Saturday 15 May 2021

रामबाण योग -: 84 -:

रामबाण योग -: 84 -:

फालसा ( परूषक )-


#- फालसा देखने में छोटी होती है लेकिन इसके गुण अनगिनत होते हैं।  इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं। 1. फालसा, 2. भीमल।
  • फालसा (Grewia asiatica Linn.)
यह छोटा, मुलायम और पीले रंग का झाड़ी अथवा पेड़ होता है। इसके तने की त्वचा-खुरदरी, हल्का भूरा और  सफेद रंग की होती है। इसके फल गोल, बड़े मटर या जंगली झरबेरी जैसे धूसर रंग के होते हैं। जब फल कच्ची अवस्था में  रहते हैं तब वह हरे रंग के तथा पके  अवस्था में बैंगनी रंग के अथवा लाल रंग के, खट्टे मीठे होते हैं।
  • भीमल (Grewia oppositifolia.)
इसके वृक्ष फैले हुए और 9-12 मी ऊँचे होते हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं और पत्ते के विपरीत अक्ष (axis)  में लगे होते हैं। इसके फल  हरे रंग के होते हैं और सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं।
फालसा देखने में छोटा होता है लेकिन इसके फायदे अनगिनत होते हैं। कच्चा  फालसा कड़वा, एसिडिक, गर्म तासीर का, छोटा, रूखा, कफ और वात को कम करने में सहायक; पित्तकारक तथा स्वादिष्ट होता है। फालसा का पका फल मधुर,ठंडे तासीर का, कमजोरी दूर करने वाला, स्पर्म का काउन्ट बढ़ाने वाला, खाने की रुची बढ़ाने वाला, पौष्टिक और थकान मिटाने वाला होता है। फालसा को मूत्रदोष, जलन, रक्त संबंधी रोग और बुखार आदि में उपचार स्वरुप उपयोग किया जाता  है।
फालसा की छाल (त्वक्) मधुमेह नियंत्रण करने के साथ ही साथ योनी की जलन से भी राहत दिलाने में मदद करती  है। फालसा की जड़ दर्दनिवारक, वातपित्त और मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायक होती है। इसके अलावा गर्भाशय में होने वाले दर्द को भी कम करने में  मदद करती है।फालसा का वानस्पतिक नाम : Grewia asiatica  Linn. (ग्रीविया ऐशिऐटिका) Syn-Grewia subinaequalis DC होता है। फालसा Tiliaceae (टिलिएसी) कुल का होता है।  फालसा को अंग्रेज़ी में Phalsa (फालसा) कहते हैलेकिन भारत के दूसरे प्रांतों में इसको दूसरे नामों से पुकारा जाता है।Sanskrit-परुषक, परुष, अल्पास्थि, परापर, परू, वन्यपत्रक, नीलवर्ण, परिमण्डल, परूष, गिरिपीलु, नीलचर्म, नीलमण्डल, मृदुफल, परावर, Hindi-फालसा;कहते है। फालसा में एन्टीऑक्सिडेंट, पोटाशियम, कैल्शियम, विटामिन , प्रोटीन, फॉस्फोरस जैसे अनगिनत गुण होते हैं जो फालसा को कई बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।

#- रोहिणी' डिप्थीरिया रोग - द्राक्षा (एक तरह का अंगूर) तथा फालसा का काढ़ा बनाकर उससे गरारा करने पर रोहिणी या डिप्थीरिया में लाभ होता है।


 #- पेटदर्द - डायट असंतुलित हुआ कि नहीं पेट दर्द की परेशानी होनी शुरु हो जाती है।   पेट दर्द की परेशानी में   5-10 मिली फालसे के रस का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है।

#- मूत्रविकार - मूत्र संबंधी रोगों में बहुत सारी समस्याएं आती हैं जैसे पेशाब करते वक्त जलन या दर्द होना आदि। यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन में यही समस्या आती है। इसके लिए 5 ग्राम फालसा के जड़ को रात भर 50 मिली पानी में भिगोकर रखें, सुबह-शाम मसलकर, छानकर पिलाने से मूत्र विकारों से राहत मिलती है।

 #- सुखप्रसवार्नाथ - कभी-कभी बच्चे को जन्म देते वक्त शरीर के नीचले अंग में बाधा उत्पन्न होने लगता है। तब आसन्नप्रसवा स्त्री की नाभि, वस्ति यानि ब्लैडर और योनि पर फालसा के जड़ का लेप करने से मूढ़गर्भ का भी प्रसव हो जाता है।

