनों को महीन पीसकर , छानकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु के आवडे मे , दोनों समय आराम होने तक लेप करें
३-औषधि - नयीकन्द ( कटूनाई ) ६० ग्राम , गाय का घी ६० ग्राम , नयी कन्द को महीन पीसकर , छानकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु को , दोनों समय , आराम होने तक ,लेप किया जाय ।

आलोक -:- रोगी पशु को बाँधने के स्थान पर नर्म घास या रेत बिछायी जायँ ।

५ - थनेला रोग
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१ - औषधि - गाय के थन में गाँठ पड़ जाना व थन मर जाना एेसे मे । अमृतधारा १०-१२ बूँद , एक किलो पानी में मिलाकर ,थनो को दिन मे ३-४ बार धोयें यह क्रिया ५ दिन तक करे । और गाय को एक मुट्ठी बायबिड्ंग व चार चम्मच हल्दी प्रतिदिन देने से लाभ होगा ।एक मसरी की दाल के दाने के बराबर देशी कपूर भी खिलाऐ ।

२ - औषधि - थनेला- सीशम के मुलायम पत्ते लेकर बारीक पीसकर सायं के समय थनो पर लेप करें और प्रात: २५० ग्राम नीम की पत्तियाँ १ किलो पानी में पकाकर जब २५० ग्राम रह जाये तो पानी को सीरींज़ में भरकर थन में चढ़ा दें ।और थन को भींचकर व दूध निकालने के तरीक़े से थन को खींचें तो अन्दर का विग्रहों बाहर आयेगा। ऐसी क्रिया को प्रात: व सायं १००-१०० ग्राम पानी बाहर -भीतर होना चाहिए ।

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६ - थन का फटना व कटने पर ।
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१ - औषधि - भाभड़ का पूराने से पूराना बाण ( रस्सी ) को जलाकर भस्म कर लें, और नौनी घी ( ताज़ा मक्कखन ) में भस्म को मिलाकर मरहम तैयार हो गया है , अब दूध निकालकर थन धोकर मरहम को लगाये , नित्य प्रति लगाने से जल्दी ही ठीक होगा ।

२ - थन फटना ( थानों में दरारें पड़ना ) रूमीमस्तगीं असली - ३ ग्राम , शुद्ध सरसों तैल -२० ग्राम , जस्त - १० ग्राम , काशतकारी सफेदा -२० ग्राम , सिंहराज पत्थर - १० ग्राम , पपड़ियाँ कत्था -५ ग्राम ।
रूमीमस्तगीं को सरसों के के तैल में पकाने लेवें । और बाक़ी सभी चीज़ों को कूट पीसकर कपडछान कर लें फिर पके हूए सरसों के तैल में मिलाकर मरहम बना लें ।
दूध निकालने के बाद थनो को धोकर यह

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७ - गाय की बीसी उतरना
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१ - कारण व लक्षण -- गाय के जड़ ,बाॅख पर व उससे ऊपर के हिस्से में सूजन आकर लाल हो जाता है यह बिमारी गर्भावस्था में अधिक होती है । बाॅख के ऊपर का हिस्सा पत्थर जैसा हो जाता है । और दुखता भी है , और बाॅख बड़ा दिखाई देता है ।
गर्म पानी में आवश्यकतानुसार नमक डालकर घोले और कपड़े से भिगोकर सिकाई करें और पानी के छबके मार दें । सिकाई करके ही ठीक होगा , सिकाई के बाद सरसों का तैल लगा कर छोड़ देवें । यदि गाय दूधारू है तो दूध निकालने के बाद सिकाई तैल लगायें ।

२ - एक ईंट को तेज़ गरम करके ऊपर को उठाकर थन से तेज़ धार मारे, ईंट पर दूध पड़ते ही जो भाप निकलेगी उससे ही बीसी ठीक होगी और गाय को मिठा न दें

