Saturday 8 May 2021

रामबाण :- 65 -:

रामबाण :- 65 -:

#- पाताल गरूडी -

#- पातालगरुड़ी नाम सुनकर अजीब लग रहा होगा ! हिन्दी में यह जलजमनी, छिरहटा ऐसे अनेक नामों से जाना जाता है। असल में घरों के आस-पास, नम छायादार जगहों में इस तरह के बेल नजर में आते हैं। इन बेलों के पत्तों कारण जल जम जाते हैं वहां इसलिए इन्हें जलजमनी भी कहा जाता है। आयुर्वेद में लेकिन इस बेल के अनेक औषधीय गुण का परिचय भी मिलता है। पातालगरुड़ी बेल बरसात के दिनों में सब जगह उत्पन्न होती है, इसके पत्तों को पीसकर पानी में डालने से पानी जम जाता है, इसलिए इसको जलजमनी कहते हैं। इसकी जड़ के अन्त में जो कन्द या बल्ब होता है, उसे जल में घिसकर पिलाने से उल्टी करवाकर सांप का विष निकालने में मदद मिलती है, अत: इसे पातालगरूड़ी कहते हैं। पाठा मूल के स्थान पर इसकी जड़ों को बेचा जाता है या पाठा मूल के साथ इसकी जड़ों की मिलावट की जाती है। पाठा के जैसी किन्तु अधिक मोटी तथा दृढ़ लता होती है। नई बेल धागा जैसी पतली तथा पुरानी बेल अधिक मोटी होती है। इसके फल छोटे, गोल, चने के बराबर, चिकने, झुर्रीदार, बैंगनी काले रंग के, मटर आकार के, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर काले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी जड़ टेढ़ी, स्निग्ध, हलकी भूरी अथवा पीले रंग की, जमीन में गहराई तक गई हुई, सख्त तथा अन्त में कन्द से युक्त स्वाद में कड़वी होती है। पातालगरुड़ी का वानास्पतिक नाम Cocculus hirsutus (Linn.) W.Theob.(कोकुलस हिर्सुटस) Syn-Cocculus villosus DC. Menispermum hirsutum Linn. होता है। इसका कुल  Menispermaceae(मेनिस्पर्मेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Broom creeper (ब्रूम क्रीपर) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि पातालगरुड़ी और किन-किन नामों से जाना जाता है। 
Sanskrit-छिलिहिण्ट, महामूल, पातालगरुड़, वत्सादनी, दीर्घवल्लीHindi-पातालगरुड़ी, छिरेटा, फरीदबूटी, चिरिहिंटा, छिरहटा, जलजमनी; इसे पर्सियन में फरीद बूटीकहते है ।

#- शिर: शूल - पाताल गरूडी मूल व पत्तों को पीसकर सिर पर लगाने से सिरदर्द का शमन होता है।

#- रतौंधी - पातालगरुड़ी का औषधीय गुण पातालगरुड़ी के पत्तों को पकाकर सेवन करने से रात्र्यान्धता (रतौंधी) में लाभ होता है।


#- नेत्राभिष्यन्द - पातालगरुड़ी पत्ते के रस का अंजन करने से अभिष्यंद (आँखों का आना) तथा आँखों में दर्द में लाभ होता है।
 
#- दाँत दर्द - दांत दर्द से परेशान रहते हैं तो पातालगरुड़ी के औषधीय गुणों का इस्तेमाल इस तरह से करने से जल्दी आराम मिलता है। पातालगरुड़ी पत्ते के पेस्ट को दाँतों पर मलने से दांत दर्द से आराम मिलता है।
 
#- अजीर्ण - खाने-पीने में गड़बड़ी होने के वजह से बदहजमी की समस्या से परेशान रहते हैं तो 1-2 ग्राम पातालगरुड़ी जड़ चूर्ण में समान भाग में अदरक तथा शर्करा मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण से आराम मिलता है।
 
#- अतिसार - जब अतिसार की समस्या होती है। 5 मिली पातालगरुड़ी जड़ के रस का सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है। 
 
#- श्वेतप्रदर - पातालगरुड़ी के नये पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली काढ़े में शर्करा मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।

#- पूयमेह, ( गोनोरिया ) शुक्रमेह - 5 मिली पातालगरुड़ी पत्ते के रस को जल में जैली की तरह जमाकर सेवन करने से पूयमेह में लाभ होता है।

#- सूजाक - 5 मिली पातालगरुड़ी पत्ते के रस को पिलाने से सूजाक में लाभ होता है।

#- शुक्रमेह, गोनोरिया - पाताल गरूडीपत्र स्वरस को गौदधि ( दही ) के साथ सेवन करने से पूयमेह या शुक्रमेह (गोनोरिया) में लाभ होता है।

#- स्वपनदोष - 10 ग्राम छाया में सुखाया हुआ जलजमनी ( पातालगरूडी ) पत्ते के चूर्ण को गाय के घी में भुनी हुई हरड़ का चूर्ण मिलाकर, इसके समान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह शाम 2 ग्राम की मात्रा में गाय दूध के साथ सेवन करने से स्वप्नदोष में लाभ होता है। औषध सेवन काल में पथ्य पालन आवश्यक है।


