Sunday 16 May 2021

रामबाण योग :- 87 -:

रामबाण योग :- 87 -:

बबूल -

आयुर्वेद के अनुसार, बबूल एक बहुत ही उत्तम औषधि है। इसलिए अगर आप बीमारियों में बबूल का इस्तेमाल करते हैं निःसंदेह आपको बहुत फायदा मिल सकता है। आइए जानते हैं कि जिस पेड़ को बहुत ही साधारण समझा जाता है, उस बबूल से क्या-क्या लाभ मिल सकता है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती हैं। इस पेड़ में कांटे होते हैं। गर्मी के मौसम में बबूल के पेड़ (babool tree) पर पीले रंग के गोलाकार गुच्छों में फूल खिलते हैं। ठंड के मौसम में फलियां आती हैं। बबूल की छाल और गोंद का व्यवसाय किया जाता है। इसकी निम्नलिखित प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता हैः-

त्रिकंटकी

,

श्वेत

खदिरी

(

Acacia

senegal

(Linn.) Willd.)


यह बबूल की प्रजाति का पेड़ है। यह छोटा वृक्ष होता है, जिसमें कांटे होते हैं। इसकी छाल पतली तथा गहरे भूरे रंग की होती है। पुराना हो जाने पर काले रंग के हो जाती है। इसके पौधे से रस निकलता है, जिसका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है।

क्षुद्र

बर्बुर

,

क्षुद्र

किंकिरात

(

Acacia

arabica

var.

nilotica

(Linn.) Benth.)


यह लम्बा, झाड़ीदार और कांटेदार वृक्ष होता है। इसके कांटे लम्बे तथा तीखे होते हैं। इसके पत्ते बबूल के पत्तों जैसे होते हैं, लेकिन उससे कुछ बड़े और गहरे हरे रंग के होते है। इसके फूल पीले रंग के होते हैं। इसकी फलियां लम्बी होती हैं। फलियां कच्ची अवस्था में हरे रंग की, चपटी तथा मुड़ी हुई होती हैं।

बबूल का वानस्पतिक नाम अकेशिया निलोटिका (Acacia nilotica (Linn.) Willd ex Delile, Syn Acaciaarabica (Lam.) Willd.) है, और ये मिमोसेसी (Mimosaceae) कुल से है। Hindi – बबूर, बबूल, कीकर, English – ब्लैक बबूल (Black babool), गम अरेबिक ट्री (Gum arabic tree), इण्डियन अरेबिक ट्री (Indian arabic tree),Sanskrit – बब्बूल, किङिकरात, सपीतक, आभा, युग्मकण्टक, दृढारूह, सूक्ष्मपत्ते, माल , बबूल (Babul ) कहते है।

#- पसीने में बदबू आना - अधिक पसीना आने की परेशानी में बबूल के पत्ते और बाल हरड़ को बराबर-बराबर मिलाकर महीन पीस लें। इस चूर्ण से पूरे बदन पर मालिश करें। कुछ समय बाद नहा लें। नियमित रूप से यह प्रयोग कुछ दिन तक करने से पसीना आना बन्द हो जाता है।

#- पसीना अधिक आना - बबूल के पत्ते के पेस्ट का उबटन लगाने से भी पसीना आना बंद हो जाता है।


#- जलन , दाह - शरीर के किसी अंग में जलन हो रही हो तो बबूल की छाल का काढ़ा बना लें। इसमें मिश्री मिलाकर पीने से जलन शांत होती है।


#- पीठदर्द, कटिशूल - कमर दर्द में बबूल से फायदा लेने के लिए बबूल की छाल, कीकर की फली और गोंद को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से कमर दर्द से आराम मिलता है। 


#- दाद-खाज - दाद (खुजली) को ठीक करने के लिए बबूल के फूलों को सिरके में पीस लें। इसे खुजली (दाद) वाले अंग पर लगाएं। दाद और खुजली में लाभ होता है।


#- व्रण - बबूल के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाएं। इससे घाव तुरंत ठीक हो जाता है।
 
#- खाँसी - बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का चूर्ण बनाएं। इसके 1-2 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।

#- खाँसी - 1 ग्राम बबूल के चूर्ण का सेवन करने से भी खांसी ठीक होती है।


#- उदररोग - बबूल की छाल का काढ़ा बना लें। काढ़ा जब थोड़ा गाढ़ा हो जाए तो इसे 1-2 मिली की मात्रा में मट्ठे के साथ पिएं। इससे पेट की बीमारी में लाभ होता है। इस दौरान सिर्फ गौतक्र ( मट्ठे ) का सेवन करना चाहिए।

