Sunday 16 May 2021

रामबाण योग :- 85 -:

रामबाण योग :- 85 -:

मौलसिरी ( बकुल )-

मौलसिरी फूल की एक विशेष बात यह है कि फूलों के सूख जाने पर ही उसकी सुगंध नहीं जाती है। बकुल का फूल हर जगह मिलता है। इसका 12-15 मी तक ऊँचा, सीधा, बहुशाखित, छायादार, सदाहरित पेड़ होता है। इसके फूल छोटे,पीले सफेद रंग के, ताराकार, सुगन्धित, लगभग 2.5 सेमी व्यास के होते हैं।मौलसिरी का वानास्पतिक नाम Mimusops elengi Linn.(मिमुसोप्स एलेन्गी) Syn-Kaukeniaelengi (Linn.) Kuntze होता है। इसका कुल  Sapotaceae (सैपौटेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Bullet wood tree (बुलेट वुड ट्री) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि मौलसिरी और किन-किन नामों से जानी जाती है। Sanskrit-बकुल, मधुगन्धि, चिरपुष्प, स्थिरपुष्प; Hindi-बकुल, मौलसीरी, मौलसिरी, चिरपुष्प, स्थिरपुष्प
कहते है। मौलसिरी प्रकृति से पित्त-कफ से आराम दिलाने वाला, स्तम्भक (Styptic), कृमि को निकालने में मददगार, गर्भाशय की शिथिलता, सूजन एवं योनिस्राव को दूर करता है। इसके अलावा वस्ति (bladder) एवं मूत्र मार्ग के स्राव और सूजन को कम करता है। मौलसिरी के फूल हृदय और मेध्य (Brain tonic) के लिए फायदेमंद होते हैं। फल तथा छाल पौष्टिक, रक्त-स्तम्भक (Blood-Styptic),बुखार, विष और, कुष्ठ के कष्ट को कम करने तथा दांतों के लिए विशेष लाभकारी होता है।यह स्तम्भक, ग्राही (absorbing), शीतल, कृमि के इलाज में मददगार , बलकारक, बुखार के कष्ट; सिरदर्द, मस्तिष्क की दुर्बलता, पूयदंत (Pyrrohoea), दांत की दुर्बलता, अतिसार या दस्त, प्रवाहिका या पेचिश, कृमि, रक्तप्रदर (metrorrhagia), श्वेतप्रदर (Leukorrhea), पूयमेह (सुजाक या गोनोरिया) तथा वस्ति या ब्लाडर के सूजन को कम करने में लाभप्रद होता है।


#- सिरदर्द - हमेशा दर्द होने की शिकायत रहती है तो बकुल के सूखे फल के चूर्ण को नाक से नस्य लेने से सिरदर्द से आराम मिलता है।
 
#- दाँत दर्द - दांत संबंधी विभिन्न समस्याओं जैसे कि असमय दांत का हिलना, चलदंत रोग, दांत दर्द से राहत दिलाने में मौलसिरी का इस तरह से इस्तेमाल करने पर राहत मिलता है और दांतों को मजबूती मिलती हैनियमित रूप से बकुल छाल के काढ़े गण्डूष करने से हिलते हुए दाँत ( चलदन्त ) दृढ़ होने लगते है।

#- स्थानच्युत दन्त - बकुल बीज चूर्ण को चबा कर मुख में रखने से स्थान से हट जाने की समस्या तथा हिलते हुए दाँत भी दृढ़ हो जाते हैं।

#-दाँत हिलना -बकुल मूल के छाल का पेस्ट बना लें। उसको सुबह दूध के साथ तीन दिन तक सेवन करने से चलदंत में लाभ होता है।

#- दाँत हिलना -बकुल फल के चौथाई भाग खदिर-सार तथा आठवाँ भाग इलायची चूर्ण मिलाकर, सूक्ष्म चूर्ण कर, दाँतों का मर्दन करने से चलदंत रोग में शीघ्र लाभ होता है।

#- दाँत हिलना -बकुल चूर्ण से दांतों का मर्दन करने से दंतरोग, दंतमूलक्षय, चलदंत आदि व्याधियों में लाभ होता है।
#- दाँत मज़बूत -बकुल के 1-2 फलों को नियमित रूप से चबाने से भी दांत मजबूत हो जाते हैं।

#- दाँतो की मज़बूती -बकुल छाल चूर्ण का मंजन करने से दांत चट्टान की तरह मजबूत हो जाते हैं।

#- दाँत दर्द -मौलसिरी छाल के 100 मिली काढ़े में 2 ग्राम पीपल, 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम गाय का घी मिलाकर गरारा करने से दांतों की वेदना का शमन होता है।

#- दाँत हिलना -मौलसिरी दातौन को ब्रश जैसा इस्तेमाल करने अथवा दांतों के नीचे रख कर चबाने से हिलते हुए दांत स्थिर सख्त हो जाते हैं।

#- बुढ़ा में दाँतो की मज़बूती -इसकी शाखाओं के आगे के कोमल भाग का काढ़ा बनाकर, काढ़े में गाय का दूध मिलाकर प्रतिदिन पीने से बुढ़ापे में भी दांत मजबूत रहते हैं।

