Saturday 29 May 2021

रामबाण योग :- 100 -:

रामबाण योग :- 100 -:

वंश ( बाँस )-

बांस एक ऐसा पेड़ है जो भारत के हर प्रांत में पाया जाता है। ये लगभग 25 से 30 मीटर तक ऊंचा होता है और इसके पत्ते लंबे होते हैं। लेकिन शायद आप ये जानकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि बांस के भी स्वास्थ्यवर्द्धक गुण होते हैं। इसके अलावा बांस के गुण रोगों के उपचार के भी काम आते हैं।
प्रोटीन, विटामिन , , बी6, मैग्निशियम, कॉपर जैसे पोषक तत्व होते हैं। जिसके कारण आयुर्वेद में बांस को कई बीमारियों के लिए उपचार के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है। बांस प्राय: गर्मी के मौसम में फूलता फलता है। वर्षा ऋतु में बादलों के तेज गर्जना से बांस के पर्वों में दरारे पड़ जाती है मादा बांस पोला या मुलायम होता है तथा नर बांस ठोस होता है। बांस की कई जातियां ऐसी हैं जिनमें पुष्प उनके जीवन-काल में एक ही बार आते हैं तथा फिर ये थोड़े-ही समय के बाद पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। कुछ जातियों में फूल प्रति 3 वर्ष में आता हैं तथा बहुत थोड़ी जाति के बांस ऐसे भी हैं, जिनमें प्रतिवर्ष आते रहते हैं।ऊपर जिस वंश के बारे में बताया गया उसके मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त एक और प्रजाति (स्वर्णवंश, पीतवंश या पीला बाँस) पाई जाती है जिसका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। Bambusa vulgaris Schrad.   (स्वर्णवंश, पीतवंश)- यह लगभग 18 मी तक ऊँचा, मध्यमाकार का होता है। इसका तना पोला या मुलायम तथा पीले रंग का होता है। इसकी पत्तियां भाला के आकार की, रेखा की हुई तथा आगे की तरफ पर नुकीली होती है। यह प्रकृति से मीठी, थोड़ी कड़वी और ठंडे तासीर की होती है। यह बुखार के लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करती है। इसकी नई शाखाएं तथा जड़ मूत्र संबंधी बीमारी में फायदेमंद होती है। बांस का वानास्पतिक नाम Bambusa bambos (Linn.) Voss (बैम्बूसा बैम्बोस) है और ये Poaceae (पोऐसी) कुल का है। बांस को अंग्रेजी में Thorny bamboo (थॉर्नी बैम्बू) कहते हैं। लेकिन भारत के अन्य प्रांतों में बांस को कई नामों से पुकारा जाता है। Sanskrit-वंश, कर्मार, तृणध्वज, शतपर्वा, यवफल, वेणु, मस्कर, तेजन, तुंगा, शुभा, तुगा, किलाटी, पुष्पघातक, बृहत्तृण, तृणकेतुक, कण्टालु, महाबल, दृढ़ग्रन्थि, दृढ़पत्र, धनुर्द्रुम, दृढ़काण्ड, कीचक, कुक्षिरन्ध्र, मृत्युबीज, वादनीय, फलान्तक, तृणकेतु, तृणराजक, बहुपर्वन्, दुरारुह, सुशिराख्य; Hindi-बाँस, कांटा बांस, कहते है।बांस प्रकृति से मीठा, एसिडिक, तीखा, कड़वा, भारी,रूखा और ठंडे तासीर का होता है। यह कफ और पित्त कम करने में सहायता करता है।  बांस के फायदे के कारण कुष्ठ, व्रण या अल्सर, सूजन, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी बीमारी, प्रमेह या डायबिटीज, अर्श या पाइलस तथा जलन कम करने में मददगार होता है। बांस का अंकुर कड़वा, मधुर, तीखा, अम्लिय या एसिडिक,रूखा, भारी, मल-मूत्र को निकालने वाला और कफ बढ़ाने वाला होता है। यह जलन, रक्तपित्त यानि नाक या कान से खून बहने की बीमारी तथा मूत्र संबंधी बीमारियों में भी फायदेमंद होता है। वंशलोचन भी कड़वा, मधुर, ठंडे तासीर का, रूखा, वात कम करने वाला, पौष्टिक, वीर्य या सीमेन बढ़ाने वाला, स्वादिष्ट, रक्त को शुद्ध करने वाला और शक्ति बढ़ाने वाला होता है। यह प्यास, खांसी, बुखार, क्षय, रक्तपित्त यानि नाक या कान से खून बहने की बीमारी , कामला या पीलिया, कुष्ठ, पाण्डु या एनीमिया,मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी बीमारी, अपच तथा जलन कम करने में मदद करता है।  यह उल्टी, अतिसार या दस्त, प्यास, जलन या गर्मी, कुष्ठ, कामला या पीलियारक्तछर्दि या खून की उल्टी, फूफ्फूस में सूजन, खाँसी, सांस लेने में तकलीफ, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी बीमारी, मुखपाक (Stomatitis),बुखार या फीवर, आँख संबंधी रोग एवं सामान्य कमजोरी (कमजोरी मे चीकू के फायदे)में फायदेमंद होता है। बांस की जड़ प्रकृति से ठंडी, विरेचक या शरीर से मल-मूत्र निकालने में मददगार, मूत्र संबंधी बीमारी में लाभकारी तथा शक्ति बढ़ाने में मददगार होती है। इसके पत्ते भी प्रकृति से ठंडे, आँख के बीमारी में लाभकारी और बुखार से राहत दिलाने में सहायता करते हैं।  बांस में मैग्निशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर, पोटाशियम, फॉस्फोरस होने के कारण ये आयुर्वेद में इसको औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है।


