Sunday 9 May 2021

रामबाण योग :- 67 -:

रामबाण योग :- 67 -:

#- जलपीप्पली -

#- जल पीपल, पानी में उगने वाला एक पौधा है जिसका फल दिखने में पिप्पली की तरह होता है. इसीलिए इसे जल पिप्पली भी कहा जाता है. आयुर्वेद में जल पिप्पली के कई गुणों को उल्लेख़ है. खासतौर पर पेट के रोगों जैसे कि कब्ज, बवासीर आदि के इलाज में यह जड़ी बूटी बहुत कारगर है. कश्मीर में पायी जाने वाले जलपिप्पली को औषधि की दृष्टि से सबसे अच्छा माना गया है. इस लेख में हम आपको जल पिप्पली के फायदे, नुकसान और औषधीय गुणों के बारे में बता रहे हैं
 यह 15-30 सेमी ऊंचाई वाला पौधा है जो मानसून के मौसम में ज्यादा नजर आता है. इसका तना गोल, हरे और पीले रंग का होता है. जल पीपल के पौधे से मछली जैसी गंध आती है. इसके फूल बहुत छोटे आकर के गुलाबी और बैगनी रंग के होते हैं. यही फूल बाद में बढ़कर फल बन जाते हैं और छोटी पिप्पली जैसे नजर आते हैंजल पिप्पली का वानस्पतिक नाम Phyla nodiflora (Linn.) Greene (फाइला नोडीफ्लोरा) Syn-Lippia nodiflora (Linn.) Mich है. यह Verbenaceae (वर्बीनेसी) कुल का पौधा है Hindiजलपीपल, लुन्ड्रा, भुईओकरा, बुक्कनबूटी,Sanskritजलपिप्पली, शारदी, शकुलादनी, मत्स्यादनी, मत्स्यगन्धा,English – Purple lippia (पर्पल लिप्पिया), फ्रोंग फ्रैट (Frog fruit), केप बीड (Cape wee) कहते है।
  • जलपिप्पली कटु, तिक्त, कषाय, शीत, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफ पित्तशामक तथा वातकारक होती है।
  • जलपिप्पली हृद्य, चक्षुष्य, शुक्रल, संग्राही, अग्निदीपक, रुचिकारक, मुखशोधक तथा पारद के विकारों का शमन करने वाली होती है।
  • यह दाह, व्रण, पित्तातिसार, श्वास, तृष्णा, विष, भम, मूर्च्छा, कृमि, ज्वर तथा नेत्ररोगशामक होती है।
  • जलपिप्पली प्रशामक, मूत्रल, स्तम्भक, कामोत्तेजक, क्षतिविरोहक, उदरसक्रियतावर्धक, कृमिरोधी, ज्वरहर, वाजीकारक, शीतलताकारक, पूयजनन तथा विषनाशक है।
  • जलपिप्पली हृदय रोग, रक्तविकार, नेत्र रोग, तमकश्वास, श्वसन-नलिका-शोथ, पिपासा, मूर्च्छा, व्रण, ज्वर, प्रतिश्याय, विबन्ध, जानुशूल तथा मूत्राघात शामक होता है।

#- शिर:शूल - जल पिप्पली की पत्तियों को पीसकर माथे पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।


#- नकसीर - गर्मियों के दिनों में अक्सर नकसीर फूटने के कारण नाक से खून रिसने लगता है. आयुर्वेद के अनुसार जल पिप्पली के पत्तों को पीसकर माथे पर लगाने से नकसीर में लाभ मिलता है


#- दाँत दर्द - दांतों में दर्द होने पर जल पिप्पली का उपयोग करना लाभकारी माना गया है. इसके लिए जल पिप्पली की पत्तियों और रसोन ( लहसुन ) को पीसकर दांतों में मलें. ऐसा करने से दांत का दर्द दूर होता है

#- श्वासरोग - वातावरण में बढ़ते प्रदूषण और धूम्रपान की वजह से सांस की बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में आयुर्वेद में बताए कुछ घरेलू उपाय अपनाकर आप सांस की तकलीफ को कम कर सकते हैं. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार जल पिप्पली की पत्तियों के रस की 1-2 ग्राम मात्रा में 2-4 नग काली मिर्च का चूर्ण मिलाएं. इसके सेवन से सांस से जुड़ी समस्याओं में आराम मिलता है
 
#- अतिसार - अगर आप दस्त से परेशान हैं तो जलपीपल और सारिवा से बने काढ़े का सेवन करें. ध्यान रखें कि इस काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में ही लें