#- पेटदर्द - पेट के दर्द से आराम पाने के लिए बबूल के फल को भून लें। इसका चूर्ण बनाकर, उबले हुए जल के साथ सेवन करें। इससे पेट दर्द से राहत मिलती है।

#- जलोदर रोग - बबूल के छाल से बने काढ़ा को छाछ के साथ पिएं। आहार में गौतक्र ( छाछ ) का सेवन करने से जलोदर रोग में लाभ होता है।


#- मंदाग्नि - भूख की कमी या भोजन से अरुचि की समस्या को ठीक करने के लिए बबूल या कीकर की फली का अचार लें। इसमें सेंधा नमक मिलाकर खिलाएं। इससे भूख बढ़ती है, और जठराग्नि प्रदीप्त होती है।


#- मुँह के छालें - मुंह के छाले की परेशानी में भी बबूल से फायदा मिल सकता है। बबूल की छाल के काढ़ा से 2-3 बार गरारे करें। इससे मुंह के छाले ठीक होते हैं।


#- दाँत दर्द - दांतों में दर्द होने पर बबूल या कीकर की फली (babul ki fali) का छिलका लें। इसमें बादाम के छिलके की राख मिला लें। इसमें नमक मिलाकर मंजन करें। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है।

#- दातून - इसी तरह बबूल की कोमल टहनियों से दातून करने से भी दांतों की बीमारी ठीक होती है। दांत मजबूत होते हैं।

#- दाँत दर्द - दांतों के दर्द में बबूल की छाल, पत्ते, फूल और फलियां लें। सभी को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण से मंजन करने से दांतों के रोग दूर होते हैं।

#- दाँत दर्द - बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है।

#- दाँत दर्द - बबूल की छाल के काढ़ा से गरारा करने से भी दांतों के दर्द से राहत मिलती है।


#- कण्ठरोग -बबूल के पत्ते और छाल एवं बड़ की छाल लें। सबको बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह छानकर रख लें। इससे कुल्ला (गरारा) करने से गले के रोग मिट जाते हैं।

#- कण्ठरोग - बबूल की छाल के काढ़ा से गरारा करें। इससे भी कंठ के रोग में लाभ होता है।


#- आखदर्द व सूजन - बबूल के कोमल पत्तों को गाय के दूध में पीस लें। इसका रस निकालकर 1-2 बूंद आंखों में डालें। इससे आंखों के दर्द ठीक होते हैं। इससे आंखों की सूजन में भी लाभ होता है।

#- आँख से पानी बहना - आंखों से पानी बहने पर बबूल के पत्तों का काढ़ा बनाएं। इसमें शहद मिलाकर काजल की तरह लगाएं। इससे आंखों से पानी बहने की परेशानी ठीक होती है।

#- आँखरोग - बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का काढ़ा बनाकर आंखों को धोएं। इससे आंखों की अन्य बीमारी भी ठीक हो जाती है।


#- श्वसनतंत्र - बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का चूर्ण बनाएं। इसके 1-2 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सेवन करे। इससे श्वसन-तंत्र की बीमारी में लाभ होता है।

#- श्वासरोग - 1 ग्राम बबूल गोंद का सेवन करने से सांसों की बीमारी ठीक होती है।


#- मूत्रदाह - बबूल की 10-20 कोपलों को एक गिलास पानी में भिगोएं। इसे रात भर पानी में ही रखें। सुबह पानी को साफ कर पिएं। इससे पेशाब में जलन की समस्या में लाभ मिलता है।

#- बार- बार पेशाब आना - 15-30 मिली बबूल के तने की छाल का काढ़ा बनाएं। इसका सेवन करने से बार-बार पेशाब आने की परेशानी ठीक हो जाती है।


#- वीर्य विकार - बबूल की फली को छाया में सुखाकर पीस लें। बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम रोज पानी के साथ लें। इससे वीर्य के विकार ठीक होते हैं।

#- वीर्यवृद्धि - बबूल के गोंद को गाय के घी में तलें। 5 ग्राम की मात्रा में गौदुग्ध के साथ खाने से पुरुषों का वीर्य बढ़ता है।

#- शुक्रमेह,शुक्राणु रोग - 2 ग्राम बबूल के पत्ते में 1 ग्राम जीरा तथा चीनी मिलाएं। इसे 100 मिली गाय के दूध में मिलाकर सेवन करें। इससे शुक्राणु संबंधित रोगों में लाभ होता है।


