Friday 14 May 2021

रामबाण योग :- 83 -:

रामबाण योग :- 83 -:

पारिभद्र)

#- वानस्पतिक नाम : Erythrina variegata Linn.(एरिथीना वेरिगेटा)
Syn-Erythrina indica Lam., कुल : Fabaceae (फैबेसी), अंग्रेज़ी नाम : Coral tree (कोरल ट्री)
संस्कृत-पारिभद, कण्टकीपलाश, मन्दार, परिजातक, रक्तपुष्प; हिन्दी-फरहद, धोबी पलाश, पांगारा; कहते है।
समस्त भारत में यह मुख्यत उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कोंकण एवं उत्तरी कर्नाटक के पर्णपाती वनों, अंडमान एवं निकोबार में पाया जाता है। इसके वृक्ष जंगलों में प्राय पलाश वृक्ष के समीपवर्ती स्थानों में तथा शीघ्र ही बढ़ने वाले होने से, प्राय उद्यानों की बाड़ों में लगाए हुए पाए जाते हैं। पुष्प के भेद के आकार पर इसकी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। मुख्यतया इसकी दो प्रजातियां पाई जाती है।
#- Erythrina varigata-
यह लगभग 10 मी ऊँचा, मध्यमाकार का, शीघ्र बढ़ने वाला वृक्ष होता है। इसके अत्यन्त लाल वर्ण के सुहावने पुष्प वसन्त-ऋतु में पतझड़ के बाद आते हैं। इसकी फली सेम की फली के जैसी, 15-30 सेमी लम्बी, चपटी, चोंचदार, नुकीली, किंचित् ताजी अवस्था में हरी तथा बाद में काली पड़ जाती है।
उपरोक्त वर्णित पारिभद्र की प्रजाति के अतिरिक्त इसकी निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।
#- Erythrina suberosa Roxb.  (पारिभद्रक)-
यह मध्यम आकार का, कंटकयुक्त, पर्णपाती वृक्ष होता है। पुष्प रक्तवर्ण के होते हैं। फलियां लम्बी, चपटी, चोंचदार एवं रोमश होती है। प्रत्येक फली में 6-12, चिकने, भूरे एवं अण्डाकार बीज होते हैं। इसकी छाल पत्र तथा पुष्प का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। इसका प्रयोग रक्ताल्पता, शोथ, वेदना तथा त्वचा विकारों की चिकित्सा में किया जाता है। इसकी लकड़ी का प्रयोग ढोलक बनाने में किया जाता है।
#- आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
पारिभद्र कटु, तिक्त, उष्ण, लघु, कफवातशामक, पथ्य तथा दीपन होता है।यह शोथ, मेद, कृमि, कर्ण रोग; प्रमेह तथा अरोचक नाशक होता है। इसके पत्र पित्तरोग तथा कर्ण रोग नाशक होते हैं। इसके पुष्प कर्ण रोग,
पित्तजविकार तथा शूल नाशक होते हैं। यह हृदय पर अवसादक प्रभाव एवं प्रोटीनेज निरोधक प्रभाव प्रदर्शित करता है।

#- नेत्र विकार -पारिभद्र की छाल को पीसकर पलकों के ऊपर लगाने से अभिष्यंद में लाभ होता है।

#- कर्णशूल - पारिभद्र पत्र या पुष्प स्वरस को कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।

#- मुखरोग - पारिभद्र के पत्रों का क्वाथ बनाकर या पत्र स्वरस को जल में मिलाकर गरारा करने से दंतरोगों तथा मुख रोगों में लाभ होता है।

#- कास ( खाँसी ) - 15-20 मिली पारिभद्र काण्डत्वक् क्वाथ का सेवन करने से कास (खांसी) में लाभ होतहै।

#- अम्लपित्त - शरीर का शोधन करके पारिभद्र-पत्र तथा आँवले से निर्मित क्वाथ (10-20 मिली) का सेवन करने से अम्लपित्त में लाभ होता है।

#- कृमिरोग - 5 मिली पारिभद्र पत्र-स्वरस या पत्र सत् में मधु मिलाकर सेवन करने से आंत्रकृमियों का शमन होता है।

#- अजीर्ण रोग - पारिभद्र पत्र का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से अजीर्ण में लाभ होता है।

#- प्रवाहिका - 5 मिली पारिभद्र पत्र-स्वरस में समभाग एरण्ड तैल मिलाकर प्रयोग करने से प्रवाहिका में लाभ होता है।

#- रक्तातिसार - पारिभद्र छाल का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से रक्तातिसार में लाभ होता है।

#- मूत्रकृच्छ - पारिभद्र पत्र-स्वरस पत्र सत् की 5-10 मिली मात्रा का सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र प्रमेह में लाभ होता है।

#- प्रमेह - पारिभद्र पत्रस्वरस की 5-10 मिली मात्रा का सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।

#- सुखप्रसवार्थ ( टोटका ) - प्रसव की अवस्था में महिला की कमर पर पारिभद्र मूल बाँधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।

#- फिरंग - पारिभद्र पत्र को पीसकर लेप करने से फिरङ्ग के कारण उत्पन्न होने वाले व्रण, संधिवात में लाभ होता है।

#- मासिक विकार - पारिभद्र पत्र का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से आर्तव विकारों (मासिक विकारों) में लाभ होता है।

#- उपदंश - उपदंश तथा उपदंश से होने वाले सन्धिवात, शोथ तथा बंदगांठ पर पारिभद्र के पत्तों को पीसकर लगाने से तथा 5-10 मिली पत्र स्वरस को पिलाने से लाभ होता है।

#- संधिवेदना - पारिभद्र के पत्तों पर एरण्ड का तैल लगाकर, हलका उष्ण करके गांठों (जोड़ों) पर बांधने से संधिवेदना का शमन होता है।

#- अवबाहुक ( कंधे का दर्द ) - प्रतिदिन एक माह तक पारिभद्र-स्वरस (5 मिली) का सेवन करने से अवबाहुक रोग (कंधे के दर्द) में लाभ होता है।

#- व्रण - पारिभद्र पत्र को पीसकर लेप करने से घाव जल्दी भरता है तथा शोथ का शमन होता है।

#- गहरी नींद आना - 5-10 मिली पारिभद्र पत्र-स्वरस को पीने से नींद अच्छी आती है।

#- ज्वर रोग - पारिभद्र काण्डत्वक् का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से ज्वर का शमन होता है।



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