#- सुखप्रसवानार्थ - फालसा की दूसरी जाति है , भीमल की छाल को पीसकर योनि में लगाने से प्रसव यानि डिलीवरी अच्छी तरह से हो जाता है।


#- शुक्रदोष - अक्सर पुरूषों को स्पर्म काउन्ट लो होने की समस्या होती है।  पूतिपूय नामक शुक्र दोष में परुषकादि तथा वटादि वर्ग की औषधियों से सिद्ध घी (5 ग्राम) का सेवन करने से लाभ मिलता है।


 #- मासिक विकार, रक्तप्रदर - रक्तप्रदर मतलब पीरियड के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग होना। अगर लंबे समय से हद से ज्यादा मासिक स्राव हो रहा है तो फालसा का इस तरह से सेवन करने पर बहुत लाभ मिलता है। 1 ग्राम फालसा के जड़ की छाल को चावलों के धोवन के साथ पीसकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।


#- श्वेतप्रदर - श्वेत प्रदर में फालसे के शरबत फायदेमंद होते हैं, क्योंकि इसमें कषाय रस होता है। जो श्वेत स्त्राव को नियंत्रित करने में सहायता करता है साथ हि इसमें जीवाणुरोधी गुण भी होता है जो कि इंफेक्शन को रोकने में मदद करता है।

#- जोडो का दर्द व टी.बी. रोग - आजकल देर तक बैठने वाला काम हो गया है। दिनभर कंप्यूटर के सामने बैठकर काम करते हैं। जिसके कारण पैरों में, हाथों में दर्द होने लगता है जो धीरे-धीरे जोड़ों  के दर्द में परिवर्तित हो जाता है। फालसा के गुण जोड़ों के दर्द में बहुत फायदेमंद  होते हैं। 5 ग्राम परुषक गाय के घी का नियमपूर्वक सेवन करने से वातरक्त या गठिया, छाती में किसी प्रकार का जख्म, टी.बी., बुखार से राहत दिलाने में मदद करता है फालसा।


#- गठिया रोग- आजकल अर्थराइटिस की परेशानी उम्र देखकर नहीं आती। कोई भी किसी भी उम्र में इसके दर्द से परेशान हो सकता है। फालसा के जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से गठिया में लाभ होता है।


 #- व्रण या अल्सर - यदि लंबे समय से अल्सर के घाव से परेशान हैं तो फालसा का इस तरह से इस्तेमाल करने पर जल्दी घाव सूखने में  मदद मिलती है। फालसा की पत्तियों को पीसकर लेप करने से या छोटा-सा पोटली बनाकर बांधने से व्रण या अल्सर को सूखने में मदद मिलती है।


#- घाव - फालसे के पत्तों को पीसकर लेप का प्रयोग घाव को भरने में भी किया जाता है क्योंकि इसमें रोपण (हीलिंग) का गुण पाया जाता है जो कि घाव को जल्दी भरने में मदद करता है।

#- गाँठ - फालसा की पत्तियों को पीसकर गाँठ पर लेप करने से लाभ होता है। 

#- मधुमेह - फालसा मूल क्वाथ 10-15 मिलीग्राम का सेवन डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार फालसा के उपयोग से शर्करा की मात्रा को रक्त में सामान्य रखने में मदद करती है। 


#- हड्डियाँ मज़बूत - फालसा मूल क्वाथ 1-15 मिलीग्राम की मात्रा का सेवन हड्डियों को मजबूती प्रदान करने सहायता करता है क्योंकि इसमें कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। 


#- हृदय - फालसा फल का सेवन दिल को सेहतमंद रखने में मदद करता है क्योंकि फालसा में एंटीऑक्सीडेंट का गुण होता है जो ह्रदय को स्वस्थ बनाये रखने में सहायक होता है। 


#- कैंसररोधी - फालसा पक्व फल के औषधीय गुणों में एक गुण कैंसर को रोकना भी है। एक रिसर्च के अनुसार फालसा का सेवन विशेषरूप से लिवर  और स्तन कैंसर को रोकने में सहायता करता है। 


#- दस्त - फालसा के फल का स्वरस 10 मिलीग्रम का सेवन दस्त के इलाज में फायदेमंद होता है, क्योंकि ये कषाय रस प्रधान होता है जिससे फालसा का सेवन करने से दस्त को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। 


