Saturday 7 November 2015

(३६)- गौ - चिकित्सा . सर्पदंश व कुत्ते या बन्दर की

(३६)- गौ - चिकित्सा . सर्पदंश व कुत्ते या बन्दर कीट द्वारा काटने पर। .

...............अन्य प्राणियों के काटने पर चिकित्सा ..................
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१ - सर्पदंश (दीवड़ साँप के काटने पर )
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कारण व लक्षण - साँप के काटने पर रोगी पशु के शरीर में विष फैल जाता है । सूजन पहले मुँह की तरफ़ से शुरू होती है । शरीर पर चिट्टे पड़ जाते है । उनमें से कभी - कभी रक्त या पानी निकलता है । पूँछ के बाल उखड़ जाते हैं ।मुँह से लार गिरती है। लहर आती है । पशु गिर पड़ता हैं ।

१ - औषधि - छाया में सुखायी हुई शिवलिंगी २४० ग्राम , पानी १ लीटर , सुखी शिवलिंगी को महीन कूटपीसकर , पानी में मिलाकर , रोगी पशु को दिन में ३ तीन बार पिलायें । इसके बाद , नीचे लिखी दवावाले पानी से उसे नहलाया जाय । सुखी शिवलिंगी २ किलोग्राम , १५ लीटर पानी , सुखी शिवलिंगी को कूट- पीसकर , पानी में उबालकर , रोगी पशु को नहलाया जाय।इससे उस आराम मिलता है ।

२ - औषधि - गीली ( हरी ) शिवलिंगी १८० ग्राम , पानी १ लीटर , गीली शिवलिंगी को कूटपीसकर , पानी में मिलाकर पिलायें । इस दवा को ४-४ घन्टे पर पिलाते रहना चाहिए। तथा गीली शिवलिंगी २ किलोग्राम पानी १५ लीटर शिवलिंगी को कूट- पीसकर , पानी में उबाला जाय और सूजे स्थान को ख़ूब रगड़कर धोया जाय और गुनगुने पानी से रोगी पशु को नहलाया जायँ ।

३ - औषधि - गूलर की छाल २४० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ ९६० ग्राम , छाल को महीन कूटपीसकर , छाछ में मिलाकर ,१० मिनट तक लगायें । फिर निचोड़कर रोगी पशु को ४-४ घन्टे बाद , आराम होने तक , पिलाया जायँ ।

४ - औषधि - रोगी के रोग स्थान तत्काल गरम करके लाल लोहे से दाग लगाकर घाव केबाहर का सारा माँस जला देना चाहिए । जिससे विषैला माँस जलकर ज़हर फैलने से रुके और खाने की दवाईयाँ उसके बाद देवें ।

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२ - साँप का काटना
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कारण व लक्षण - साँप के काटने पर पशु के शरीर में विष फैल जाता है । उसके पैर लड़खड़ाते है । वह सुस्त रहता है । पशु के शरीर मे कम्पन व शिथिलता आती हैं,आरम्भ मे नाड़ी की गति तेज हो जाती हैं ।पशु के मुँह से विषमिश्रित झाग निकलने लगता हैं । आँखे पथरा जाती हैं और पशु का सारा शरीर काला पड़ जाता हैं आँख हरे रंग की होने लगती हैं ।पूँछ के बाल खींचने पर उखड़ जाते हैं । उसे लहरें आती हैं ।दो - तीन दिन लहरों में रोगी पशु मर जाता है ।

१ - औषधि - सफ़ेद शिरस । की अन्तरछाल ६० ग्राम , गाय का घी २४० ग्राम , कालीमिर्च २४ ग्राम , जड़ की अन्तरछाल को महीन पीसकर , कपड़े द्वारा रस निकालकर , कालीमिर्च को पीसकर गुनगुने घी में सबको मिलाकर रोगी पशु को सुबह- सायं , आराम होने तक पिलाना चाहिए ।

२ - औषधि - साँप के काटे हुए स्थान पर दागनी द्वारा लाल करके दाग लगाना चाहिए, जिससे विषैला माँस जल जायेगा । और अपामार्ग ( चिरचिटा ) की हरी छाल व सफ़ेद शिरस की अन्तरछाल के रस बराबर मात्रा में मिलाकर पिलाने से ठीक होगा ।

३ - औषधि - सर्वप्रथम पशु को जिस स्थान पर साँप ने काटा हो , उसके ऊपर थोड़ा रस्सी , सूतली अथवा किसी अन्य चींज से कसकर बाँध देना ( बन्द लगाना ) चाहिए । ताकि ख़ून का प्रवाह शरीर मे आगे जाने से रूक जाये और विष ऊपर न चढ़ सकें ।

