Tuesday 18 May 2021

रामबाण योग :- 89 -:

रामबाण योग :- 89 -:

बला -


#- बला की कई जातियां पाई जाती हैं। इनमें बला, राजबला (Sida humilis Cav.), भूमिबला (Sida spinosa Linn.), अतिबला (Abutilon indicum (Linn.) Sw.), महाबला (Sida rhombifolia Linn.) और नागबला (Grewia hirsuta Vahl) मुख्य हैं। इसके पत्ते हृदय के आकार के होते हैं। इसके प्रत्‍येक गांठ पर एक पत्‍ता पाया जाता है। इसके फूल पीले रंग के होते हैं। यह पौधा पूरी तरह से हरा भरा और पत्‍तों से लदा होता है। बला का वानस्पतिक नाम Sida cordifolia Linn. (साइडा कॉर्डिफोलिआ) Syn-Sida altheifolia Sw. है, और अधिकांश लोग बला को खरेठी (खरैठी) और बीजबंद आदि नामों से ही जानते हैं, Hindi – बरियार, बरियारा, बरियाल, खरेठी, खरैठी, बीजबन्द ,
English – Country mallow (कन्ट्री मेलो), हार्टलीफ साईडा (Heartleaf sida), व्हाइट बर्र (White burr), Sanskrit – बला, वाटयलिका, वाट्या, वाट्यालका, भद्रा, बलभद्रा, भद्रौदनी, वाटी, समङ्गा, खरयष्टिका, महासमङ्गा, ओदनिका, शीतपाकी, वाटयपुष्पी, समांशा, विल्ला, वलिनी, कल्याणिनी, भद्रबला, मोटावाटी, बलाढ्या, निलया, रक्ततन्दुला, क्रूरा, फणिजिह्विका कहते है।

#- कफज खुजली - बला के पत्तों को पीसकर रस निचोड़ लें। इससे मालिश करने से कफ दोष के कारण होने वाली खुजली और चकत्‍ते की समस्या ठीक होती हैं।

#- शिरो - वात रोग - बला पौधा (bala plant) की जड़ तथा बेल में पाया जाने वाला द्रव्य से काढ़ा बना लें। इसमें गाय के दूध एवं गाय का घी मिला कर पका लें। इसे ठंडा करने के बाद इसकी बूंद नाक में डालें। इससे सिर में होने वाले वात रोग का उपचार होता है।


#- आँख रोग - बला तथा बबूल के पत्‍तों को पीसकर आंखों के बाहर लगाएं। इससे आंख आने की समस्या ठीक होती है।

#- आँख रोग - बला के पत्तों के साथ बबूल के पत्तों को पीसकर टिकियां बना लें। इसे आंखों के ऊपर रखें। ऊपर से साफ कपड़े से लपेट दे। इससे लाभ होता है।


#- शोथ - बला के पौधा की जड़ (bala root) का रस 10-15 मिलीग्राम निकाल लें। इसमें 60 मिलीग्राम हींग मिलाकर पीने से सीने की सूजन की समस्या ठीक होती है।


#- पित्तज खाँसी - समभाग बला, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, अडूसा तथा अंगूर को मिलाकर काढ़ा तैयार करें। इसकी 10-30 मिलीग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर पीने से पित्‍त के कारण होने वाली खांसी ठीक होती है।  


#- स्वर रोग - बला का पौधा लें। इसकी जड़ का 1-2 ग्राम चूर्ण बना लें। इसमें 5 ग्राम मिश्री, 2 चम्मच शहद तथा 1 चम्मच गाय का घी मिलाकर सेवन करें। इससे आवाज से संबंधित समस्‍या ठीक हो जाती है।

#- गला बैठना - बला, शालपर्णी, विदारी तथा मधूक को गाय के घी में पका लें। इसमें नमक मिलाकर प्रयोग करने से आवाज बैठने (गला बैठने) की परेशानी ठीक होती है।


#- घेंघारोग - गिलोय, नीम, हंसपदी, कुटज, पिप्पली, बला, अतिबला तथा देवदारु को मूँगफली के तेल में पका लें। इसे नियमित पीने से घेंघा में लाभ होता है।

#- बला के रस, अतिबला के रस और देवदारु को तिल तेल में पका लें। इसे लगाने से घेंघा में लाभ होता है।


#- गैस , हर्निया रोग - बरियार (बला) का पौधा लें। इसकी जड़ (bala root) के पेस्‍ट को गाय के दूध में पका (या क्षीरपाक) लें। इसमें बराबर भाग में अरंडी का तेल मिला लें। इसे पीने से पेट की गैस और हार्निया में लाभ होता है।


