Saturday 7 November 2015

(३४)-३- गौ-चि०-अन्य बिमारियाँ ।

(३४)-३- गौ-चि०-अन्य बिमारियाँ ।

घमहा रोग
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कारण व लक्षण - जिस बैल को धाम ( धूप ) से कष्ट मिले उसे घमहा कहाँ जाता है इस प्रकार का बैल धूप की गर्मी बर्दाश्त नही कर पाता हैं , वह छाया मे खड़ा होना चाहता हैं । वह गर्मी महसूस होते ही झटपट पानी मे घुस जाता हैं और जल मे खड़ा रहता है और हिलता डुलता नही हैं । जिस बैल के रोम बड़े - बड़े तथा फटे से हो , उस बैल को घमहा समझना चाहिए ।ऐसा घमहा बैल कामचोर होता है अर्थात काम करने से जी चुराता हैं वह धूप लगने पर उसके मुँह से झाग आने लगते है ,उसकी आँखो से पानी बहने लगता हैं तथा उसकी साँसें तेज चलने लगती हैं ।

१ - औषधि - सामान्य पशु हेतु २५० ग्राम और बड़े पशु हेतु आधा किलो सरसों का तैल दिन मे २ बार निरन्तर ४० दिनों तक पिलाने से घमहा रोग ठीक हो जाता हैं ।

२ - औषधि - आम का पना पिलाना भी इस रोग मे लाभकारी होता हैं , यानि कच्चे आम को भूनकर उसे आधा लीटर पानी मे ख़ूब मथकर गुठली निकाल देने के बाद पशु को सुबह- सायं पिलाने से पशु ठीक होता है यह दवा ठीक होने तक देते रहे ।

३ - औषंधि - चने की सुकठी ( चने का सुखा हुआ साग ) को पीसकर पानी मे मिलाकर खिलाना भी लाभकारी सिद्ध होता हैं ।

४ - औषधि - सफ़ेद तिल २५० ग्राम , रात्रि को मिट्टी के बर्तन मे भिगोकर नित्य- प्रति सवेरे के समय निरन्तर सात दिनों तक पिलायें यह लाभप्रद होता हैं ।

५ - औषधि - प्याज़ का रस २५० ग्राम , नमक २० ग्राम , दोनो को मिलाकर सुबह- सायं घमहा रोग से पीड़ित बैल को देने से लाभ होता हैं ।



२ - कम्प व्याधि
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कारण व लक्षण - शरीर ठन्डा पड़ जाना , कम्पन्न होना , चांचल्य वृद्धि तथा मन्दाग्नि आदि 'कम्प व्याधि ' रोग के प्रमुख लक्षण हैं ।

१ - औषधि - गेरू को पानी मे घोलकर पिलाने से लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - कालीमिर्च पावडर ढाई तौला , एक किलो चावल के माण्ड मे मिलाकर तुरन्त पिलाना चाहिए ।

नोट- उपर्युक्त उपाय कम्प व्याधि मे प्रथमोपचार हैं यदि रोग की सामान्य दशा मे ये उपाय किये जाये तो सम्भवत: रोगी पशु का जीवन समाप्त होने से बच जाता हैं अन्यथा इस रोग को असाध्य ही समझना चाहिए ।


३ - तुला रोग
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यह रोग प्राय: गाय और भैंस के बच्चों को होता हैं , बच्चा एकाएक पृथ्वी पर गिर पड़ता है अपने चारों पैरो को फैला देता हैं । खडे होने की शक्ति उसमे नही रहती । इस रोग से पीड़ित पशु के रोगी बच्चे की मृत्यु तो प्राय: निश्चित ही हैं लेकिन फिर भी जबतक साँस है तबतक आस हैं के हिसाब से नीचे लिखी चिकित्सा करने से अच्छे लाभ भी मिलते हैं ।

१ - औषधि - सरसों का तैल १-१ छटाक करके दिन में १-१ पहर के बाद पिलाना चाहिए ।

२ - औषधि - नाक के ऊपर चिकने काले स्थान पर दाग देना चाहिए ।


४ - पेडू फूलना
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निम्नोदर भाग के फूल जाने पर पशुओ की श्वसन क्रिया तीव्र हो जाती हैं । मल- मूत्र त्यागने मे कष्ट होने लगता हैं । कभी- कभी साँस भी रूक- रूक कर आने लगती हैं । जिससे अन्य पेट के रोग भी बढ़ने लगते हैं । अत: पेडू फूलने के लक्षण दिखाई देते ही जल्दी से जल्दी इलाज शुरू करना चाहिए । यह रोग प्राय: गाय- बैल को ही होता हैं ।

१ - औषधि - सैंधानमक ३०० ग्राम , शोरा मीठा ६० ग्राम , पिसी सोंठ २० ग्राम , चूर्ण गन्धक ४० ग्राम , कालीमिर्च ८ नग , और पुराना गुड १५० ग्राम लेकर सभी को मिलाकर और भलीप्रकार कुटपीसकर चूर्ण बना लें । इस चूर्ण को आवश्यक मात्रा मे चावल के गरम- गरम माण्ड मे मिलाकर रोगी पशु को पिलाने से सूजन बैठ जाती हैं ।


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