#- दाँत स्थिर - 50 ग्राम बकुलछाल को 500 ग्राम पानी मे उबालकर क्वाथ बनाये जब तीसरा हिस्सा रह जाये तो उस क्वाथ से कुल्ला करने से हिलते दाँत स्थिर हो जाते है।

#- दाँत स्थिर - नियमित रूप से लंबे समय तक बकुल छाल को अच्छी तरह से चबाकर मुख में धारण करने से हिलते दाँत भी स्थिर हो जाते है।

#- मुँह के छालें व सूजन -बकुल, आंवला और कत्था इन तीनों वृक्षों की छाल को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर दिन में दस-बीस बार कुल्ला करने से मुंह के छाले, मसूड़ों की सूजन और हर प्रकार के मुँह संबंधी रोगों से जल्दी लाभ मिलता है और दांत मजबूत हो जाते हैं।


#- बच्चो की खाँसी - 20-25 ग्राम ताजा फूलों को रात भर आधा लीटर पानी में भिगोकर रखें और सुबह मरूलधान कर रख लें। 10-20 मिली की मात्रा में सुबह-शाम  3-6 दिन तक उस पानी को बच्चे को पिलाने से खांसी मिट जाती है।


#- बच्चो का क़ब्ज़ - बच्चों का कब्ज दूर करने के लिए बकुल के बीजों की मींगी को पीसकर, गाय के पुराने घी के साथ मिलाकर वर्ति या बत्ती जैसा  बनाकर, बत्ती को गुदा में रखने से 15 मिनट में मल की कठोर गांठें अतिसार यानि दस्त के साथ निकल जाती हैं।

#- हृदय विकार - हृदय संबंधी रोगों के इलाज में मौलसिरी का औषधीय गुण फायदेमंद होता है। इसके लिए मौलसिरी के 5-10 बूंद फूल के अर्क का सेवन करने से हृदय रोगों में लाभ होता है।

#अतिसार -बकुल के 8-10 बीजों को ठंडे पानी में पीसकर देने से अतिसार में लाभ होता है। पुराने अतिसार में इसके पके हुए फल के गूदे को 10-20 ग्राम प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।

#- अतिसार -5 बूँद बीज मज्जा तेल को बतासे में डालकर सेवन करने से आमातिसार में लाभ होता है।
 


#- प्रवाहिका , अतिसार - बकुल के पके फलों से प्राप्त फलमज्जा का सेवन करने से प्रवाहिका तथा अतिसार के कष्ट से जल्दी राहत मिलने में मदद मिलती है।


#- रक्तमूत्रता - अगर मूत्र से खून निकलना बंद नहीं हो रहा है तो मौलसिरी का इस तरह से प्रयोग करने पर जल्दी आराम मिलता है। 5 ग्राम मौलसिरी छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम कुछ दिनों तक पीने से मूत्र में रक्त का जाना बंद हो जाता है।
 
#- योनिस्राव - 1-2 ग्राम बकुल छाल चूर्ण में 1 चम्मच मधु मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से पर योनिस्राव से आराम मिलता है। इस चूर्ण के सेवन से शुक्र प्रमेह और कमर के दर्द से भी आराम मिलता है।
 
#- श्वेतप्रदर - मौलसिरी का औषधीय गुण महिलाओं के योनि से सफेद पानी निकलने की समस्या से राहत दिलाने में बहुत फायदेमंद होता है। 5-10 ग्राम बकुल छाल चूर्ण या 10-20 मिली काढ़े में समान भाग शक्कर मिलाकर सेवन करने से प्रदर के इलाज में मदद मिलती है।

#- श्वेतप्रदर -बकुल तने की छाल के चूर्ण में शर्करा मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।

 #- गर्भाशय शुद्धि - 5-10 मिलीग्राम बकुल छाल चूर्ण या 10-20 मिलीग्राम क्वाथ का सेवन करने से गर्भाशय का शोधन कर गर्भाशय शिथिलता को दूर करता है तथा शोथ को दूर करता है।

#- मूत्रमार्गशोथ - 5-10 मिलीग्राम बकुलछाल चूर्ण लेने से बस्ति एवं मूत्रमार्गशोथ व मूत्रमार्गस्राव को कम करता है।

#- व्रण - बकुल छाल का  चूर्ण या क्वाथ बनाकर व्रणों को धोने से व्रणों का शोधन तथा बहते हुए ख़ून को रोकता है और घाव को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।

#- कृमिरोग - 5-10 ग्राम बकुलछाल चूर्ण या क्वाथ पीने से पेट के कीडे मर जाते है।

#- कामशक्तिवर्धनार्थ - 5 ग्राम बकुलछाल चूर्ण , 8 ग्राम बकुलपुष्प आवश्यकतानुसार मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने से हृदय को मज़बूत करता है तथा मेधाशक्ति को बढ़ाता है मस्तिष्क दुर्बलता को दूर करता है व शरीर मे शीतलता देता है और शरीर को पुष्ट कर बलवान बनाता है तथा व शुक्रस्तम्भक होने के कारण कामशक्ति का संचार करता है साथ ही यह शुक्रमेह , पूयमेह तथा बस्तिशोथ में लाभ करता है।





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