#- आमवात,रतिज रोगों के कारण शूल - गठिया के दर्द से परेशान रहते हैं तो पिप्पली तथा बकरी के दूध से सिद्ध जलजमनी ( पातालगरूडी ) के 10-20 मिली काढ़े का सेवन करने से जीर्ण आमवात (गठिया) अथवा रतिज रोगों के कारण उत्पन्न दर्द में लाभ होता है।

#- उपदंश व सन्धिवात - 5 ग्राम जलजमनी ( पातालगरूडी ) की जड़ को 50 मिली बकरी के दूध में उबालकर छानकर, उसमें 500 मिग्रा पिप्पली, 500 मिग्रा सोंठ तथा 500 मिग्रा मरिच डालकर पिलाने से आमवात, त्वचा संबंधी बीमारियों तथा उपदंश (Syphilis) की वजह से होने वाले संधिवात में लाभ होता है। जलजमनी पत्ते को पीसकर लगाने से संधिवात या अर्थराइटिस में लाभ होता है।

 #- सन्धिवात - जलजमनी ( पातालगरूडी ) के पत्तों को पीसकर लगाने से संधिवात में लाभ होता है।

#- त्वचारोग - जलजमनी ( पातालगरूडी ) पत्रस्वरस का लेप करने से छाजन , सपूयव्रणविस्फोट , खुजली, घाव तथा जलन से राहत मिलने में आसानी होती है।

 #- नारू -( नारू रोग मे पैर के पंजे मे फफोले पड़ता है छालें के फूटने के बाद गिनी वर्म की पुँछ दिखाई देती है या घाव से सफेद धागे से निकलते है।) ऐसे मे पातालगरूडी मूल को 2-4 ग्राम को पानी में पीसकर पिलाने से गिनी वर्म ( नारू रोग ) मे लाभ होता है।

#- राजक्ष्मा , टी. बी. रोग - 5 मिली जलजमनी ( पातालगरूडी ) पत्ते के रस को 50 मिली तिल तेल में मिलाकर, पकाकर, छानकर तेल प्रयोग करने से क्षय रोग में लाभ होता है।


#- शराब तथा भांग की आदत छुड़ाने के लिए - जलजमनी ( पातालगरूडी ) के 2-4 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन 1 माह तक सेवन करने से शराब तथा भांग की आदत छूट जाती है। इसका प्रयोग करते समय यदि उल्टी हो तो इसकी मात्रा कम कर देनी चाहिए।
 
#- बच्चो का पेटदर्द - लता करंज के बीजचूर्ण तथा जलजमनी जड़ के चूर्ण को मिलाकर 1-2 ग्राम मात्रा में सेवन कराने से बच्चों के पेट के दर्द से आराम मिलता है।
 
#- सर्पदंश - पाताल गरूडी मूल को पीसकर या पानी में घिसकर 1-2 बूँद नाक मे डालने से लाभ होता है।पाताल गरूडी के 5 मिली पत्ते के रस में 5 मिली नीम पत्ते के रस में मिलाकर पीने से सांप के काटने से जो विष का असर होता है उसको कम करने में मदद मिलता है।

#- सर्पदंश - पातालगरूडी के जड़ के अन्त में जो कन्द होता है उसे जल में घिसकर उस पानी को पिलाने से वमन होता है इस क्रिया को करने बाद नीमपत्र खिलाए यदि नीमपत्र मीठे लगते है तो दूसरी - तीसरी बार पातालगरूडी मूल घिसकर पिलाये और नीमपत्र चबाये इस क्रिया को जबतक करे तबतक नीमपत्र कड़वे न लगने लगे वमन कराते रहे इससे सर्पविष का निवारण होता है।

 #- सर्पदंश - पातालगरूडी मूल को गोमूत्र मे ( गोमूत्र होगा ज़्यादा कारगर होगा वरना पानी मे भी पीस सकते है ) पीसकर दँश स्थान पर लगाने से दंशजन्य दाह , वेदना तथा शोथ आदि विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- स्वानुभत योग,पानी की बर्फ़ी - पाताल गरूडी ( जलजमनी ) को पत्तों का रस निकालकर पानी मे मिलाकर कुछ समय के लिए रख दे जब यह पानी जैली के रूप में बदल जाये तो इसको बर्फ़ी की तरह काटकर खिलाने से पूयमेह - गोनोरिया ( सूजाक घाव होने पर निकलने वाला मवाद ) तथा सूजाक , श्वेतप्रदर , शुक्रमेह ( धात गिरना ) आदि रोगों में लाभ होता है।लोग इसे पानी की बर्फ़ी भी कहते है।

#- स्वानुभत योग,अस्थिभग्न - पातालगरूडी के पत्तों को छाया मे सुखाकर पीसकर रख लें जब किसी की कोई भी हड्डी टूटी हो उस हड्ड्डी को सैट करके फंचक बाँध दे या कच्चा पलस्तर कर दें। फिर 2-4 ग्राम चूर्ण को शहद में मिलाकर 2-3 दिन खाने से हड्डी में मोटी गाँठ डालकर जोड़ देती है।

#- विषरोधी पातालगरूडी - किसी भी प्रकार का विष खाया हुआ प्राणी हो उसको पातालगरूडी मूल के नीचे का कन्द घिसकर पिलाते रहने से वमन होकर सब विष बाहर आ जाता है तथा पातालगरूडी मूलकंद विष को शरीर में फैलने से भी रोकता है।क्योकि पातालगरूडी विषविकार शामक भी होती है।


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