#- स्वपनदोष - बबूल के उपयोग से स्वप्न दोष का उपचार होता है। 20 ग्राम बबूल पंचांग में 10 ग्राम मिश्री मिलाएं। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम रोज सेवन करें। इससे स्वप्न दोष में लाभ होगा।


#- योनि का ढीलापन - एक हिस्सा बबूल की छाल को 10 हिस्सा पानी में रात भर भिगोएं। सुबह पानी को उबाल लें। जब पानी आधा रह जाए तो छान कर बोतल में भर लें। इस पानी से योनि को धोने से योनि का ढीलापन दूर होता है।

#- योनि का ढीलापन - बबूल की फलियों का चिपचिपा पदार्थ लें। इससे थोड़े मोटे कपड़े को 7 बार गीला करके सुखा लें। संभोग से पहले इस कपड़े के टुकड़े को गाय के दूध में भिगोएं। इस दूध को पी लें। इससे योनि के ढीलापन की समस्या दूर होती है।


#- मासिक विकार - बबूल का 4.5 ग्राम भुना हुआ गोंद लें। गेरु 4.5 ग्राम लें। इनको पीसकर सुबह सेवन करने से मासिक विकारों में लाभ होता है।

#- मासिकधर्म - बबूल की 20 ग्राम छाल को 400 मिली पानी में उबालें। जब काढ़ा 100 मिली बच जाए तो दिन में तीन बार पीएं। इससे मासिक धर्म की बीमारी जैसे मासिक धर्म में खून अधिक आने की समस्या ठीक होती है।


#- मेनोरेजिया - बबूल के गोंद और गेहूं को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसे 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मेनोरेजिया में लाभ होता है।

#- श्वेतप्रदर - ल्यूकोरिया के इलाज के लिए 10 ग्राम बबूल की छाल को 400 मिली जल में पकाएं। जब काढ़ा 100 मिली रह जाए तो काढ़ा में 2-2 चम्मच मिश्री मिला लें। इसे सुबह-शाम पिएं। इससे ल्यूकोरिया में फायदा होता है।

#- ल्यूकोरिया - बबूलकाढ़ा में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि को धोने से भी ल्यूकोरिया में फायदा मिलता है।

#- ल्यूकोरिया - इसके अलावा 15-30 मिली बबूल के तने की छाल का काढ़ा का सेवन करें। इससे भी ल्यूकोरिया में लाभ होता है।


#- सूजाक - बबूल की 10-20 कोपलों को एक गिलास पानी में भिगोएं। इसे रात भर ऐसे ही रहने दें। सुबह पानी को साफ कर पिएं। इससे सूजाक में लाभ मिलता है।

#- सूजाक - 10 ग्राम बबूल की कोंपलों को रात भर एक गिलास पानी में भिगोएं। इसे सुबह मसलकर छान लें। इसमें 20 ग्राम गर्म गाय का घी मिलाकर पिलाएं। दूसरे दिन भी ऐसा ही करें। तीसरे दिन घी नहीं मिलाएं। चौथे और पांचवे दिन सिर्फ इसका हिम (रात भर का भिगोया हुआ पानी) पीने से सूजाक में बहुत लाभ होता है।

#- योनिदौर्गन्धय, सूजन, सूजाक - बबूल की 10 ग्राम गोंद को एक गिलास पानी में डालें। इसकी पिचकारी देने से योनि में दर्द और सूजन की परेशानी ठीक होती है। इससे सूजाक रोग के कारण होने वाली जलन भी ठीक होती है।

#- सूजाक - बबूल के 5-10 पत्तों को 1 चम्मच शक्कर और 2 नग काली मिर्च के साथ या 5-6 अनार के पत्तों के साथ पीसकर छान लें। इसे पीने से सूजाक में लाभ होता है।


#- उपदंश - बबूल के पत्ते से चूर्ण बना लें। इसे सिफलिश वाले घाव पर छिड़कें। इससे घाव तुरंत ठीक हो जाता है।

#- सूतिका रोग - जो महिलाएं हाल-फिलहाल में मां बनी हैं। उनको होने वाली समस्याओं में बबूल से लाभ होता है। बबूल की छाल का 10 ग्राम चूर्ण बनाएं। इसमें 3 नग काली मिर्च मिलाएं। दोनों को पीस लें। इसे सुबह-शाम खाएं। इस दौरान सिर्फ बाजरे की रोटी और गाय का दूध लें। इससे गंभीर सूतिका रोग में भी लाभ होता है।

