Saturday 8 May 2021

रामबाण :- 63 -:

रामबाण :- 63 -:

#- पाटला -

पाटला एक औषधीय वनस्पति है। आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में पाटला के गुणों के बारे में विस्तार से बताया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार पाटला के फूल बवासीर और कंजक्टीवाइटिस जैसी समस्याओं में बहुत उपयोगी हैं। इस लेख में हम आपको पाटला के फायदे, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में बता रहे हैं। यह 9-18 मी तक की ऊंचाई वाला मध्यम आकार का पेड़ होता है। आमतौर पर यह पेड़ आद्र स्थानों और पर्णपाती जंगलों में पाया जाता है। पाटला के फूलों का रंग लाल, सफ़ेद और पीला होता है और इन्हीं रंगों के आधार पर ही  पाटला की तीन प्रजातियाँ होती हैं। ये फूल सेहत के लिए लाभदायक हैं, इन फूलों के अलावा पाटला की जड़ें और छाल भी कई रोगों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं। पाटला का वानस्पतिक नाम Stereospermum chelonoides  (Linn. f.) DC. (स्टीरिओस्पर्मम् चीलोनोऑडिस)
Syn-Stereospermum suaveolens (Roxb.) DC. है। यह Bignoniaceae (बिग्नोनिएसी) कुल का पौधा है। आइये जानते हैं कि अन्य भाषाओं में इस पौधे को किन नामों से जाना जाता है। Hindi : पाढ़ल, पाडर, पारल, पडरिंगा, Sanskrit : पाटलि, पाटला, अमोघा, मधुदूती, कृष्णवृन्ता, काचस्थाली, ताम्रपुष्पी, फलेरुहा, कुम्भी पुष्पी, अम्बुवासिनी कहते है।
पाटला कषाय, तिक्त, कटु, उष्ण, गुरु, त्रिदोष-शामक, मुख्यत कफवात-शामक, सुंधित, विशद, हृद्य, अग्निदीपक, शोथहर, कण्डूघ्न तथा व्रणशोधक, दुर्गंध-नाशक, पित्तातिसार, शोफ, आध्मान, श्वास, छर्दि, सन्निपात तथा दाह-शामक है। यह अरुचि, श्वास, शोथ, रक्तदोष, छर्दि, हिक्का, अर्श, तृष्णा, आध्मान, रक्तदोष, अरोचक तथा रक्तपित्त-नाशक है। इसके पुष्प कषाय, मधुर, शीत तथा कफपित्त-शामक होते हैं।इसके फल कषाय, मधुर, तिक्त, शीत, गुरु, कण्ठ्य; वात-पित्तशामक, रक्तपित्त, हिक्का, पित्तातिसार तथा मूत्रकृच्छ्र-नाशक होते हैं। इसकी काण्डत्वक् व्रणशोधक, शोथहर, मेह, कुष्ठ, ज्वर, छर्दि तथा कण्डूनाशक है।
इसकी मूल तिक्त, कषाय, उष्ण, वेदनाशामक, रक्तशोधक, क्षुधावर्धक, मूत्रल, अश्मरीहर, कफनिसारक, हृद्य, वाजीकर, शोथहर, विषाणुरोधी, ज्वरघ्न एवं बलकारक होती है। इसके पत्र व्रणरोपक होते हैं।
 
#- सिरदर्द - अगर आप सिरदर्द से परेशान हैं तो पाटला के उपयोग से सिरदर्द से आराम पा सकते हैं। इसके लिए पाटला के बीजों को पानी में घिसकर माथे पर लगाएं। इससे दर्द से आराम मिलता है।

#- रक्ताभिष्यंद - पाटल्यादि अंजन को आँखों में लगाने से रक्ताभिष्यंद का शमन होता है।

#- नेत्राभिष्यंद - पटला के पुष्पों को मधु अथवा गन्ने के रस के साथ पीसकर कल्क बनाकर अञ्जन करने से नेत्राभिष्यन्द में लाभ होता है।

#- हिक्का। - अगर आप अक्सर हिचकी आने की समस्या से परेशान हैं तो पाटला का उपयोग करे। इसके लिए पाटला के फल एवं फूल के चूर्ण (1-2 ग्राम) को शहद के साथ सेवन करें। इसके सेवन से हिचकी रूक जाती है।

 #- हिक्का - 2-4 ग्राम पाटला पुष्प चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से हिक्का का शमन होता है।


#- एसिडिटी - एसिडिटी होने के कई कारण हैं, कभी खराब खानपान से तो कभी खाली पेट खट्टी चीजें खा लेने से भी एसिडिटी हो जाती है. एसिडिटी दूर करने के लिए एलोपैथी दवाओं की बजाय घरेलू उपायों को अपनाना चाहिए. विशेषज्ञों के अनुसार पाटला छाल का शरबत (फांट) बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से एसिडिटी में आराम मिलता है। 

 #- गुर्दे की पथरी - विशेषज्ञों का कहना है पाटला का उपयोग करना पथरी की समस्या में लाभदायक है। इसके लिए 60 मिग्रा पाटला-क्षार को भेड़ के मूत्र के साथ कुछ दिन तक नियमित सेवन करें। इससे पथरी टूट-टूट कर निकल जाती है।


#- मूत्ररोग - पेशाब करते समय दर्द और जलन होना, मूत्र मार्ग में होने वाली आम समस्याएं हैं। अगर आप इन समस्याओं से परेशान हैं तो पाटला का उपयोग करें। इसके लिए चतुर्गुण जल में पाटला भस्म (65 मिग्रा) घोलकर सात बार छान लें। इसमें तिल का तेल मिलाकर मात्रानुसार पीने से मूत्र मार्ग से संबधित बीमारियाँ नष्ट होती हैं।

#- मूत्राघात - पाला यव , पारिभद्र तथा तिल भस्म से निर्मित 10 मिलीग्राम क्षारोदक में 500 मिलीग्राम दालचीनी , 125 ग्राम छोटी इलायची तथा 500 मिलीग्राम पिप्पली चूर्ण मिलाकर सेवन करने से मूत्राघात में लाभ होता है।

#- वात विकार - वात दोष के असंतुलित या प्रकुपित होने से भी कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं। इन बीमारियों से बचाव और इनके इलाज के लिए पाटला के 10-20 मिली काढ़े में 500 मिग्रा सोंठ का चूर्ण मिलाकर पिएं। 
 
#- त्वचारोग - त्वचा रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए भी यह जड़ी बूटी काफी उपयोगी है। पाटला की छाल से सर्षप तेल को पकाकर, छानकर लगाने से त्वचा रोगों में लाभ मिलता है।

#- उपदंश - पाटला , यवक्षार तथा पारिभद्र ( फरहद ) अथवा तिलनाल से निर्मित क्षारोदक 10-20 मिलीग्राम में 500 मिलीग्राम दालचीनी , 125 मिलीग्राम एवं 500 मिलीग्राम पिप्पली चूर्ण मिलाकर पीने से उपदंश में लाभ होता है।

#- व्रणाच्छादनार्थ - पाटला के पत्तों का उपयोग घाव को ढकने हेतू किया जाता है।

#- व्रण - पाटला मूल का घनसत्व क्वाथ बनाकर , इसमें तिलतैल मिलाकर व्रण पर लगाने से व्रण रोपण होता है।

#- मेदरोग - 10-20 मिली पाटला क्वाथ में 500 मिलीग्राम चित्रक चूर्ण , 1 ग्राम शतपुष्पा तथा 65 मिलीग्राम हिंगू मिलाकर पीने से सभी प्रकार के मेदरोग का शमन होता है।


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