Sunday 8 November 2015

४७-गौ-चि०-प्रसवकाल के रोग ।

४७-गौ-चि०-प्रसवकाल के रोग ।

१ - प्रसव वेदना ( ब्याने के समय ) के कष्ट ( दर्द ) और उपचार
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जब गाय व भैंस का प्रसव काल समीप हो और उन्हे प्रसव वेदना हो रही हो तो उस समय कुछ बातें ध्यान देने योग्य है ज़रा उन पर विचार निम्नांकित कार्य करने चाहिए ।

१ - औषधि - सरसों का तैल २५० ग्राम लेकर नाल द्वारा पशु को पिलाना चाहिए ।

२ - औषधि - बच्चा पैदा हो जाने पर गाय को २५० ग्राम गाय का घी और आधा छटाक कालीमिर्च पावडर मिलाकर पिला देना चाहिए ।
#- तदुपरान्त शीघ्र ही जेर गिराने के लिए -

- औषधि - सोंठ २ तौला , अजवायन आधा छटाक , काला नमक २ तौला और गुड २५० ग्राम का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए । इसके साथ ही कुछ गरम पानी भी पिलाना चाहिए और बाँस की पत्तियाँ भी खिलानी चाहिए ।



२ - गाय - भैंस डिलिवरी के बाद यदि जेर नहीं डालती तो उसका उपचार
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१ - औषधि - चिरचिटा ( अपामार्ग ) के पत्ते तोड़कर उन्हें रगड़कर बत्ती बनाकर गाय - भैंस के सींग व कानों के बीच में इस बत्ती को फँसा कर ,माथे के ऊपर से लेकर कान व सींगों के बीच से कपड़ा लेते हुए सिर के ऊपर गाँठ बाँध देवें , गाय तीन चार घंटे में ही जेर डाल देगी ।

२- औषधि - यदि ५-६ घंटे से ज़्यादा हो गये है तो चिरचिटा की जड़ ५०० ग्राम पानी में पकाकर , ५० ग्राम चीनी मिलाकर देने से लाभ होगा ।

३- औषधि - यदि ८-९ घण्टे हो गये है तो जवाॅखार १० ग्राम , गूगल १० ग्राम , असली ऐलवा १० ग्राम , इन सभी दवाईयों को कूटकर तीन खुराक बना लें ।१-१ घण्टे के अन्तर पर रोटी में रखकर यह खुराक देवें।

४- औषधि - यदि गाय को ७२ घण्टे बाद इस प्रकार उपचार करें-- कैमरी की गूलरी ५०० ग्राम , या गूलर की गूलरी ३०० ग्राम , अजवायन १०० ग्राम , खुरासानी अजवायन ५० ग्राम , सज्जी ७० ग्राम , ऐलवा असली ३० ग्राम , इन सभी दवाओं को लेकर कूटकर ५०-५० ग्राम की खुराक बना लें । ५०० ग्राम गाय के दूध से बना मट्ठा ( छाछ ) में एक उबाल देकर दवाईयों को मट्ठे में ही हाथ से मथकर पशु को नाल से दें दें । बाक़ी खुराक सुबह -सायं देते रहे ।


३ - जेर ( बेल ) डालने के लिए ।
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१ - औषधि - डिलिवरी के बाद जब गाय का बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो जाये , तब गाय का दूध निकाले और उसमें से एक चौथाई दूध को गाय को ही पीला दें ,और बाद मे बाजरा , कच्चा जौं , कच्चा बिनौला , आपस में मिलाकर गाय के सामने रखें इस आनाज को खाने के २-३ घंटे के अन्दर ही गाय जेर डाल देगी और उसका पेट भी साफ़ हो जायेगा ।



४ - रोग - गाय के ब्याने के बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का
शरीर जूड़ जाने पर ।
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१ - औषधि - अलसी के बीज १५० ग्राम को कढ़ाई में भूनकर , १५० ग्राम गुड में मिलाकर गाय को खिलाने से वह गाय जो अकड़ गयी थी वह खड़ी हो जायेगी तीसरे दिन फिर से एक खुराक देना चाहिए । बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का शरीर जूड़ जाने पर ।


५ - जेर का न गिरना
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यदि गर्भपात होने या गाय के ब्याने ( डिलिवरी ) होने के बाद जेर ( बेल ) अपने आप नही निकले तो मीठे तिलों का तैल , नीम का तैल या किटाणु नाशक दवा हाथो मे कुहनी तक खुब चुपड़कर - फिर मादा पशु की बच्चेदानी मे हाथ डालकर छोटे-छोटे टुकड़ों को सावधानी से खींचकर निकाल लेना चाहिए । किन्तु यह कार्य करने से पुर्व कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए - एक तो यह की जेर निकालने वाला व्यक्ति अपने हाथो के नाख़ून काटकर साफ़ कर लें । हाथो को साबुन से भली प्रकार धोकर तथा उपरोक्त किटाणुनाशक तैल चुपड़कर ही पशु की योनि मे हाथ डालना चाहिए । अन्दर योनि मे हाथ डालकर यह ध्यान रखना चाहिए कि माँस के किसी ऐसे टुकड़े को जोकि - अन्दर माँस के साथ जुड़ा हुआ हो , उसे जोर से न खिंचें और न ही गर्भाशय पर किसी प्रकार की खरौंच आने दें । इस प्रकार २-३ बार मे सारी जेर निकाल दें । जेर निकालने के पश्चात योनि तो डूश क्रिया द्वारा पशु की योनि की भलीप्रकार से सफ़ाई कर देनी चाहिए । जेर निकालने के बाद नीम की पत्तियों को जल मे उबालकर गुनगुने पानी से योनि- स्थान को दिन मे दो बार धोना चाहिए । जेर को चूना डालकर ज़मीन मे दबा देना चाहिए जिससे किटाणु हवा मे न फैले ।