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८ - दूध में ख़ून का आना ।
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१ - दूध में ख़ून आना,बिना सूजन के -- सफ़ेद फिटकरी फूला २५० ग्राम , अनारदाना १०० ग्राम , पपड़ियाँ कत्था ५० ग्राम , कद्दू मगज़ ( कद्दूके छीले बीज ) ५० ग्राम ,फैड्डल ५० ग्राम ,
सभी को कूटपीसकर कपडछान कर लें । ५०-५० ग्राम की खुराक बनाकर सुबह-सायं देने से ख़ून आना बंद हो जाता है ।
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९ - डौकलियों दूध उतरना ।
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१ - डौकलियों दूध उतरना ( थोड़ी -थोड़ी देर बाद पवसना,( दूध उतरना ) एक बार में पुरा दूध नहीं आता ) रसकपूर -१० ग्राम , टाटरी नींबू - ३० ग्राम , जवाॅखार -३० ग्राम , फरफेन्दूवाँ - ५० ग्राम , कूटपीसकर कपडछान करके १०-१० ग्राम की खुराक बना लेवें । १० ग्राम दवा केले में मिलाकर रोज खिलाए ।

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१० - निकासा ।
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कारण व लक्षण - निकासा में थनो व ( ऐन - जड ) बाँक में सूजन आ जाती हैं ।

१ - सतावर -१०० ग्राम ,फरफेन्दूवाँ -१०० ग्राम , कासनी-१०० ग्राम ,खतमी- ५० ग्राम , काली जीरी -५० ग्राम , कलौंजी -३० ग्राम , टाटरी -३० ग्राम कूटपीसकर छान लेवें ।
इसकी दस खुराक बना लेवें । और एक किलो ताज़े पानी में मिलाकर नित्य देवें ।

२ - औषधि - निकासा- निकासा मे कददू को छोटे - छोटे टुकड़ों में काटकर गाय- भैंस को खिलाने से भी बहुत आराम आता है ।


३ - गाय- भैंस व अन्य पशु का बुखार न टूटने पर -- ऐसे मे खूबकला २०० ग्राम , अजवायन २०० ग्राम , गिलोय २०० ग्राम , कालीमिर्च २० दानें , बड़ी इलायची ५० दाने , कालानमक ५० ग्राम , सभी दवाईयों को कूटकर ढाई किलो पानी में पकाकर जब १ किलो पानी शेष रहने पर छानकर २००-२००ग्राम की पाँच खुराक बना लें । और सुबह -सायं एक-एक खुराक देवें , केवल पाँच खुराक ही देवें ।

४ - गाय -भैंस के थनो में सूजन व रक्त आना ( निकासा )--- ऐसे में गाय थन को हाथ नहीं लगाने देती , और दूध सूख जाता है । एैसे में आक़ ( मदार ) के ढाई पत्ते तोड़कर उनका चूरा करके गुड़ में मिला लें और एक खुराक बना लें , पशु को खिला दें , यदि आवश्यकता पड़ें तो दूसरी खुराक दें ।

५ -गाय-भैंस का थन के छोटा होजाना-- १किलो नींबू का रस , १किलो सरसों का तैल , आधा किलो चीनी , इन सब दवाईयों को मिलाकर छ: हिस्से करलें । नींबू रस व तैल व चीनी मिलाकर खुराक एक दिन में एक या दो बार आवश्यकतानुसार देवें ।

६ - निकासा-- में कालीजीरी १०० ग्राम पीसकर , २ टी स्पुन गुड़ में मिलाकर तीन चार दिन एक समय देने से ठीक होगा।

८ - थन छोटा होने पर-- रसकपूर १००मिलीग्राम ( रसकपूर एक ज़हर है ) इसिलिए मात्रा ठीक देनी चाहिए । एक खुराक में चावल के दाने के आधे हिस्से के बराबर खुराक बनानी चाहिए , एक केला लेकर उसे चीरकर उसमें रसकपूर रखकर पशु को खिलायें , यह दवा एक समय ५-६ दिन तक देवें ,इस औषधि को सभी प्रकार के इलाज़ के बाद अपनाये क्योंकि इस दवा के प्रयोग के बाद अन्य दवा काम नही करेगी इस दवाई का प्रयोग अति होने पर दी जाती हैं ।

११ - दूधारू पशु के थन का मारा जाना
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बच्चा पैदा होने के बाद बहुत से दूध देने वाले पशुओं के थनों से दूध नही निकलता इसी रोग को थन का मारा जाना कहते हैं । यह बहुत ही कठिन रोग हैं ।

१ - औषधि - आधा पाव कालीजीरी और आधा पाव कालीमिर्च - इन दोनो को पीसकर आधा किलो गाय का गरम घी मे मिलाकर दिन में दो बार देने से ३-४ दिनों में थन खुल जाता हैं ।


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