#- आधाशीशी दर्द - 10 मिली बांस के जड़ के रस में 500 मिग्रा कर्पूर मिलाकर, 1-2 बूंद नाक में डालने से आधासीसी का दर्द कम होता है।


#- कानदर्द - अगर सर्दी-खांसी या  किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के तौर पर कान में दर्द होता है तो बांस से इस तरह से इलाज करने पर आराम मिलता है। चौलाई की जड़, अंकोल फल, लहसुन, अदरक तथा वंश आदि द्रव्यों को पीसकर पेस्ट बना लें। फिर उसको सर्पि, तेल, वसा या फैट, मज्जा इन चार प्रकार के स्नेहों में या गौदधि ( दही ) को, गौतक्र, सुरा, चुक्र आदि के रस में पकाकर 1-2 बूंद कान में डालने से कान का दर्द कम होता है।

#- कर्णशूल - बांस के कल्क को बकरी तथा भेड़ के पेशाब या घी अथवा तेल में पकाकर, छानकर 1-2 बूंद कान में डालने से कान का दर्द कम होता है।


#- मुँह के छालें - अगर पौष्टिकता की कमी या किसी बीमारी के कारण मुँह के छालो से परेशान हैं तो बांस के पेस्ट का इस तरह से इलाज करने पर लाभ मिलता है। वंशलोचन को शहद में मिलाकर मुंह में लेप करने से मुंह के छाले मिटते हैं।


#- कण्ठरोग - अगर लंग्स में सूजन हुआ है तो बांस के गुण इसके इलाज में काम आयेगा। बांस के पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने गरारे करने से फुफ्फुस का सूजन, खांसी या गले का दर्द कम होता है।


#- सूखी खाँसी - अगर मौसम के बदलाव के कारण सूखी खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो बांस से इसका इलाज किया जा सकता है। वंशलोचन चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से कफ निकलता है तथा सूखी खांसी मिटती है।


#- दस्त व आँतों के कीडें - बांस के पत्तों, अंकुरों या तना का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से अतिसार या दस्त आंत्रकृमि या उल्टी में लाभ होता है।



#- बवासीर - अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी में  बांस का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। बवासीर के मस्सों की मालिश कर, वंशपत्र आदि के काढ़े से  मस्सों से धोने पर पाइल्स का दर्द कम होता है।

#- मधुमेह - आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि खाने का नियम और ही सोने  का। फल ये होता है कि लोग को मधुमेह या डायबिटीज की शिकार होते जा रहे हैं। वंश यव से बने खाद्य पदार्थों का सेवन डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद करता है।


#- मूत्रकृच्छ - मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। बांस इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है। वंशांकुर तथा वंश की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से बिन्दुमूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

#- मूत्रदाह - गोखरू, वंशलोचन तथा मिश्री से बने 2-4 ग्राम चूर्ण को गाय के कच्चे दूध ( धारोष्णदुग्ध ) के साथ खिलाने से मूत्रजलन की बीमारी से राहत मिलती है।