१ - औषधि - कडवी सौँफ ढाई तौला , गाजर के बीज ढाई तौला मूली के बीज ढाई तौला , अमलतास की छाल ढाई तौला ,छुआरे की छाल पाँच तौला , करेली के फूल ढाई तौला , काले तिल ढाई तौला , हालों के बीज ढाई तौला , उलटकम्बल ढाई तौला , गुलाब के फूल तौला , महुआफूल पाँच तौला , और पानी ४ लीटर लें ।
उक्त सब द्रव्यों को कूटकर ४ लीटर पानी में पकावें । जब १ लीटर पानी शेष रह जाये तो उतारकर साफ़ कपड़े से छान लें और उसमे आधा सेर गुड मिलाकर रोगिणी पशु को गुनगुना- गुनगुना ही पिलाये । इस दवा को पिलाने से अन्दर रूकी हुई जेर स्वत: ही निकल जायेगी ।

२ - औषधि - आॉक्सीटोसिन बी. पी .वेटनरी इन्जैकशन ( Oxytocin B.P. Vet.Inj ) जिसका प्रयोग पशु का बच्चा मर जाने के बाद प्राय: दूध निकालने हेतु किया जाता है ) का इन्जैकशन मादा पशु को लगा देने से सरलतापूर्वक जेर निकल जाती है , किन्तु यह प्रयोग किसानों का ही अनुभव है डाक्टरों का नही ।

३ - औषधि - चायपत्ति २५ ग्राम , गुड २५० ग्राम ,नमक १० ग्राम , बिना दूध डाले ही बनाई हुई चाय गुनगुना पिलाने से भी जेर सरलता से निकल जाती है । चाय की पत्ति व गुड नमक की मात्रा पशु के शरीर के अनुपात मे घटाई व बढ़ाई जा सकती हैं ।

६ - बच्चे का नार ( नाल , सुण्डी )
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बच्चा पैदा होने के एक घन्टे के उपरान्त बच्चे के नाल को काट देना चाहिए , नाल लगे स्थान से ३-४ इंच छोड़कर किटाणुरहित तेज कैंची से काट देना चाहिए । नाल काटते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि नाल पर वज़न न पड़े वरना बच्चे को तकलीफ़ महसुस होती है और नाल के फुलने की आशंका बनी रहती है । बची हुई नाल एक हफ़्ते के बाद स्वयं ही सुखकर गिर जायेगी ।

७ - प्रसूता का ज्वर ( जच्चा का बुखार )
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कारण व लक्षण - कभी - कभी गाय भैंस को बच्चा पैदा होने के बाद कोई ख़राबी हो जाने तथा गाय की बच्चेदानी में जेर निकालते समय हाथ से खरौंच वग़ैरह लग जाने अथवा किसी प्रकार की गन्दगी प्रवेश हो जाने से यह बुखार हो जाता है । इस रोग से ग्रसित गाय- भैंस सुस्त हो जाती हैं और खाना- पीना बन्द कर देती है । एक तरफ़ गर्दन डालकर पड़ी रहती हैं । बिलकुल कमज़ोर हो जाती है और कान ठन्डे पड़े रहते है ।

यह रोग विशेषकर गायों के प्रसव के तीसरे दिन होता हैं ।किन्तु इस रोग का आकस्मिक रूप से भी पशु पर आक्रमण होता हैं । पशु मे पहले बेचैनी और छटपटाहट के लक्षण प्रकट होते है । रोगी पशु इधर- उधर घुमता है और कराहता है तथा तथा अपना सिर नीचे को लटकाये रहता हैं एवं अचानक ही चैौंक पड़ता हैं । उसकी श्वास और नाड़ी की गति तीव्र हो जाती हैं । त्वचा सूखी, गरम और कड़ी हो जाती हैं । पिछले पैरों की शक्ति मे कमी आ जाती हैं । पशु उठता गिरता , लुढ़कता और फिर गिरता रहता हैं । ऐसी स्थिति मे कुछ मादा पशु शान्त बने रहते हैं और अपने सिर को पीछे की ओर घुमाये रहते हैं ।आँखे आंशिक रूप से बन्द रहती हैं तथा आँखो से गरम आँसु बहते हैं । कुछ मादा रोगी पशु बार- बार गिरकर उठने का प्रयत्न करते रहते हैं । यह रोग तेज़ी से विकसित होकर कुछ ही घन्टो मे पशु की मृत्यु का कारण बन जाता हैं ।