४ - औषधि - जिस स्थान पर साँप ने काटा हो , वहाँ पर तेज चाक़ू या छुरी आदि से चीरकर ख़ून निकाल देना चाहिए । काला- काला विषयुक्त ख़ून निकल जाने के बाद उस स्थान में लाल दवा ( पोटेशियम परमैग्नेट ) भर देनी चाहिए । यदि लाल दवा तत्काल उपलब्ध न हो तो - नौसादर तथा आक का दूध मिलाकर भर देना चाहिए और जब तक विष पूरी तरह न निकल जाये , उसे बराबर भरते ही रहना चाहिए ।

५ - औषधि - हुक्के के नीचे का मैल ६ माशा , गुड १० ग्राम , और हुक्के का बासी पानी २५० ग्राम , लें । इन सबका घोल तैयार करके पीड़ित पशु को नाल द्वारा पिला देना चाहिए ।

६ - औषधि - स्प्रिट आफ अमोनिया पशु को पिलाये । इससे हृदय को शक्ति मिलती हैं तथा विष का प्रभाव भी क्षीण होता हैं । इस दवा को काटे हुये स्थान पर लगाना भी चाहिए ।

# - सर्प के काटे हुए पशु को कदापि सोने नही देना चाहिए , यदि उसे नींद आये भी तो उसको कील चुभोकर अथवा डण्डे से छेड़कर या अन्य किन्हीं उपायों के द्वारा लगातार जगायें रखना चाहिए तथा उपरोक्त उपचारादि करते रहना चाहिए । इस प्रकार के अथक प्रयासों और ईश्वर की अनुकम्पा से सर्पदंश पशु के प्राण बचने की आशा की जाती है ।

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३ - पशु द्वारा साँप की केंचुली खा जाना
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कारण व लक्षण - कभी - कभी हरी घास , सूखी घास - दाने आदि में सर्प की केंचुली गिरी होती है । पशु चारे के साथ उसे भी खा जाते हैं । ऐसे रोग में पशु को दस्त लगते है । दस्तों में बहुत बुरी गन्ध आती है । अन्य दवा देने पर भी इस रोग के दस्त बन्द नहीं होते । पशु दिनोंदिन अधिक कमज़ोर होता जाता है ।

१ - औषधि - कालीमिर्च ३० ग्राम , गाय का घी २४० ग्राम , मिर्च को महीन पीसकर , घी में मिलाकर , गुनगुना करके , रोगी को बोतल से रोज़ सुबह , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

२ - औषधि - लालमिर्च २४ ग्राम , सेंधानमक ७२ ग्राम , गुड १८० ग्राम , सबको बारीक पीसकर , गुड मिलाकर , रोगी पशु को दिन में दो बार , उक्त मात्रा में आराम होने तक , पिलाया जाय ।

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४ - पागल कुत्ते या गीदड़ व बन्दर के द्वारा काटने पर
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कारण व लक्षण - कुत्ता व बन्दर, गीदड़ पागल हो जाने पर वह दूसरे पशु को काट लेते है । इससे मुँह में लार टपकती है और पूँछ सीधी हो जाती है । ऐसा पशु पानी से दूर भागता है वह पानी की आवाज़ से भी डरता है । और पशु के द्वारा अन्य पशु को काट लेने पर या इसकी लार लग जाने पर वह पशु भी रोगी हो जाता है । तथा दूसरा पशु संक्रमित होने के तीन दिन से छ: माह के भीतर कभी भी पागल हो जाता है अधिकतर रोगी तीन दिन के अन्दर मर जाते है । पागल होने के बाद पशु जिस प्राणी के द्वारा काटा जाता है वह उसी की आवाज़ में चिल्लाता है।

१ - औषधि - सबसे पहले पशु के काँटे हुए स्थान पर तत्काल लोहे को लाल करके उस स्थान को अच्छी तरह से जलाभून देना चाहिए ,जिससे उसका ज़हर का असर तुरन्त ख़त्म हो जाये । और पशु को टीके लगवा देने चाहिए ।

२ - औषधि - हज़ारी गेन्दा का फूल १ नग , पानी २४० ग्राम , फूल को बारीक कूटपीसकर पानी में घोलकर , रोगी पशु को बिना छाने ही , तीन दिन तक , दोनों समय पिलाना चाहिए । ८ दिन तक रोज़ यह दवा पिलाते रहना चाहिए ।
३ - औषधि - लालमिर्च के बीज १० ग्राम ,गाय का घी १०० ग्राम , नमक १० ग्राम , मिर्च के बीजों को पीसकर व नमक को लेकर घी में मिलाकर मरहम बनाकर दोनों समय , ठीक होने तक लगाये ।

५ - मधुमक्खियों व तैतया ,बर्रे के द्वारा काँटे जाने पर
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कारण व लक्षण - मधुमक्खियों व तैतया व बर्रे आदि कीट द्वारा काटने पर पशु चरते समय व खुजली करते समय पशु के शरीर में किसी कीट द्वारा डंक मारने के कारण सूजन आ जाती है ।

