Sunday 8 November 2015

(४८)गौ-चि०-जौंके आदि ।

(४८)गौ-चि०-जौंके आदि ।
#- हिरूडाईनी वर्ग के कृमि - जौंके।
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यह लम्बे गोल आकार के कृमि होते हैं । जोकि पशु पक्षियों के शरीर में चिपटकर उनका रक्त चूसती हैं और जबतक इन कृमियों का पेट रक्त से परिपूर्ण नही भर जाता वें उनके शरीर मे चिपटे रहते हैं व रक्त को चूसते रहते हैं । जौंक के शरीर से छुट जाने के बाद भी पशु के आक्रान्त भाग से रक्तस्राव जारी रहता हैं और पशु को रक्तलापता तथा रक्तक्षय, कमज़ोरी तथा आँखो पर जोंक लगने से अन्धापन आदि व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ।

जौंकों की मुख्यत: तीन क़िस्में होती हैं जो इस प्रकार हैं -

( १ ) एकैंथोबडेला - यह समुद्र मे पायी जाती हैं ।

( २ ) रिकोंबडेला - ताज़े पानी की जबड़ा रहित जौंकें ( जोकि मछलियों तथा मोलस्को पर आक्रमण करती हैं ।

(३ ) एरिंकोबडेला - ये जौंके पानी में भूमि पर तथा वृक्षों आदि पर भी रह सकती हैं , तथा इनके जबड़े होते हैं । ये मनुष्यों तथा पशु- पक्षियों पर आक्रमण करकें उनके शरीर पर चिपट जाती हैं ( भारतवर्ष मे पायी जाने वाली जौंकें - इसी श्रेणी की होती हैं ) इनकों दो समूहों मे बाँटा जा सकता हैं ।

ताज़े पानी की जौंकों की प्रमुख जातियाँ
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१- हिरूडीनेरिया ग्रेनुलोस ।
२- हिरूडीनेरिया मेनीलोसिस ।
३- हिरूडीनेरिया वीरीडिस ।
४- हिरूडी बीरमेनिका ।
५- डिनोबडैला फैरोक्स ।
६- लिमनैटिस निलोटिका ।
७- लिमनैटिस पैलूडा ।

दक्षिण भारत में नीलगिरी तथा पलनी पहाड़ियों में डिनोबडैला नोटैटा जाति की जौंके पाई जाती हैं ।


स्थलिय जौंकों की प्रमुख जातियाँ
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१- हीमैडीप्सा जीनैलिका -

(अ ) - पँजाब तथा उत्तर प्रदेश मे पायी जाने वाली हीमैडीप्सा जीलैनिका एजीलिस जौंके हैं ।

( ब ) - आसाम व दार्जिलिंग के क्षेत्रों में पायी जाने वाली हीमैडीप्सा जीलैनिका मोटीविडीक्स जौंके हैं ।

( स ) - नीलगिरी , केरल, मुम्बई आदि क्षैत्रों में पाई जाने वाली हीमैडीप्सा जीलैनिका कोचिनियाना जौंके हैं ।

( द ) - हीमैडीप्सा मोटाना ।

( च ) - हीमैडीप्सा सिल्वैस्ट्रिस ।

( छ ) - हीमैडीप्सा ओरनेटा , आदि ।


#- हिरूडाईनी वर्ग के कृमि - जौंके


यह लम्बे गोल आकार के कृमि होते हैं । जोकि पशु पक्षियों के शरीर में चिपटकर उनका रक्त चूसती हैं और जबतक इन कृमियों का पेट रक्त से परिपूर्ण नही भर जाता वें उनके शरीर मे चिपटे रहते हैं व रक्त को चूसते रहते हैं । जौंक के शरीर से छुट जाने के बाद भी पशु के आक्रान्त भाग से रक्तस्राव जारी रहता हैं और पशु को रक्तलापता तथा रक्तक्षय, कमज़ोरी तथा आँखो पर जोंक लगने से अन्धापन आदि व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ।

जौंकों की मुख्यत: तीन क़िस्में होती हैं जो इस प्रकार हैं -

( १ ) एकैंथोबडेला - यह समुद्र मे पायी जाती हैं ।

( २ ) रिकोंबडेला - ताज़े पानी की जबड़ा रहित जौंकें ( जोकि मछलियों तथा मोलस्को पर आक्रमण करती हैं ।

(३ ) एरिंकोबडेला - ये जौंके पानी में भूमि पर तथा वृक्षों आदि पर भी रह सकती हैं , तथा इनके जबड़े होते हैं । ये मनुष्यों तथा पशु- पक्षियों पर आक्रमण करकें उनके शरीर पर चिपट जाती हैं ( भारतवर्ष मे पायी जाने वाली जौंकें - इसी श्रेणी की होती हैं ) इनकों दो समूहों मे बाँटा जा सकता हैं ।

ताज़े पानी की जौंकों की प्रमुख जातियाँ
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१- हिरूडीनेरिया ग्रेनुलोस ।
२- हिरूडीनेरिया मेनीलोसिस ।
३- हिरूडीनेरिया वीरीडिस ।
४- हिरूडी बीरमेनिका ।
५- डिनोबडैला फैरोक्स ।
६- लिमनैटिस निलोटिका ।
७- लिमनैटिस पैलूडा ।

दक्षिण भारत में नीलगिरी तथा पलनी पहाड़ियों में डिनोबडैला नोटैटा जाति की जौंके पाई जाती हैं ।


स्थलिय जौंकों की प्रमुख जातियाँ
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१- हीमैडीप्सा जीनैलिका -

(अ ) - पँजाब तथा उत्तर प्रदेश मे पायी जाने वाली हीमैडीप्सा जीलैनिका एजीलिस जौंके हैं ।

( ब ) - आसाम व दार्जिलिंग के क्षेत्रों में पायी जाने वाली हीमैडीप्सा जीलैनिका मोटीविडीक्स जौंके हैं ।

( स ) - नीलगिरी , केरल, मुम्बई आदि क्षैत्रों में पाई जाने वाली हीमैडीप्सा जीलैनिका कोचिनियाना जौंके हैं ।

( द ) - हीमैडीप्सा मोटाना ।

( च ) - हीमैडीप्सा सिल्वैस्ट्रिस ।

( छ ) - हीमैडीप्सा ओरनेटा, आदि ।

यें समस्त जौंके पेड़ों ( वृक्षों ) पर घास तथा झाड़ियों में पायी जाती हैं ये अधिकत्तर बरसात के मौसम में उत्तपन्न हो जाती हैं ।
# - उपचार - नमक का पानी डालने से ये जौंके पशु के शरीर को छोड़ देती हैं । इन्हें पकड़कर बलपूर्वक खींचकर नही छुड़ाना । क्योंकि ऐसा करने से जौंकों के दाँत पशु के ही शरीर में टूटकर रह जाते हैं , जो कि - वहाँ घाव उत्तपन्न कर सकते हैं ।
# - ज़ौक़ शरीर से छूट जाने के बाद रक्तस्राव बन्द करने के लिए कोई उचित व उपलब्ध दवा लगा दें अथवा तेल चुपड़ दें । तदुपरान्त कोई घावनाशक मलहम लगा देना चाहिए ।

# - यदि नाक में ज़ौक़ घुस जाये तो पशु का मुँह पानी भरी बाल्टी में डुबो देना चाहिए अथवा नमक का पानी मुँह में डालना चाहिए । ( इससे परेशान होकर जोंक स्वत: ही पशु के नाक से बाहर आ जायेगी ।



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