१ - औषधि - ५-६ दिनों तक शराब व गाय का घी १२५-१२५ मिलीलीटर मिलाकर दिन मे एकबार पिलाते रहना लाभकारी हैं ।

२ - औषधि - नमक , अजवायन , मिर्च , सौंठ , चिरायता , प्रत्येक १-१ पाव लेकर कुटपीसकर दिन मे तीन बार माण्ड के सा पिलाने से लाभ होता हैं ।

३ - औषधि - चिरायता आधा छटाँक और गुड १ पाव का काढ़ा बनाकर दिन मे १ बार देना लाभकारी होता हैं ।

४ - औषधि - पुनर्नवा का २५० ग्राम को एक किलो पानी मे पकाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से भी लाभ होता हैं ।



८ - गाय - भैंस डिलिवरी के बाद यदि जेर नहीं डालती तो उसका उपचार
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१ - औषधि - चिरचिटा ( अपामार्ग ) के पत्ते तोड़कर उन्हें रगड़कर बत्ती बनाकर गाय - भैंस के सींग व कानों के बीच में इस बत्ती को फँसा कर ,माथे के ऊपर से लेकर कान व सींगों के बीच से कपड़ा लेते हुए सिर के ऊपर गाँठ बाँध देवें , गाय तीन चार घंटे में ही जेर डाल देगी ।

२- औषधि - यदि ५-६ घंटे से ज़्यादा हो गये है तो चिरचिटा की जड़ ५०० ग्राम पानी में पकाकर , ५० ग्राम चीनी मिलाकर देने से लाभ होगा ।

३- औषधि - यदि ८-९ घण्टे हो गये है तो जवाॅखार १० ग्राम , गूगल १० ग्राम , असली ऐलवा १० ग्राम , इन सभी दवाईयों को कूटकर तीन खुराक बना लें ।१-१ घण्टे के अन्तर पर रोटी में रखकर यह खुराक देवें।

४- औषधि - यदि गाय को ७२ घण्टे बाद इस प्रकार उपचार करें-- कैमरी की गूलरी ५०० ग्राम , या गूलर की गूलरी ३०० ग्राम , अजवायन १०० ग्राम , खुरासानी अजवायन ५० ग्राम , सज्जी ७० ग्राम , ऐलवा असली ३० ग्राम , इन सभी दवाओं को लेकर कूटकर ५०-५० ग्राम की खुराक बना लें । ५०० ग्राम गाय के दूध से बना मट्ठा ( छाछ ) में एक उबाल देकर दवाईयों को मट्ठे में ही हाथ से मथकर पशु को नाल से दें दें । बाक़ी खुराक सुबह -सायं देते रहे ।


९ - जेर ( बेल ) डालने के लिए ।
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१ - औषधि - डिलिवरी के बाद जब गाय का बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो जाये , तब गाय का दूध निकाले और उसमें से एक चौथाई दूध को गाय को ही पीला दें ,और बाद मे बाजरा , कच्चा जौं , कच्चा बिनौला , आपस में मिलाकर गाय के सामने रखें इस आनाज को खाने के २-३ घंटे के अन्दर ही गाय जेर डाल देगी और उसका पेट भी साफ़ हो जायेगा ।



१० - रोग - गाय के ब्याने के बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का
शरीर जूड़ जाने पर ।
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१ - औषधि - अलसी के बीज १५० ग्राम को कढ़ाई में भूनकर , १५० ग्राम गुड में मिलाकर गाय को खिलाने से वह गाय जो अकड़ गयी थी वह खड़ी हो जायेगी तीसरे दिन फिर से एक खुराक देना चाहिए । बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का शरीर जूड़ जाने पर ।



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1 comment:

  1. Aap ne ye blog likhke lakho gau palko ki ek bahot hi badi seva ki hai.
    Blog me di gayi mahiti se muje bahot hi fayda huva hai
    Meri Gaushala me ekbar ek gaymata ko bukhar aaya tha. Bahot sare doctor ke pas sarvar karvai par koi fark na huva or gaymata mot ke muh par chali jane me der nahi thi.bukhar aisa tha ki gaymata ke tan ko chhue to thanda lage or nape to 104 se 105 digree hota tha tin dr. Ne alag alag dava ki laikin koi fark nahi bukhar kam nahi huva.rat ko sochta tha kiya karu aapka blog pahele bhi maine padhatha socha fir blog me padha rat thi ghar me hi Jo oushadhi ho vahi kam ayegi to ek upchar aapne likha tha aank ke patte ko gay ke ghee me etana garam karo ki aank ke patte bhunkar rakh hojay maine kiya or gaymata ko roti me khila diya meri gay 1 ghante me khadi ho gayi or jo char din se khaya nahi tha turant khane lagi or ji gayi yani naya janm mil gaya
    Mai aapka aapka abhar vyakt karta hun or logo ko bhi ye upchar kam lage esliye pura likha hai
    Ashokbhai Chhaiya
    9824728757

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