#- प्रसूतिकाल की कमज़ोरी को करें दूर - बबूल के गोंद को गाय के घी में तलें। इसे प्रसूति काल में स्त्रियों को खिलाने से शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है।

#- दस्त - बबूल के 8-10 कोमल पत्तों का रस लें। आप रस में 500 मिग्रा जीरा और 1-2 ग्राम अनार की कलियों को भी मिला सकते हैं। इसे 100 मिली पानी में पीस लें। उस पानी में एक टुकड़ा गर्म ईंट का बुझा लें। दिन में 2-3 बार 2 चम्मच इस पानी को पिलाने से दस्त बंद हो जाता है।

#- दस्त - बबूल के पत्ते के रस को गौतक्र ( छाछ ) में मिलाकर पिलाने से हर प्रकार के दस्त पर रोक लगती है।

#- दस्त - दस्त की परेशानी में बबूल की दो फलियां खाकर ऊपर से गौतक्र ( छाछ ) ीने से दस्त बंद हो जातहै।

#- दस्त - दस्त को बंद करने के लिए बबूल के पत्तों से बने पेस्ट को जल में घोलकर पिएं। इससे फायदा होता है।

#- कफज दस्त - बबूल के पत्ते, और शयामले जीरे को बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसे पीसकर 10 ग्राम की मात्रा में रात के समय देने से कफज विकार के कारण होने वाले दस्त में लाभ होता है।


#- दस्त - बबूल की 10 ग्राम गोंद को 50 मिली पानी में भिगोएं। इसे मसलकर छानें। इसे पिलाने से दस्त और ख़ूनी पेचिश में लाभ होता है।

#- पेचिश - बबूल की कोमल पत्तियों के एक चम्मच रस में थोड़ी-सी हरड़ का चूर्ण या शहद मिलाएं। इसका सेवन करने से अतिसार व प्रवाहिका में फायदा होता है।

#- पेचिश - बबूल के तने की छाल का काढ़ा बनाएं। इसका सेवन करने से दस्त और पेचिश में लाभ होता है।

#- पेचिश - बबूल के पत्ते का काढ़ा अथवा पत्ते के पेस्ट को तण्डुलोदक के साथ प्रयोग करने से दस्त और पेचिश में फायदा होता है।


#- पिलिया - बबूल के फूलों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं , इसे 10 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।


#- टूटी हड्डी को जोड़ना - बबूल की फली (babul ki fali) को अधिक मात्रा में लें। इनका चूर्ण बना लें। चूर्ण को रोज सुबह-शाम सेवन करने से टूटी हड्डी तुरंत जुड़ जाती है।

#- टूटी हड्डी को जोड़ना - बराबर-बराबर मात्रा में बबूल या कीकर की फली, त्रिफला (आमलकी, हरीतकी, बहेड़ा) तथा व्योष (सोंठ, मरिच, पिप्पली) के चूर्ण लें। इसमें बराबर मात्रा में गुग्गुलु मिलाकर सेवन करें। इससे भी हड्डियों के टूटने की बीमारी में लाभ मिलता है।


#- ख़ून बहना - शरीर के किसी भी अंग से रक्तस्राव हो रहा हो तो उस अंग पर बबूल के पत्तों का रस लगाएं। इससे रक्तस्राव रुक जाता है।

#- ख़ून बहना - बबूल के सूखे पत्तों या सूखी छाल का चूर्ण रक्तस्राव वाले स्थान पर छिड़कें। इससे रक्तस्राव में लाभ होता है।

#- ख़ून बहना - 10-15 बबूल के कोमल पत्ते लें। इसमें 2-4 नग काली मिर्च और 2 चम्मच चीनी मिलाएं। इसे पीस कर छान लें। इसे पिलाने से आमाशय से होने वाला रक्तस्राव ठीक हो जाता है।

#- तृष्णा - बबूलछाल काढ़ें मे मिश्री मिलाकर पिलाने से दाह एवं तृष्णा में लाभ होता है।

#- बबूल के अधिक सेवन से स्तन से संबंधित रोग होता है। अधिक मात्रा में इसके निर्यास का प्रयोग करने से गुदा रोग होता है।अगर ऐसी कोई समस्या होती है तो इसका दर्पनाशकबबूल का दर्पनाशक वनफ्शा है।बनफ्शा का प्रयोग लाभदायक होता है।


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