#- बवासीर - जंक फ़ूड के अधिक सेवन और खराब जीवनशैली के कारण आज के समय में अधिकांश लोग कब्ज से परेशान रहते हैं. बवासीर होने की सबसे प्रमुख वजह भी कब्ज ही है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार जल पिप्पली की पत्तियां बवासीर के दर्द से आराम दिलाने में मदद करती हैं बवासीर - इसके लिए 1-3 ग्राम जलपीपल की पत्तियों को पीसकर उसमें 500 मिलीग्राम काली मिर्च और 5 ग्राम मिश्री मिलाकर पीस लें और छान लें. छानने के बाद इसे पिएं और पीने के कुछ ही देर बाद कोई चिकनाई युक्त पदार्थ खाएं. इससे बवासीर में आराम मिलता है

#- बवासीर के मस्से में खुजली - अगर आपको बवासीर के मस्सों में पिछले 2-4 दिनों से दर्द और खुजली हो रही है तो जलपिप्पली की पत्तियों को पीसकर गाय के मक्खन में मिलाकर मस्सों पर लगाने से लाभ होता है।


#- पेशाब मे जलन व दर्द - अगर आपको पेशाब करते समय दर्द और जलन महसूस होती है तो ऐसे में जल पिप्पली का उपयोग आपके लिए फायदेमंद है. इसके लिए 1-3 ग्राम जलपीपल की ताज़ी पत्तियों को पीसकर उसमें जीरा मिलाकर पिएं. इससे दर्द और जलन दोनों में आराम मिलता है
 
#- पूयमेह, सूजाक ( गोनोरिया ) - गोनोरिया एक यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है और इसके लक्षणों को अनदेखा नहीं करना चाहिए. अगर आपको गोनोरिया के लक्षण नजर आते हैं तो डॉक्टर के पास जाएं और साथ में घरेलू उपाय भी अपनाएं. आयुर्वेद के अनुसार 1-3 ग्राम जलपीपल की ताज़ी पत्तियों को पीसकर, छानकर दिन में तीन बार पीने से गोनोरिया (सूजाक रोग) में फायदा मिलता है
 
#- जोडो का दर्द व हथेलियों व तलवों में जलन - जलपीपल की पत्तियों में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो जोड़ों के दर्द और जलन को दूर करने में मदद करते है. अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं या आपके हाथों पैरों में जलन हो रही है तो प्रभावित हिस्से पर जलपीपल की पत्तियों को पीसकर उसका लेप करें. इससे कुछ ही देर में दर्द और जलन दूर हो जाती है
 
#- चेहरे की झाइयाँ - अगर आपके चहरे पर झाइयाँ हैं तो जल पिप्पली का उपयोग आपके लिए बहुत फायदेमंद है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का कहना है कि जलपीपल की पत्तियों को पीसकर चेहरे पर लगाने से झाइयाँ दूर होती हैं


#- रक्तपित्त , नाक- कान से ख़ून आना - नाक या कान से खून बहने की समस्या को आयुर्वेद में रक्तपित्त कहा गया है. यह समस्या गर्मियों में ज्यादा देखने को मिलती है। 2-4 ग्राम जलपीपल पञ्चाङ्ग चूर्ण को या जलपीपल पञ्चाङ्ग को गाय के दूध के साथ पीसकर छान लेंछानने के बाद इसमें शक्कर मिलाकर पिएं. इससे रक्तपित्त में जल्दी लाभ मिलता है।
 
#- व्रण , शोथ - जलपीप्पली पञ्चांग से निर्मित कल्क को लगाने से रोमकूपशोथ , ग्रीवाग्रन्थिशोथ , विसर्प , तथा जीर्ण वेदनारहित व्रण में लाभ होता है।

#- अजीर्ण - जलपीप्पली के पत्र तथा मृदु डण्ठल का फाण्ट बनाकर 5-10 मिलीग्राम मात्रा में बालकों को पिलाने से अजीर्ण में लाभ होता है।

#- जलपीप्पली मुखशोधक है और पारद के विकारों का शमन करने वाली होती है।

#- विषचिकित्सा - जलपीप्पली के पत्र व डण्ठल स्वरस निकालकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से विषविकार दूर होते है।क्योकि जलपीप्पली विषनाशक होती है।

#- भ्रम, मुर्छा - जलपीप्पली के पत्र व डण्ठल स्वरस निकालकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से भ्रम तथा मुर्छारोग में लाभ कारी होता है।

#- दाद - जलपीप्पली का पत्रस्वरस दाद पर लगाने से दाद का शमन होता है।

#- कृमिरोग - जलपीप्पली के पत्ते व कोमल डण्ठल का स्वरस निकालकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से पेट के कीडे मर जाते है।

#- कामशक्तिवर्धनार्थ - जलपीप्पली के पत्ते व कोमल डण्ठल का स्वरस निकालकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से स्तम्भन व कामशक्तिवर्धन होकर बाजीकरण कामोत्तेजना को बढ़ाती है ।




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