Sunday 2 May 2021

रामबाण योग :- 49 -:

रामबाण योग :- 49 -:


#- नींबू ( काग़ज़ी नींबू ) सॉर अॉरेंज ( Sour orange ) वनस्पतिक नाम - Citrus aurantifolia ( Christm) Swingle ( सिट्रस अॉरेन्टिफोलिया ) तथा कुल का नाम है- Rutaceae ( रूटेसी ) कहते है।यह काग़ज़ी नींबू खट्टा , वातनाशक , दीपक- पाचक , और लघु होता है। नींबू कृमिनाशक , उदरशूलनाशक , गृहबाधानाशक , रुचिकारक , वात , पित्त व कफज विकारों तथा शूल में अत्यन्त लाभदायक है।इसके फल अम्ल तिक्त , स्तम्भक , तापजनन , विरेचक , क्षुधावर्धक ,पाचक , पूयरोधी , स्वेद जनन तथा कृमिघ्न होते है। नींबू मृदुविरेचक , ज्वरघ्न तथा प्रशामक होता है। नींबू का सार अनाक्सीकारक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। नींबू का मेथेनाल- सार जीवाणुरोधी क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है । नींबू का घन- स्वरस अर्बुद - कोशिका रेखाओं पर प्रफलनरोधी प्रभाव प्रदर्शित करता है।

#- केश विकार - नींबू के रस में आँवला के फलो को पीसकर बालों में लगाने से रूसी मिटती है तथा बालों का झड़ना भी रूक जाता है।

#- नेत्ररोग - नींबू के रस को लोहे की खरल में लोहे के दस्ते ( मूसली ) से घोटते- घोटते जब रस काला पड़ जाये , तब नेत्र के आसपास पतला- पतला लेप करने से नेत्रशूल का शमन होता है।

#-नेत्रशूल - नींबू के रस में अफ़ीम मिलाकर लोहे के तवे पर पीसकर नेत्र के बाहर लेप करने से नेत्रशूल का शमन होता है।

#- मुखरोग - जीभ पर उत्पन्न छालें व मसुडों पर नींबू का छिलका रगड़ने से शीघ्र लाभ होता है।

#- तृषा - शर्बत बनाकर , उसमें नींबू स्वरस डालकर पीने से तृषा ( प्यास ) का शमन होता है।

#- उदरशूल - 1-2 ग्राम कच्चे नींबू के छिलके को पीसकर खाने से उदरशूल का शमन होता है।

#- वमन - भोजन के बाद होने वाले वमन को रोकने के लिए 5-10 मिलीग्राम ताज़े नींबू स्वरस को पीना चाहिए ।

#- अजीर्ण - एक नींबू के रस में थोड़ा अदरक व कालानमक मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण , मंदाग्नि तथा आमवात का शमन होता है।

#- अजीर्ण - 3 मिलीग्राम नींबू का रस , 10 मिलीग्राम चूने का पानी तथा मधु मिलाकर 20-20 बूँद की मात्रा में लेने से अजीर्ण व उदरशूल का शमन होता है।

#- अरूचि - नींबू के शर्बत में दोगुना पानी , 1-2 नग लौंग और कालीमिर्च मिलाकर पीने से अरूचि का शमन होता है।

#- अरूचि - नींबू को काटकर कालानमक बुरककर चाटने भी अरूचि का शमन होता है।

#- अरूचि - 5-10 मिलीग्राम नींबू स्वरस का सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है।

#- उदरान्त्र कृमि - नींबू के रस का सेवन करने से आँतों के अन्दर टायफायड , अतिसार , हैज़ा , इत्यादि के जो भी कीटाणु पैदा होते है वे सब मर जाते है।

#- कृमि नि: सारण - नींबू पत्रस्वरस में मधु मिलाकर सेवन करने से उदर कृमियों का का नि: सारण ( बाहर निकलना ) होता है।

#- विसुचिका - प्रतिदिन दो नींबू के रस का सेवन भोजन से पुर्व करने से या रस में मिश्री मिलाकर सेवन करने से विसुचिका ( हैज़ा ) में लाभ होता है।

#- पित्तज विकार - एक नींबू रस में 5 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकार शान्त होते है।

#- अतिसार - 30 मिली काग़ज़ी नींबू स्वरस को दिन में 2-3 बार सेवन करने से लाभ होता है।

#- उदर विकार - 5 मिलीग्राम नींबू फलस्वरस को मधु मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण , अम्लपित्त , पित्तज छर्दि , तथा अत्यधिक लालास्राव में लाभ होता है।

#- आन्त्रगत विकार - 5-10 मिलीग्राम नींबू फलस्वरस में कालानमक मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण , अम्ल उदगार , तृष्णा , मांसाहार जन्य गुरूता , हृलास , छर्दि , अजीर्णजन्य उद्वेष्ट तथा आन्त्रगत विकारों में लाभ होता है।

#- आन्त्रिकज्वर - नींबू फल स्वरस में नारिकेलादक मिलाकर सेवन करने से आंत्रिक ज्वर तथा हृलास में लाभ होता है।

#- आहारजन्य विषाक्तता - नींबू फल स्वरस में समभाग पलाण्डू ( प्याज़ ) स्वरस तथा 1 ग्राम कर्पुर मिलाकर सेवन करने से विसुचिका , प्रवाहिका , तथा आहार जन्य विषाक्तता ( फूड पोयजिनिक ) में लाभ होता है।

