Monday 9 November 2015

वायुरोग- कारण, लक्षण, बचाव और चिकित्सा

कँपन रोग

कारण व लक्षण - इस रोग में पशु खड़ा रहे या बैठे रहे वह काँपता रहता हैं - तो यह रोग वायु विकार के कारण होता हैं

औषधि -
1- गेरू २ तौला पीसकर ताज़े पानी में घोलकर नाल द्वारा पिलाने से लाभकारी सिद्ध होता हैं । यह खुराक पशु की उम्र के हिसाब से घटा- बढ़ा लेनी चाहिए ।

2- सरसों का तेल २५० ग्राम , सोंठपावडर २० ग्राम , एक साथ मिलाकर देने पर काफ़ी लाभ कारी सिद्ध होता हैं ।

३ - टोटका - तुम्बें ( तित्त लौकी - कडवी लौकी ) की बेल को रोगी पशु के गले में लपेटकर बाँधने से लाभकारी होता हैं ।


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४ - टनक वायु ( टनका अथवा झनका रोग )
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# - लक्षण - पशुओं को यह रोग दो प्रकार के होते हैं --

१ - थोड़ा- थोड़ा पैरो में रूकावट उत्पन्न करकें पुन: ठीक हो जाता हैं ।
२ - पैरो को बहुत जोर से तानता हैं ।

यह रोग पशुओं को प्राय: पिछले पैर में होता हैं तथा इस रोग से ग्रसित पशु को बहुत देर तक चलने- फिरने के बाद ( जब रोगी पशु की पैर की नस में गर्मी उत्पन्न हो जाती हैं ) वह पुन: ठीक हो जाता हैं ।

१ - औषंधि - कलिहारी की जड़ दो तौला और चने का आटा आधा सेर लेकर दोनो को एक साथ मिलाकर पशु को खिलायें यह प्रयोग निरन्तर एक माह तक करना चाहिए तथा इस प्रयोग को केवल जाड़े के दिनों मे ही करना चाहिए ।
इस दवा को खिलाने के साथ- साथ ही एक मुर्ग़ी का अण्डें को २५० ग्राम सरसों के तेल को गुनगुना करके उसमे मिलाकर पशु के पैरो मे मालिश करनी चाहिए इससे आराम आता हैं ।
२ - औषधि - एक तौला हींग भूनीं हुई , ५०० ग्राम चने के आटे के साथ मिलाकर खिलाना भी लाभकारी होता हैं ।


५ - वात ( रसवादी ) योग
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लक्षण - पशुओं के इस रोग को "वात " तथा वायुरोग के नाम से जाना जाता हैं । इस रोग से ग्रसित पशु की गाँठें फ़ुल जाती हैं । पशु का शरीर सिकुड़ जाता हैं । उसकी छाती मे दर्द होता हैं तथा पशु लँगड़ाने लगता हैं । उसका शरीर ढीला हो जाता हैं । वात का रोगी पशु बैठना चाहता हैं किन्तु वह बैठ नही पाता हैं ।

१ - औषधि - इस रोग मे सर्वप्रथम रोगी पशु को जूलाब देना चाहिए । इसकेलिए सरसों अथवा अरण्डी का तेल आधा किलो तथा सोंठ आधा छटांक दोनो को एक साथ मिलाकर देना चाहिए । यह मात्रा बड़े पशु के लिए व छोटे पशुओं के लिए अपने विवेकानुसार देनी चाहिए ।
२ - औषधि - तारपीन का तैल व सोंठ १-१ भाग तथा सरसों का तेल १६ भाग को एकसाथ मिलाकर सूजन वाले स्थान पर मालिश करनी चाहिए ।
३ - औषधि - लाल अरण्ड की जड़ की छाल , धतुरे का पत्ता , निर्गुण्डी के पत्ते , भाँग के पत्ते १०-१० ग्राम लेकर पीसकर गुनगुना करके पशु के शरीर के सूजन वाले स्थान पर लेप करना चाहिए ।
४ - भाँग , अजवायन , सहजन की छाल , निर्गुण्डी के बीज , पलाश के बीज , सेंधानमक और कालानमक ,प्रत्येक दवा को समान मात्रा मे लेकर कुटपीसकर ,गाय के घी या अलसी के माण्ड के साथ खिलाने से लाभ होता हैं ।

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