Monday 10 May 2021

रामबाण :- 70 -:

रामबाण :- 70 -:

#- पर्णबीज,पत्थरचूर ।

वानस्पतिक नाम : Bryophyllum pinnatum (Lam.) Oken (ब्रायोफाइलम् पिन्नेटम्)
Syn-Kalanchoe pinnata (Lam.) Pers. कुल : Crassulaceae (क्रस्यूलेसी,अंग्रेज़ी नाम : Air plant (एयर प्लान्ट),संस्कृत-पर्णबीज; हिन्दी-पथरचूर; कहते है।यह बहुवर्षायु पौधा होता है। यह वनस्पति भारत के उष्णकटिबंधीय मैदानी भागों पाई जाती है। पर्णबीज के अतिरिक्त इसकी एक प्रजाति और पाई जाती है, जिसे जख्में हयात कहते हैं। कई स्थानों पर पाषाणभेद के स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है। इसके पत्र अतिसार में अत्यन्त उपयोगी होते हैं। यह पथरी का भेदन करने वाला वस्तिशोधक, त्रिदोषशामक, बवासीर, गुल्म, मूत्रकृच्छ्र तथा व्रण का शमन करने वाला है।इसके पत्र व्रणरोपक रक्त स्भंक होते हैं। इनका प्रयोग रक्तस्राव, अतिसार, अश्मरी तथा विसूचिका में किया जाता है। मूत्रकृच्छ्र और पथरी की यह एक लोकप्रिय औषधि है। पर्णबीज मूत्रल, रक्तप्रदर तथा रक्तपित्तशामक होता है। इसके पत्र रक्तस्रावरोधक, पूयरोधी एवं स्भंक क्रियाशीलता प्रदर्शित करते हैं। इसके पत्र कषाय, अम्ल, मूत्रल, स्तम्भक, रक्तस्तम्भक, विबन्धकारक, पिच्छिल, बलकारक, मृदुकारक, तापहर (शैत्यकारी), क्षति-विरोहक, जठराग्नि दीपक, जीवाणुनाशक तथा शोथनाशक होते हैं।
इसके पत्र कीटनाशक क्रियाओं को प्रदर्शित करते हैं।

#- शिरोवेदना-पर्णबीज के पत्रों को पीसकर सिर पर लेप करने से शिरोवेदना में लाभ होता है।

#- नेत्रपीड़ा-पर्णबीज पत्र-स्वरस को आँख के चारों ओर लेप करने से नेत्र पीड़ा में लाभ होता है।

#- नकसीर-1-2 बूँद पर्णबीज पत्र-स्वरस को नाक में डालने से नकसीर बंद हो जाती है।

#- दमा-50-60 मिली पर्णबीज  पत्र-स्वरस का सेवन कराने से दमा तथा श्वास में लाभ होता है।

#- उदरशूल-5 मिली पर्णबीज पत्र-स्वरस में आवश्यकतानुसार शक्कर 1/2 से 1 ग्राम सोंठ मिलाकर प्रात सायं सेवन करने से बच्चों के उदरशूल में लाभ होता है।

#- उदरशूल - 50 मिली पर्णबीज क्वाथ को पिलाने से उदर शूल का शमन होता है।

#- मंदाग्नि-5-10 मिली पर्णबीज पत्र-स्वरस को दिन में दो बार भोजन से 1 घण्टा पहले पिलाने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है।

#- रक्तातिसार-3-6 मिली पर्णबीज पत्र-स्वरस, जीरा तथा दुगने प्रमाण में घी मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से रक्तातिसार में लाभ होता है।

#- रक्तजप्रवाहिका-5-10 मिली पर्णबीज पत्र-स्वरस का सेवन करने से विसूचिका रक्तज-प्रवाहिका में लाभ होता है।

#- रक्तातिसार - पर्णबीज पत्र-स्वरस में समभाग बिल्व स्वरस तथा 2 गुना नवनीत मिलाकर पीने से रक्तज प्रवाहिका अतिसार में लाभ होता है।

#- प्रमेह-5 मिली पर्णबीज पत्र-स्वरस का सुबह-शाम सेवन करने से प्रमेह, तृष्णा, आध्मान, उदरशूल, श्वास रोग, जीर्ण कास, अपस्मार तथा मूत्र संस्थानगत विकारों में लाभ होता है।

#- मूत्र रोग-पर्णबीज के 40-60 मिली क्वाथ में 2 ग्राम मधु मिलाकर प्रात सायं पिलाने से अश्मरी मूत्र रोगों में लाभ होता है।

#- मूत्रकृच्छ्र-40 मिली पर्णबीज मूल क्वाथ को दिन में दो बार पिलाने से अश्मरीजन्य मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

#- पित्त की थैली की पथरी व योनिस्राव - पर्णबीज के 40 मिली क्वाथ में 500 मिग्रा शिलाजीत और 2 ग्राम मधु मिलाकर प्रात सायं पिलाने से पित्ताश्मरी का भेदन योनिस्राव में लाभ होता है।

#- व्रण-चोट, मोच, व्रण,फोड़े तथा कीटदंश में पर्णबीज के पत्रों को थोड़ा सा गर्म करके, कूटकर रोगग्रस्त भाग पर बाँधने से सूजन, रक्तिमा तथा वेदना कम होकर घाव शीघ्र भर जाता है।

#- घाव-पर्णबीज पत्र में समभाग कंघी (अतिबला) के पत्र मिलाकर पीसकर, तैल में पकाकर क्षत स्थान पर लगाने से शीघ्र ही घाव का रोपण होता है।

#- रक्तचाप-पर्णबीज के वायवीय भागों  से प्राप्त सत् को 5-10 बूँद की मात्रा में प्रयोग करने से रक्तचाप में लाभ होता है।

#- वृश्चिक दंश-पर्णबीज पत्र-स्वरस में नमक मिलाकर वृश्चिक दंश स्थान पर लगाने से दंश जन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- रक्तातिसार-5 मिली पाषाणभेद पत्र-स्वरस को पिलाने से मूत्र विकारों, रक्तातिसार तथा प्रवाहिका में लाभ होता है।

#- अतिसार - 1 या 2 पाषाणभेद पत्र-स्वरस में 500 मिग्रा आर्द्रक चूर्ण या 3 मरिच चूर्ण मिलाकर खिलाने से अतिसार में लाभ होता है।

#- मोच-पाषाणभेद के पत्र-स्वरस अथवा पत्र-कल्क को लगाने से मोच में लाभ होता है।

#- संधिशूल-पाषाणभेद के पत्तों को पीसकर जोड़ों पर लगाने से जोड़ों का दर्द मिटता है।

#- दग्ध-पाषाणभेद के पत्र को पीसकर दग्ध स्थान (अग्नि से जले हुए स्थान) पर लगाने से अत्यन्त लाभ होता है।

#- व्रणशोथ-पाषाणभेद के पत्रों को पीसकर लगाने से व्रणशोथ में लाभ होता है।

#- पामा-पाषाणभेद के पत्रों को पीसकर लगाने से दाद, खुजली, पामा तथा विद्रधि में लाभ होता है।

विशेष  : इसका सेवन गर्भावस्था, प्रसूता त्रियों तथा शिशुओं में निषिद्ध है।अश्मरी की चिकित्सा में अत्यंत लाभकारी है।


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