१ - औषंधि - ऐसे काँटे हुए स्थान से डंक निकाल देना चाहिए ,और फिर गँवारपाठा ( घृतकुमारी ) के गूद्दे को निकालकर , रोगी पशु के काँटे हुए स्थान पर सुबह - सायं लगाना चाहिए ।

२ - औषधि - गाय का घी २४० ग्राम , मिश्री १२० ग्राम , मिश्री को महीन पीसकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु को दो समय , पिलाया जाय । मिश्री के स्थान पर शक्कर या गुड़ का भी प्रयोग किया जा सकता है ।

३ - नींबू का रस २४० ग्राम , शक्कर १२० ग्राम , दोनों को मिलाकर , छानकर रोगी पशु को दोनों समय , पिलाना चाहिए ।

४ - औषधि - प्याज़ का रस लगाने से भी आराम होता है , तथा आधा टी कप प्याज़ का रस पशु को पिलाना चाहिए इससे भी पशु को आराम आता है ।

५ - औषधि - जिस स्थान पर डंक मारा हो , उस स्थान पर लालदवा और पिसी हुई टाटरी मिलाकर रख देवी चाहिए तथा ऊपर से १-२ बूँद ताजा पानी टपका देना चाहिए । इस प्रयोग से ही जलन दूर होकर लाभ हो जाता हैं ।

६ - औषधि - नौसादर तथा चूना मिलाकर जहाँ डंक लगा हो उस स्थान पर लगा देने से भी तत्काल ठन्डक पड़ जाती है । इसके स्थान पर "अमोनिया फोर्ट" को भी लगा सकते हैं

७ - औषधि - जमालघोटा की गिरी नींबू के रस मे घीसकर लगा देने से इनके विष का प्रभाव नष्ट होकर आराम आ जाता हैं ।

७ - औषधि - आक की जड , लटजीरा ( अपामार्ग ) की जड , मीठा तेलिया - इन तीनों मे से जो भी वस्तु तत्काल उपलब्ध हो जाये , उसे पत्थर पर घिसकर लेप कर देने से भी शीघ्र आराम पहुँचता हैं ।



६ - शेर के हमले में पशु घायल होने पर
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कारण व लक्षण - कभी - जगंल में पशु पर शेर हमला कर देता है आैर वह घायल हो जाता है । शेर पँजे व दाँतों का पशु के शरीर पर बूरा प्रभाव पड़ता है । पँजे के घाव में सूजन आ जाती है तथा दाँतों के घाव मे पस ( मवाद ) भी पड़ जाते है जिसके कारण पशु को बड़ी पीड़ा का सामना करना पड़ता है ।

१ - औषधि - हल्दी पावडर १० ग्राम , फिटकरी पावडर १० ग्राम , नीम की पत्ती का पेस्ट ५० ग्राम , गेन्दा की पत्ती का पेस्ट ५० ग्राम , नमक ६ ग्राम , सभी को मिलाकर मरहम बना लें और घावों पर दोनों समय आराम होने तक लगायें ।

२ - औषधि - गाय का घी २०० ग्राम , गेन्दा की पत्तियों का रस २०० ग्राम , नीम की पत्तियों का रस २०० ग्राम ,कच्ची हल्दी का रस १०० ग्राम , नारियल रेशे की राख ५० ग्राम , दूबघास ( दूर्वा ) का रस १०० ग्राम , फिटकरी पावडर ५० ग्राम , सादा नमक १० ग्राम , लालमिर्च के बीज ८ ग्राम , सभी को कढ़ाई में पकाकर जब पानी जल जाय और घी शेष रह जाय तो कढ़ाई को उतारकर उसमें नारियल के रेशे की राखँ को मिक्स करके मरहम बना लेवें , रोगी पशु को सुबह - सायं आराम होने तक लगाये ।

३ - औषधि - मक्का का आटा १२० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , आटे को छानकर पानी में मिलाकर ख़ूब पकाना चाहिए । गाढ़ा होने पर उतार लेना चाहिए तथा गुनगुना होने पर पशु के ज़ख़्म पर लेप लगाना चाहिए । फिर रूई रखकर पट्टी बाँध देनी चाहिए । और ऊपर से गरम पानी थोड़ी - थोड़ी देर बाद डालते रहना चाहिए । यह क्रिया अच्छे होने तक दोनों समय तक करनी चाहिए । इससे घाव नही पकेगा और पशु को आराम आयेगा ।

# - रोगी पशु यदि चारा न खा पा रहा हो तो उसे नाल या बोतल से चावल का माँड़ या ज्वार का आटा पकाकर पतला - पतला करके पिला देना चाहिए ।


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