Monday 9 November 2015

(२६)- गौ - चिकित्सा .कानरोग ।

(२६)- गौ - चिकित्सा .कानरोग ।

१ - कान का पकना
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कारण व लक्षण - कान पर मारने या अन्य प्रकार से चोट लगने पर या स्वयं अपने आप कान पक जाते है । कभी- कभी खरोंच पड़ने से भी कान पक जाता हैं । तथा कान में फोड़ा- फुन्सी होना , कान में सूजन होना , कान में मवाद पड़ जाना , घाव होना , इन सब कारणों से रोगी पशु बार-बार कान को फड़फड़ाता रहता हैं व कानों को हिलाता रहता हैं या किसी भी वस्तु से कानों को रगड़ता रहता हैं खुजलाता रहता हैं और जिस कान में दर्द रहता है उस कान को बार- बार देखता रहता हैं ।

१ - औषधि - नीम की पत्ती ४०० ग्राम , साफ़ पानी २८२० ग्राम नीम की पत्ती को भाँग की तरह बारीक पीसकर पानी के साथ उबालना चाहिए । जब आधा पानी रह जाय तो गुनगुना होने पर पिचकारी से कान धोना चाहिए । एनिमा से भी धो सकते हैं । उबालें हुए पानी को प्रयोग में लाने से पहले छान लेना चाहिए । कान धोने के बाद रूई से घाव सुखा देना चाहिए । अगर कान में पानी रह जाय तो मुँह तथा गर्दन टेढ़ी करके पानी को निकाल देना चाहिए ।

२ - औषधि - नारियल का तैल ६ ग्राम , बेकल ( ब्रह्मपादप ) की हरी पत्तियाँ ६ ग्राम , बेकल की हरी पत्तियों को तवें पर भूनकर जला देंना चाहिए और बारीक पीसछानकर , इसके बाद बीमार पशु के कान में डाल देना चाहिए । दवा डालने के बाद रूई की डाट लगा देनी चाहिए ।

आलोक-:- नारियल का तैल डालकर फिर कान में ख़ूब ठूँसकर भर समय सुबह ,रोज़ाना ,अच्छा होने तक लगायें ।

३ - औषधि - ब्रह्म डंडी,कमर( ट्रकोलैप्सस ग्लेबेटीमा ) की पत्ती का रस निकालकर कान में १०-१५ बूँद डालकर रूई लगा दें। और ठीक होने तक रोज़ लगायें।

४ - औषधि - गर्भिणी गाय का गोमूत्र १२० ग्राम , नीला थोथा १२ ग्राम , ताज़ा गोमूत्र ठीक रहता है यदि बाँसी हो तो उसे गरम कर लें और नीला थोथा मिलाकर ( मिलाने पर झाग उठता है,उससे डरना नही चाहिए ) पिचकारी से या एनिमा से धोना चाहिए । इसमें गोमूत्र के अलावा बकरी का मूत्र भी चलता है । गर्भिणी गाय के गोमूत्र में नीला थोथा डालते ही गैस तैयार होगी । उससे डरना नहीं चाहिए । उससे डरना नहीं चाहिए ।

५ -( औषधि - कण्डैल या बधरेंडी ) रतनजोत का दूध कान में १० - १५ बूँद डालकर रूई लगा देनी चाहिए । इससे आराम होगा ।

आलोक-:- उपर्युक्त इलाज नीम के गरम पानी से धोकर किये जाने चाहिए ।

६ - औषधि - नीम की पत्तियों को उबालकर पशु के पीड़ित कान में उसकी भाप देनी चाहिए । उसी गरम पानी से कपड़ा भिगोकर धीर-धीरे कान की सफ़ाई के बाद सरसों के तेल में लहसुन पकाकर गुनगुना तेल कान में डालना चाहिए ।

७ - औषधि - गेंदा की पत्ती का रस पशु के कान में डालने से लाभकारी सिद्ध होता हैं ।

८ - औषधि - नीम का तेल या सरसों का तेल १० ग्राम , मैथिलेटिड स्प्रिट १० ग्राम , दोनों को मिलाकर ६-७ बूँदें कान में टपकाते रहना चाहिए तीन- चार बार प्रतिदिन और तेल को गुनगुना करके कान के बाहर लगाकर रूई द्वारा सिकाई कर देने से कान की सूजन में आराम आता हैं ।

९ - औषधि - अँगारो पर लोबान डालकर उसकी धूनी कान में देने से अन्दर की सूजन में आराम आता हैं ।