#- रज: प्रवर्तनार्थ - मासिक धर्म या पीरियड्स होने के दौरान बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- मासिक धर्म होने के दौरान दर्द होना, अनियमित मासिक धर्मचक्र, मासिक धर्म के दौरान रक्तस्राव या ब्लीडिंग कम होना या ज्यादा होना आदि।   25 ग्राम वंशपत्र तथा 50 ग्राम शतपुष्पा (सोआ) को मिलाकर काढ़ा बनाकर इसमें गुड़ मिला कर पीने से मासिक-धर्म संबंधी कष्ट कम होता है।


 #- त्वचा विकार - बाँस ( वंश ) के पत्ते तथा जड़ को पीसकर लेप करने से कुष्ठ, त्वचा विकारों या रोगों तथा दाद से राहत मिलती है।


#- घाव सूजन - बांस के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रभावित स्थान को धोने से सफेद दाग , घाव तथा सूजन में लाभ मिलता है।


#- घाव व सूजन - वंश के अंकुरों को पीसकर लेप करने से घाव तथा सूजन में लाभ होता है।


#- जीर्णज्वर - संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में वंशलोचन के फायदे से आराम मिलता है। वंशलोचन तथा गिलोय सत् को शहद में मिलाकर चटाने से जीर्ण ज्वर (पुराना ज्वर) कम होता है।

#- दाह - बांस में शीत गुण पाए जाने के कारण यह शरीर में शीतलता बनाने में भी मदद करता है। अक्सर मेनोपॉज के दौरान शरीर में बेचैनी या हॉट फ्लैशज की समस्या होती है। इसके उपयोग से शरीर में ठंडक का एहसास होता है और हॉट फ्लाशैज या गरमी के एहसास से मुक्ति मिलने में आसानी होती है।


#- विसर्प रोग - विसर्प (त्वचा रोग है जिसमें पैर, उंगली, चेहरे पर रैशेज़ निकलते हैं) एक ऐसी समस्या है जो पित्त दोष के असंतुलित होने के कारण होती है। बैम्बू में पाए जाने वाले पित्त शामक गुण इस अवस्था को रोकने या कम करने में सहयोगी होते हैं। 


#- सर्पदंश व कीटदंश - बांस के कोमल अंकुर, आंवला, कपित्थ, सोंठ, मरिच, पीपल, वचा, कूठ आदि द्रव्यों को लेकर चूर्ण बनाकर लेप, नाक से लेने पर एवं काढ़े के रुप में प्रयोग करने से मकड़ी, चूहा, सांप के काटने आदि के विषाक्त प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है।

#- सर्पदंश - बांस के कोमल अंकुर, कुटकी, पाटला बीज, सोंठ, शिरीष आदि द्रव्यों को गोमूत्र के साथ पीसकर छानकर पीने तथा, 1-2 बूंद नाक में डालने अञ्जन आदि के लिए प्रयोग करने से गोनस सर्प का काटने पर  विष के प्रभाव को कम करने में सहायता मिलती है और इन्द्रवारुणी मूल तथा वंशनिर्लेखन (बांस के अंकुर के बाहर सटा हुआ खुजलीदार आवरण) को पीसकर लेप करने से काटे हुए स्थान (कीट लूतादंशजन्य) पर उत्पन्न मस्सों (मांसांकुरों) पर लगाने से वह कम होता है।

#- आवर्त विकार - वंशपत्र का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली क्वाथ की मात्रा पीने से मासिक विकारों मे लाभ होता है।

#- ग्रंथि विसर्प - बलामूल , नागबला , हरीतकी , भोजपत्र की गाँठ , बेहडा , बांसपत्र तथा अग्निमंथ को पीसकर लेप करने से ग्रन्थि विसर्प में लाभ होता है।

#- विसर्प - सौंफ , नागरमोथा , वराहीकंद , बाँस का अँकुर , नीलपुष्प , सैरेयक , धनिया , देवदारु तथा सहिजन छाल को पीसकर लेप करने से वातज- विसर्प में लाभ होता है।

#- त्वक विकार - वंशपत्र तथा मूल को पीसकर लेप करने से कुष्ठ , त्वचा की बिमारी तथा दाद का शमन होता है।

#- अर्बुद - बाँस की ताज़ा मूल में समभाग ताम्रपर्णी ( तम्बाकू ) एवं पान की पत्ती को मिलाकर , तैल में पीसकर लेप करने से अर्बुद में लाभ होता है।

#- रक्तपित्त - 500 मिलीग्राम वंशलोचन चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

#- अलर्क विष - अंकोल तथा बाँस की मूल को गाय के दूध में पीसकर पीने से अलर्क विष में लाभ होता है।



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