#- दस्त - बरियार का पौधा लें। इसकी जड़ से 5 ग्राम काढ़ा बना लें। इसमें 1 ग्राम जायफल घिसकर पिलाने से दस्‍त पर रोक लगती है।

#- दस्त - बला तथा सोंठ को गौदूग्ध में पका लें। इस दूध में गुड़ तथा तिल का तेल मिला कर पीने से दस्‍त बंद हो जाता है

#- मूत्ररोग व मूत्रदाह - बला के 10 ग्राम पत्तों को काली मिर्च के साथ घोटकर छान लें। इसे सुबह-शाम मिश्री के साथ पिलाने से पेशाब में जलन और मूत्र संबंधी अन्य रोग ठीक होते हैं।

#- मूत्रकृच्छ - बरियार की 10-15 ग्राम ताजी जड़ को दूध में पीसकर पिलाएं। भोजन में चावल, घी तथा दूध मिलाकर सेवन करें। इससे लाभ होता है।

#- मधुमेह - बरियार के पौधे के 10 ग्राम पत्‍तों को आधा लीटर पानी में भिगोकर छान लें। इसका लुआब निकाल लें। इसमें मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पेशाब खुलकर आता है। इसका सेवन मधुमेह में भी लाभदायक होता है।

#- मूत्ररोग - बला के बीजों के 1 ग्राम चूर्ण में 2 ग्राम मिश्री मिला लें। गाय के दूध के साथ सुबह-शाम इसका सेवन करने से पेशाब से जुड़ी बीमारी ठीक होती है।

#- मल- मूत्र का बन्द लगना - बला की जड़, गोखरू, भटकटैया की जड़ 1-1 ग्राम, सोंठ 1/2 ग्राम और 3 ग्राम गुड़ को पानी में पका लें। इसे पीने से मल-मूत्र की रुकावट दूर होती है। इसके सेवन से बुखार से होने वाले सूजन भी ठीक होता है।


#- गर्भशूल - बला की जड़ का पेस्‍ट बना लें। इसे गाय के घी में पका कर सेवन करें। इससे गर्भ के दौरान होने वाला दर्द दूर हो जाता है। इससे गर्भस्थ शिशु एवं गर्भवती महिला का स्वास्थ्य ठीक रहता है।

#- प्रसव पीड़ा - बला की जड़ का काढ़ा बना लें। इसे गाय के घी में पका लें। घी को सुबह-शाम दो बार पिलाएं। इससे प्रसव पीड़ा में लाभ होता है।

#- प्रसूता शूल - बलामूल क्वाथ से सिद्ध मुंगफली तैल को प्रसूता को पिलाने दर्द में आराम मिलता है।

#-गर्भधारण - बला की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण में अतिबला का 2 ग्राम चूर्ण, 2 ग्राम मिश्री और मुलेठी 2 ग्राम चूर्ण, सभी को आपस में मिला लें। इस चूर्ण की 3-6 ग्राम की मात्रा में लेकर 2 चम्मच शहद और 1 चम्मच गाय के घी मिलाकर सेवन करें। ऊपर से गाय का दूध पीने से गर्भधारण में सहयोग मिलता है। इस चूर्ण में बड़ के अंकुर तथा नागकेसर को भी मिलाएं तो और भी लाभदायक होता है।

#- गर्भपोषणार्थ - बलामूल कल्क एवं क्वाथ से सिद्ध किये हुए गौघृत का सेवन प्रात: सायं गौदुग्ध के साथ करने से गर्भशूल का शमन एवं गर्भस्थ शिशु की व गर्भिणी के शरीर का पोषण होता है

#- उन्माद - सफेद फूल वाले बला (balaa) की जड़ का 10 ग्राम चूर्ण बना लें। इसमें अपामार्ग चूर्ण 5 ग्राम, गाय का दूध 500 मिलीग्राम लें। इतना ही पानी मिला लें। इन सबको मिलाकर उबालें। जब केवल दूध बच जाए तब इसे ठंडा कर छान लें। इसे सुबह के समय सेवन करने से उन्माद (Mania) की बीमारी में लाभ होता है।
 
#- मासिकधर्म - बरियार (sida cordifolia) पौधा के चूर्ण को गाय के दूध में पकाकर पिलाएं। इससे मासिक धर्म विकार में लाभ होता है।