#- मूत्राशय शोथ - नींबू फलस्वरस को उबालते हुए जल में मिलाकर सेवन करने से मूत्राश शोथ तथा वृक्कवस्तिगत दाह एवं रक्तस्राव में लाभ होता है।

#- वृक्क विकार - नींबू फलस्वरस में नारिकेलादक मिलाकर सेवन करने से अल्पमूत्रता , वृक्कशोथ , बस्तिशोथ , उच्च रक्तचाप तथा गर्भावस्था जन्य विषाक्तता में लाभ होता है।

#- अल्पमूत्रता - नींबू फलस्वरस मे नारिकेलादक अथवा गाजर स्वरस मिलाकर सेवन करने से शोथ एवं अल्पमूत्रता में लाभ होता है।

#- कामला - नींबू फलस्वरस को रोगी की नेत्रों मे लगाने से कामला में लाभ होता है।

#- यकृत विकार - गुनगुने पानी में नींबू फलस्वरस व मिश्री मिलाकर सुबह चाय की तरह पीने से यकृत की क्रिया सुधरती है । तथा यकृत विकारों का शमन होता है।

#- यकृत विकार - 5-10 मिलीग्राम नींबू रस में भूनी हुई 500 मिलीग्राम अजवायन व सैंधानमक स्वादानुसार मिलाकर सेवन करने से यकृत और प्लीहा रोगों में लाभ होता है।

#- प्लीहावृद्धि - नींबू का आचार खाने से बढ़ी हुई प्लीहा सामान्य हो जाती है।

#- प्लीहावृद्धि - नींबू फलस्वरस समभाग प्याज़ स्वरस मिलाकर सेवन करने से यकृतप्लीहावृद्धि तथा विषम ज्वर में लाभ होता है।

#- आमवात, गठिया - 1-2 मिलीग्राम नींबू फलस्वरस को 4-4 घन्टे के अन्तर पर सेवन करने से आमवात ( गठियारोग ) में लाभ होता है।

#- त्वचा विकार - दाद , खाज , चमड़ी पर काले दाग इत्यादि रोगों पर नींबू काटकर रगड़ने से लाभ होता है।

#- त्वचारोग - नींबू फलस्वरस में करौंदा की जड़ को पीसकर लगाने से खाज में तुरन्त लाभ होता है।

#- त्वक विवर्णता - नींबू फलस्वरस का प्रतिदिन प्रयोग करने से त्वक ( त्वचा ) शुष्कता तथा त्वकविवर्णता में लाभ होता है।

#- त्वचारोग - नींबू फलस्वरस को एक गिलास उबले हुए दूध मे डालकर ग्लिसरीन मिलाकर , आधे घन्टे तक रख दें, फिर उसे शरीर पर लगाने से हस्तपाद - स्फुटन , पीडिका , त्वक - शुष्कता आदि त्वक विकारों मे लाभ होता है।

#- मुँहासे - नींबू फलस्वरस चेहरे पर मलने से कील मुँहासे ठीक हो जाते है।

#- झाई व झुर्रियाँ - नींबू फलस्वरस में मधु मिलाकर चेहरे पर लगाने से झाई व झुर्रियाँ दूर होती होती है।

#- उन्माद - नींबू फलस्वरस को मस्तक पर लेप करने से उन्माद में लाभ होता है।

#- मोटापा - सुबह सुबह ख़ाली पेट 200 मिलीग्राम गुनगुने जल में 2 चम्मच नींबू फलस्वरस व 1 चम्मच मधु मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।

#- ज्वर - नींबू के दो भाग कर एक भाग में कालीमिर्च पावडर और सैंधानमक भरकर दूसरे भाग में मिश्री भरकर दोनों को गरम कर चूसने से वर्षा- ऋतु के बाद होने वाले आन्त्रज्वर में लाभ होता है।

#- मौसमी बुखार - 25 मिलीग्राम नींबू फलस्वरस , 25 मिलीग्राम चिरायता का काढ़ा , दोनों को मिलाकर थोड़ा - थोड़ा करके पीने से मौसमी बुखार ठीक होता है।

#- कीटदंश - मच्छर आदि विषैले कीटों के दंश पर नींबू का रस लगाने से लाभ होता है।

#- बिच्छुदंश - नींबू के बीजों की मींगी 9 ग्राम तथा सैंधानमक 8 ग्राम , दोनों को पीसकर , मिलाकर सेवन करने से वृश्चिक दंश विषाक्त प्रभावों का शमन करता है।

#- जयपाल ( जमालघोटा ) जन्य विषाक्तता - नींबू फलस्वरस में गौतक्र ( गाय के दूध से बनी छाछ ) या जल मिलाकर प्रयोग करने से जमालघोटा का विष के प्रभावों का शमन होता है।

#- दंशजन्य विषाक्तता - सज्जीखार , यवक्षार , काले नमक को नींबू फलस्वरस मे घोटकर बर्रे के डंक ( दंश स्थान ) पर लगाने से दंशजन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- रक्तस्राव , नकसीर - 1 कप चाय पीने लायक गर्म गाय का दूध में आधा नींबू निचोड़कर दूध फटने से पहले तुरन्त पीने से रक्तस्राव को तुरन्त बन्द कर देता है। इस प्रयोग को 1-2 बार से ज़्यादा न करे।


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