Monday 9 November 2015

(४)- पशुओं का करसा रोग

(४)- पशुओं का करसा रोग
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कारण व लक्षण :- कही- कही उपलें व कन्डें को कोर्स कहाँ जाता हैं । इस रोग को भी " पशु करस" के नाम से जाना जाता हैं । इस रोग मे पशु करस के समान गोबर करने लगता हैं । इसी कारण रोग को करस के नाम से जाना जाता हैं ।
यह रोग बैल व भैंस को होता हैं । इसरोग से ग्रसित बैल का पेट फूल जाता हैं तथा वह छुलक- छुलक पेशाब ( मूत्रत्याग ) करता हैं अर्थात बार- बार , थोड़ी- थोड़ी मात्रा मे मूत्र त्याग करता रहता हैं ।रोगी पशु का गोबर उपलें के टुकड़े के समान कठोर व सूखा होता हैं । कभी- कभी तो रोगी पशु १-२ दिन तक गोबर व मूत्र त्याग नही करता हैं ।

#-उपचार :-

(१)- हल्दी और सोंठ १-१ छटांक लेकर चूर्ण बनाकर गाय के दो सेर दूध मे पकाकर नाल मे भरकर रोगी पशु को पिलाना चाहिए , यह विशेष लाभदायक योग हैं ।
(२) - हल्दी , साभंरनमक , और कालीमिर्च ( प्रत्येक १-१ छटांक ) लेकर इन तीनों को महीन करके आधा किलो सरसों को तैल मे मिलाकर नाल मे भरकर रोगी पशु को पिलाना चाहिए । यह एक खुराक हैं इस योग का प्रयोग निरन्तर ५-७ दिन तक करना चाहिए ।
(३) - आम की सूखी फाँक ( अमचूर ) लेकर मिट्टी के बर्तन मे पकालें और मलकर , छानकर इसमे आधा सेर गैय का घी मिलाकर रोगी पशु को पिलायें , यह योग परम लाभकारी सिद्ध हैं ।
(४) - पेट फुलने वाली दवाएँ करसा रोग में भी विषेश रूप से लाभप्रद सिद्ध हुई हैं , पेट फुलने व करसा रोग के निर्णय में किचिंत विल्मब होता हैं , इसलिए दोनो रोगों की दवा लाभकारी हैं ।
(५) - टोटका :- पीपल के वृक्ष पर उत्पन्न नीम की पत्ति आधा सेर और पुराना गुड १ छटांक , पानी मे पीसकर रोगी पशु को सेवन कराना भी लाभकारी सिद्ध होता हैं ।



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