#- मासिकधर्म - बला तेल की पेट पर मालिश करने से भी मासिक धर्म विकारों में लाभ होता है।


#- रक्तप्रदर - बला की जड़ और पत्तों को चावल के धोवन के साथ पीसकर छान लें। इसका सेवन करने से खूनी प्रदर (Metrorrhagia) की शिकायत दूर होती है।

#- श्वेतप्रदर - 3 ग्राम बला बरियार (balaa) के चूर्ण में बराबर भाग मिश्री या खांड मिला कर प्रयोग करें।

#- श्वेतप्रदर - 5 ग्राम बला की जड़, 7 दाना काली मिर्च लें। दोनों को 50 मिलीग्राम पानी में पीसकर छान लें। सुबह-शाम सात दिन तक इसका प्रयोग करने से महिलाओं में योनी से सफेद पानी आने (श्‍वेत प्रदर या ल्यूकोरिया) की समस्‍या में बहुत लाभ होता है। इस दौरान मैथुन तथा चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

#- श्वेतप्रदर - 3 ग्राम बला की जड़ के चूर्ण में मिश्री मिला लें। इसे गाय के दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इससे श्‍वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।


#- अण्डकोष विकार - अंडकोष विकार में भी बरियार का पौधा बरियार का पौधा लाभदायक होता है। बला के 10 मिलीग्राम काढ़ा में 10 मिलीग्राम तक शुद्ध अरंडी का तेल मिला लें। इसे दिन में दो बार पिलाने से लाभ होता है।


#- धातरोग( मूत्र मे धातु आना ) - पेशाब के साथ यदि धातु आता तो 10 ग्राम बला (balaa) की जड़ और 5 ग्राम महुआ के पेड़ की छाल लें। इसे 250 मिलीग्राम पानी में पीसकर छान लें। उसमें 25 ग्राम मिश्री या शक्‍कर मिला लें। सुबह-शाम इसका सेवन कराने से लाभ होता है।

#- शुक्रमेह - 10 ग्राम बला के बीज चूर्ण में इतनी ही काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। इसकी 6 ग्राम मात्रा सुबह-शाम मिश्री या शक्‍कर के साथ सेवन करें। इसके ऊपर से 250 मिलीग्राम गाय के दूध में शक्‍कर मिला कर पिएं। यह शुक्रमेह में अत्‍यंत लाभप्रद होता है।

#- शुक्रमेह - बरियार की ताजी जड़ को पानी के साथ पीसकर छान लें। इसमें थोड़ी शक्‍कर मिलाकर सुबह में पिलाने से शुक्रमेह में लाभ होता है।  


#- शस्त्र- क्षत - बला (sida cordifolia) के पत्‍ते, छाल, जड़ आदि पांचों भाग से पेस्‍ट तैयार करें या इनका रस निकालें। इसे लगाने से हथियार के प्रहार से होने वाले घाव तुरंत भर जाते हैं।

#- शस्त्र-क्षत ( शस्त्र से कटना ) - बलामूल व बलापत्रसवरस को घाव से भर देते है तथा उसी रस में रूई को भिगोकर व्रण के ऊपर बाँध देते है । ऊपर से बार-बार बलामूल रस टपकाते रहने से घाव भर जाता है।

#- श्लीपद - फाइलेरिया में भी बरियार का पौधा बरियार का पौधा (bariyar ka paudha) लाभदायक होता है। बरियार और अतिबला की जड़ का बराबर मात्रा में चूर्ण लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में लेकर गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन कराएं।


#- लकवा ( अंगघात ) - बला की जड़ को पानी में उबालकर 1 माह तक सेवन करने से लकवा में लाभ होता है।
तथा बला ( बरियार ) की जड़ को तेल में पका कर भी मालिश करनी चाहिए।


#- अवबाहुक - अवबाहुक नामक वात विकार में 2 ग्राम बरियार की जड़, या 1 ग्राम फरहद (पारिभद्र) की छाल का काढ़ा बना लें। सुबह-शाम इस काढ़ा को पीने से बहुत लाभ होता है।

#- बांह की जकड़न - 10-20 मिलीग्राम बला की जड़ के काढ़ा में सेंधा नमक मिलाकर पिलाने से बांह के जकड़न में लाभ होता है।

#- मन्यास्तम्भ ( गर्दन घुमकर ठोड़ी कंधे की और हो जाना ) - 2 ग्राम बला की जड़ के साथ 2 ग्राम नीम की छाल मिलाकर काढ़ा तैयार करें। इसे सुबह-शाम पिलाने से एक माह में मन्यास्तम्भ (Cervical spondylitis) में लाभ होने लगता है।