१० - औषधि - नीम के कोमल पत्ते और पोस्त के छिलके आधा-आधा छटांक लें । इन दोनों को लगभग २ लीटर जल में पकाकर उसमें कम्बल का टुकड़ा तर करके उससे पशु के पीड़ित कान को सेंकें तथा सुदर्शन के पत्तों का रस गुनगुनाकरके उसमे २ रत्ती अफ़ीम घोलकर सुबह- सायं दिन में दो बार कान में डालने से कान की सूजन नष्ट हो जाती हैं ।

११ - औषधि - नीम के पत्तों के पानी से कान को धोकर पोंछकर उसमें कपूर ५ ग्राम , नारियल तेल १० ग्राम , नारियल तेल को गरम करके नीचे उतारकर उसमें कपूर मिलाकर गुनगुना करके ७-७ बूँद पशु के कान में डालें व कान के बाहर चुपड़ देंने से कान की मवाद पड़ना ठीक हो जाता हैं ।

१२ - औषधि - पशु के कान को फिनाइल की पिचकारी से तथा रूई की फुरैरी से अच्छी तरह साफ़ करके सुदर्शन ( सुकदर्शन ) के पत्तों का रस निकालकर गुनगुना करके सुबह- सायं कान में डालने से ७-८ दिन में कान का बहना बन्द हो जाता हैं ।

१३ - औषधि - नीला- थोथा १ रत्ती पानी में घोलकर उसके कान को धोने से भी लाभ होता हैं ।

१४ - औषधि - निशादि तेल गुनगुना करके कान में डालते रहने से भी कान का घाव भरकर सूख जाता हैं और कर्णस्राव ( कान का बहना ) रूक जाता हैं ।

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२ - कान में सूजन हो जाना
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कारण व लक्षण - कान में मैल अधिक जमा हो जाने पर , चोट लगने या फुन्सी आदि हो जाने से कान के अन्दर सूजन हो जाती हैं , जिससे दर्द होता हैं । पशु दर्द के कारण बेचैन हो जाता हैं । बार- बार अपना पीड़ित कान फड़फड़ाता हैं अथवा पैर या खूँटे से कान को रगड़ता रहता हैं जिस ओर के कान में सूजन होती है उसे ही रगड़ता हैं और पशु उसी ओर को गर्दन घुमाकर कान की ओर देखता रहता हैं तथा गर्दन झुकाये रहता हैं ।

१ - औषधि - नीम का १० ग्राम , मैथिलेटिड स्प्रिट १० ग्राम , दोनों को मिलाकरकान में टपकावें तथा थोड़ा नीम का तेल कान के बाहरी हिस्से पर चुपड़कर रूई गरम करके कान की सिकाई करने से लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - नीम की कोमल पत्ती और पोस्त के छिलके आधा - आधा छटांक लें । इन दोनों को लगभग २ लीटर जल में पकाकर उसमें कम्बल का टुकड़ा तर करके उससे पशु के पीड़ित कान को सिकाई करें तथा सुदर्शन के पत्तों का रस गुनगुना करके उसमें २ रत्ती अफ़ीम घोलकर सुबह- सायं कान में डालें इस प्रयोग से भी कान की सूजन नष्ट हो जाती हैं ।

३ - टोटका - अँगारो पर लोबान डालकर उसकी धूनी पशु के पीड़ित कान के अन्दर धूआँ देने से भी कान की सूजन दूर होती हैं ।

# - यदि किसी कारण से कान में मवाद बहने लगे तो नीचे लिखी दवाओं का प्रयोग करने से लाभँ होता हैं -

४ - औषधि - नीम के पत्तों को पानी मे डालकर उबले हुएे गुनगुने पानी से कान को अन्दर- बाहर से धोकर , नारियल तेल गुनगुना करके उसमें कपूर मिलाकर , कान को ऊपर करके तेल को टपकायें और थोड़ा - सा तेल कान के बाहर चुपड़ देंना चाहिए ।

५ - औषधि - कान को फिनाइल की फुरैरी से साफ़ करके सुदर्शन के पत्तों का रस गुनगुना करके रोगी पशु के कान में डालने से लाभ होता हैं ।

६ - औषधि - निशादि तेल गुनगुना करके कान में डालते रहने से कान के अन्दर का घाव आदि ठीक होकर सूख जाते हैं और कान का बहना रूक जाता हैं ।


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