Sunday 16 May 2021

रामबाण योग :- 86 -:

रामबाण योग :- 86 -:

बथुआ ( वास्तूक )-


बथुआ एक महत्त्वपूर्ण तथा स्वास्थ्यवर्धक शाक (Bathua vegetable) है। इस पौधे के पत्ते  शीतादरोधी (Antiscorbutic) तथा पूयरोधी (Antidiuretic) होते हैं।  बथुए में अनेक प्रकार के लवण एवं क्षार पाए जाते हैं, जिससे यह पेट रोग के लिए फायदेमंद होता ही है साथ ही अनेक बीमारियों में भी काम में लाया जा सकता है।
 बथुआ का वानस्पतिक नाम Chenopodium album Linn. (कीनोपोडियम् एल्बम्) Syn-Atriplex alba (Linn.) Crantz, है और यह कीनोपोडिएसी (Chenopodiaceae) कुल से है। देश भर में बथुआ को बथुआ या वास्तूक के नाम से जानते हैं , Hindiबथुआ, बथुया, चिल्लीशाक, बथुआ साग , Englishआलगुड (Allgood), बेकॉन वीड (Bacon weed), फ्रोंस्ट-बाइट (Frost-bite), वाइल्ड स्पिनिच (Wild spinach), वाइल्ड गूज फुट (Wild goose foot), लैम्ब्स क्वार्टर (Lamb's Quarters),Sanskritवास्तूक , क्षारपत्र, चक्रवर्ति, चिल्लिका, क्षारदला, शाकराट्, यवशाक कहते है।


#- रक्तपित्त , नाक कान से ख़ून बहना - नाक-कान आदि अंगों से खून बहने की स्थिति में बथुआ के बीजों (1-2 ग्राम) का चूर्ण बना लें। इसे मधु के साथ सेवन करें। इससे रक्तपित्त में लाभ होता है।

#-दन्तमूशोथ, दाँत दर्द व मसूड़ों की सूजन - दांत में दर्द हो रहा हो तो बथुआ के बीज का चूर्ण बनाकर दांतों पर रगड़ें। इससे दांत का दर्द तो ठीक होता ही है, साथ ही मसूड़ों की सूजन भी कम हो जाती है।  

#- शोथ - बथुआ के पत्तों को उबालकर पीस लें। इसे सूजन वाले अंग पर लगाने से सूजन कम हो जाती है। 
बथुआ के पत्तों की सब्जी बनाकर सेवन करें। इससे खांसी में आराम मिलता है। 

#- पेट के कीडे - पेट में कीड़े हो जाने पर बथुआ का उपयोग लाभ पहुंचाता है। बथुआ के रस (5 मिली) में नमक मिलाकर पिएं। इससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं।

#- पेट के कीडे - बथुआ के पत्ते में केरिडोल होता है, जिसका प्रयोग आंतों के कीड़े एवं केंचुए को खत्म करने के लिए भी किया जाता है।# - विबन्ध - बथुआ के पत्तों का साग बनाकर खाने से विबन्ध ( कब्ज ) दूर होता है। 

#- बवासीर व तिल्ली विकार - कब्ज की समस्या से राहत पाने के लिए बथुआ के पत्तों की सब्जी (bathua vegetable) बनाकर खाएं। इससे कब्ज के साथ-साथ बवासीर, तिल्ली विकार, और लिवर के विकारों में लाभ मिलता है।

#- बवासीर - बथुआ का साग बनाकर खाने से अर्श ( बवासीर ) में लाभ होता है। 

#- मूत्ररोग - मूत्र रोग को ठीक करने के लिए बथुआ के पत्ते का रस (5 मिली) निकाल लें। इसमें मिश्री मिलाकर पिलाने से मूत्र विकार खत्म होते हैं।

#- ल्युकोरिया - बथुआ का इस्तेमाल ल्यूकोरिया में भी लाभ पहुंचाता है। ल्यूकोरिया से पीड़ित लोग 1-2 ग्राम बथुआ के जड़ को गाय के दूध में पकाएं। इसे तीन दिन तक पिएं। इससे ल्यूकोरिया में लाभ होता है। 
 
#- अतिसार - दस्त को ठीक करने के लिए बथुआ का सेवन करना फायदा देता है। अनार के रस, दही तथा तेल से युक्त बथुआ की सब्जी का सेवन करें। इससे दस्त में फायदा होता है। 

 #- अतिसार - पेचिश में लाभ लेने के लिए बथुआ के पत्तों की सब्जी बना लें। इसमें घी मिला लें। इसका सेवन करने से पेचिश में लाभ होता है। 
 
#- ख़ूनी बवासीर - बथुआ का सेवन खूनी बवासीर में भी लाभ पहुंचाता है। बथुआ के पत्ते के रस को बकरी के दूध के साथ सेवन करें। इससे खूनी बवासीर में फायदा होता है। 

#- चोट मोच - मोच आने पर बथुआ के पत्ते को पीसकर पेस्ट बनाकर मोच पर लगाएं। इससे मोच के कारण होने वाले दर्द से आराम मिलता है। 
 
#- जोडो का दर्द - जोड़ों में होने वाले दर्द के कारण लोगों को बहुत तकलीफ झेलनी पड़ती है। शरीर के जिस अंग में तकलीफ हो रही हो, उस अंग की गतिशीलता में कमी जाती है। आप जोड़ों के दर्द में बथुआ की सब्जी का सेवन करे। इससे जोड़ों के दर्द में भी आराम मिलेगा।

#- जोडो का दर्द - बथुआ के पत्ते एवं तना का काढ़ा बनाकर जोड़ों पर लगाएं। इससे जोड़ों के दर्द ठीक होते हैं। 

#- अग्निदग्ध - आग से कोई अंग जल गया है तो बथुआ के पत्ते के रस को जले हुए स्थान पर लगाएं। इससे लाभ होता है। 
 
#- साइनस - साइनस में बथुआ के पत्ते और तमाखू के फूलों को पीसकर गाय के घी में मिलाकर लगाएं। इससे साइनस में फायदा होता है। 

#- रोगप्रतिरोधक - रोग प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर हो जाने पर लोगों को अनेक बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए रोग प्रतिरक्षा शक्ति का मजबूत होना बहुत जरूरी है। जिन लोगों कि रोग प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर हो, वे बथुआ के शाक (सब्जी) में सेंधा नमक मिलाकर, गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करें। इससे रोग से लड़ने की शक्ति (रोग प्रतिरक्षा शक्ति) मजबूत होती है। 

 #- वातजन्य कास ( खाँसी ) - बथुआ के पत्तों की साग/सब्जी खाने से वातविकार व वीक विकार के कारण होने वाली खाँसी मे आराम मिलता है।

#- ऊरूस्तम्भ ( जाँघों का सून्न होना ) - नमक रहित तथा कम तैल में पकाएँ हुएे बथुआ के पत्तों का साग के साथ जौं , कोदो , सावाँ , आदि रोटियाँ खाने से ऊरूस्तम्भ में ( रूक्षता की वृद्धि होकर कफ एवं आम का शमन ) लाभ होता है।

#- नाडीव्रण - बथुआ के पत्तों और तम्बाकू के पुष्पों को पीसकर गौघृत में मिलाकर लगाने से नाडीव्रण का रोपण होता है।

#- रसायन - बथुआ के साग/ सब्जी में सेंधानमक मिलाकर गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से व्याधियों का शमन होता है। तथा रसायन गुणों में वृद्धि होती है।


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