#- श्वसन तंत्र को करे दुरुस्त - फालसा फ्रूट का सेवन अस्थमा में आपके लिए फायदेमंद हो सकता है जबकि ये शीत वीर्य होता है। एक रिसर्च के अनुसार फालसा का सेवन रेस्पिरेटरी सिस्टम से संबंधित रोग में फायदेमंद होता है। 


#- लू लगना - लू के लगने में फालसा फल का सेवन फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें शीत गुण होने के कारण ये लू के लक्षणों को कम करने में सहायता करता है। 


#- पित्त- विकार - फालसा मूल क्वाथ 15 मिलीग्राम का सेवन बहुत फ़ायदेमद होता है, क्योंकि फालसे का गुण पित्त को शमन करने वाला होता है इसलिए यह पित्तविकार को शांत करने में सहायता करता है।

#- ज्वर - भीमल फालसा की छाल का काढ़ा बनाकर 10-15 मिलीग्राम मात्रा में पीने से अजीर्ण तथा ज्वर का शमन करते है। 


#- बलवर्धनार्थ - फालसा फल स्वरस 15 मिलीग्राम का सेवन खून की कमी को दूर करने में सहायता करता है, क्योंकि इसमें आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि हीमोग्लोबिन के मात्रा में सुधार करके खून की कमी को दूर करता है। 

#- बलवर्धनार्थ - 2 ग्राम फालसा छाल चूर्ण में 2 ग्राम मिश्री मिलाकर गौदुग्ध के साथ पीने से शरीर की पुष्टी होती है तथा बल बढ़ता है।

#- पुष्टिजनक व शुक्रजनक - फालसा फस रस में मिश्री , खसखस चूर्ण व गाय का दूध मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से शरीर में शीतलता , वीर्यवृद्धि , शुक्रजनक , रुचिकारक , तृपतिकारक पुष्टिजनक , बलकारक , हृदय को मज़बूती , ज्वरघ्न होने के साथ- साथ श्रमहर होता है।

#- योनिदाह - फालसा छाल क्वाथ 10-12 मिलीग्राम प्रमेहशामक , योनिदाह तथा मेढ्रदाह शामक होता है।#- गर्भाशय शूल - फालसामूल क्वाथ 10-12 मिलीग्राम , मिश्री 5 ग्राम मिलाकर सेवन करने से वेदनास्थापक होने से दर्द को हरता है । वातपित्तजन्य विकारों को शान्त करना , प्रमेह विकारों का नाश करना तथा गर्भाशय शूल का हरण करता है।


 #- अग्निदग्ध - अक्सर खाना बनाते समय या पूजा करते समय हाथ जल जाता है। उस वक्त फालसे फ्रूट (False Fruit) का शर्बत बनाकर पीने से जलन का दर्द कम होता है।

#- कण्डूरोग , खुजली - फ़ालसे की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से आर्द्र कण्डूरोग ( खुजली रोग ) का शमन होता है।

#- विस्फोट , दद्नु - भीमल फालसा के पत्तों को पीसकर लगाने से विस्फोट , दद्नु आदि त्वचारोगों में लाभ होता है।

#- मदात्यय - 5 मिलीग्राम फ़ासला स्वरस का सेवन करने से मदात्ययजन्य तृष्णा में लाभ होता है।

#- मदात्यय - द्राक्षा ( अंगूर ) आँवला तथा फालसा फल के रस से निर्मित अनेक प्रकार के तर्पण , यूष, रस आदि के साथ चावलों का सेवन पैत्तिक मदात्यय में पथ्य है ।

#- मदात्यय - समभाग भव्य , खजूर , द्राक्षा , फालसा फल तथा अनार के 10-20 मिलीग्राम रस में सत्तू तथा शर्करा मिलाकर पीने से पैत्तिक मदात्यय में लाभ होता है।

#- दाह - फालसा फल का शर्बत बनाकर पीने से दाह का शमन होता है।

#- मूत्रल - भीमल फालसा की मूल का क्वाथ 13 मिलीग्राम या भीमलमूल चूर्ण 2 ग्राम,मिश्री मिलाकर खाने से मूत्रवृद्धि होती है , पेशाब का बन्द खुलता है,तथा शारीरिक दुर्बलता दूर कर बलवान बनाता है।


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