#- गठिया रोग - 5-10 मिलीग्राम बरियार की जड़ से काढ़ा तैयार करें। इस काढ़ा को दिन में 3 बार पिलाने से गठिया में लाभ होता है।

#- गठिया व घाव - अंगुली के पोरों की गांठ में होने वाले घावों पर बला (bala herb) के कोमल पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर बांध दें। उसके ऊपर ठंडा पानी डालते रहें। इस प्रकार दिन में 2-3 बार करने से तुरंत आराम मिलता है।

#- बद गाँठ - बद गांठ को फोड़ने के लिए बला के कोमल पत्तों को पीसकर पुल्टिस (पट्टी) बनाकर बांधें। इसके बाद ऊपर से जल छिड़कते रहें। गांठ शीघ्र फूट जाती है।

#- शारीरिक दौर्बल्य - शारीरिक कमजोरी दूर करने में भी बरियार का पौधा लाभदायक होता है। बला की जड़ की छाल के चूर्ण में बराबर भाग में मिश्री मिला लें। इसका लगभग 3-5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सुबह और शाम सेवन करें।

#- सूखा रोग - बला के पत्‍ते, छाल, जड़ आदि पंचांग का काढ़ा बना लें। इसे 3 मिलीग्राम मात्रा में पिलाएं।

#- सूखा रोग - 50 ग्राम बला पंचांग को 3-4 लीटर पानी में पकाकर स्नान कराने से सूखा रोग में लाभ होता है।

#- मासिकधर्म आदि - बला को मिलाकर मयूर घी तैयार करें। इसकी बूंदों को नाक में रखने, तथा उबटन के तौर पर इस्‍तेमाल करने सिर दर्द, कंठ के दर्द, पीठ दर्द, मासिक धर्म विकार, कान की बीमारी, नाक की बीमारी, आंख की बीमारी तथा जीभ से जुड़ी बीमारियों में लाभ (sida cordifolia medicinal uses) होता है।


#- पागलपन - पागलपन का मुख्य कारण वात दोष का असंतुलित होना होता है। बला में वात शामक गुण होने के कारण यह इसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है। 


#- अण्डकोष की सूजन - अंडकोष की सूजन को कम करने में बला का प्रयोग फायदेमंद होता है इसके लिए बला को  एरण्ड तेल के साथ प्रयोग करते है।  


#- स्वरभंग - स्वरभंग या गले का बैठने जैसी समस्या में बला का उपयोग फायदेमंद होता है क्योंकि बला में एंटीइंफ्लामेटरी गुण होता है जोकि गले को आराम देकर स्वरभंग के लक्षणों में को कम करता है।  


#- श्लीपद - हाथीपाँव एक ऐसी व्याधि है जिसमें मुख्य रूप से कफ और साथ में वात की दुष्टि है। बला में वात और कफ शामक गुण पाए जाने के कारण यह इसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है। 


#- ख़ूनी बवासीर - बलामूल चूर्ण 3 ग्राम लेवें क्योकि बला में ग्राही एवं शीतल गुण के कारण यह खुनी बवासीर से खून को रोक कर उस स्थान पर शीतलता प्रदान करता है साथ हि खून को आने से रोकता है।  


#- बिच्छुदंश - बिच्छू आदि किसी विषैले प्राणी के काटने पर उस स्थान पर वात के दुष्टि के कारण दर्द आदि लक्षण दिखते हैं। ऐसे में बला की वात शामक गुण होने के कारण यह इसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है। बलामूल को गोमूत्र में घिसकर दंश स्थान पर लगायें व बलामूल चूर्ण 5 ग्राम रोगी पिलायें।


#- कफज विसर्प - बला के पत्तों को पीसकर , रस निचोड़कर मालिश करने से कफज विसर्प में लाभ होता है।

#- रोगमुक्ति दौर्बल्य - किसी भी रोग से मुक्ति होने के बाद होने वाली निर्बलता पर बला मूलछाल के चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर लगभग 3-5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ प्रात: सायं लेने से लाभ होता है।

#- बाल ( शिंशु ) रोग - बला पञ्चांग का क्वाथ बनाकर 3 मिलीग्राम मात्रा में पिलाने से तथा 50 ग्राम बला पञ्चांग को 3-4 लीटर पानी में पकाकर छानकर बच्चो को स्नान कराने से सूखा रोग में लाभ होता है।


Sent from my iPhone

No comments:

Post a Comment