Tuesday 4 May 2021

रामबाण :- 56 -:

रामबाण :- 56 -:


#- पलाश का वानास्पतिक नाम Butea monosperma (Lam.) Taub. (ब्यूटिया मोनोस्पर्मा) Syn-Butea frondosa Roxb होता है। टेसू के फूल का कुल : Fabaceae (फैबेसी) होता है। पलाश को अंग्रेजी में The Forest flame ( फॉरेस्ट फ्लेम) कहते हैं। लेकिन भिन्न-भिन्न भाषाओं में इसका नाम अलग है, जैसे-पलाश, किंशुक, पर्ण, रक्तपुष्पक, क्षारश्रेष्ठ, वाततोय, ब्रह्मवृक्ष;कहते है। उम्र के बढ़ने के साथ मोतियाबिंद के समस्या से सभी वयस्क परेशान होने लगते हैं। लेकिन पलाश का प्रयोग इस तरह से करने पर आँख की बीमारियों के कष्ट को कम किया जा सकता है। पलाश की ताजी जड़ों का अर्क निकालकर एक-एक बूँद आँखों में डालते रहने से मोतियाबिंद, रतौंधी इत्यादि सब प्रकार के आँख के रोगों से राहत मिलती है।

#- नकसीर - आम

तौर

पर

नाक

से

खून

बहने

के

बहुत

सारे

कारण

होते

हैं

,

ज्यादा

गर्मी

,

ज्यादा

ठंड

या

किसी

बीमारी

के

साइड

इफेक्ट

के

तौर

पर

भी

ऐसा

होता

है।रात

भर

100

मिली

ठंडे

पानी

में

भीगे

हुए

5-7

पलाश

फूल

को

छानकर

सुबह

थोड़ी

मिश्री

मिलाकर

पीने

से

नकसीर

बंद

हो

जाती

है।




#- गलगण्ड - पलाश का औषधीय गुण घेंघा को ठीक करने में मदद करता है। पलाश के जड़ को घिसकर कान के नीचे लेप करने से गलगंड में लाभ होता है।


#- मंदाग्नि - पलाश की ताजी जड़ का रस निकालकर अर्क की 4-5 बूँदें पान के पत्ते में रखकर खाने से भूख बढ़ती है।


#- अफारा - पलाश की छाल और शुंठी का काढ़ा या पलाश के पत्ते का काढ़ा बना लें। 30-40 मिली मात्रा में दिन में दो बार पिलाने से आध्मान (अफारा) तथा उदरशूल या पेट दर्द में आराम मिलता है।

#- अफारा - प्लान के पत्तों का क्वाथ बनाकर 30-40 मिलीग्राम मात्रा में पिलाने से अफार व उदरशूल में लाभ होता है।


 #- पेट के कीडे -एक चम्मच पलाश बीज चूर्ण को दिन में दो बार खाने से पेट के सब कीड़े मरकर बाहर जाते हैं।
#- कृमिनाशक - -पलाश के बीज, निशोथ, किरमानी अजवायन, कबीला तथा वायविडंग को समान मात्रा में मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ देने से सब प्रकार के कृमि नष्ट हो जाती है।


#- अतिसार - अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का  नाम ही नहीं ले रहा तो ऐसे में 1 ग्राम पलाश की गोंद में थोड़ी दालचीनी और 65 मिलीग्राम अफ़ीम मिलाकर पिलाने से अतिसार तुरन्त बन्द होता है ऐसे मे यह का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।

#- अतिसार - 1 चम्मच पलाश बीज के काढ़े में 1 चम्मच बकरी का दूध मिलाकर खाना खाने के बाद दिन में तीन बार सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है। इस समय में बकरी का उबला हुआ ठंडा दूध और चावल ही लेना चाहिए।


#- बवासीर - अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है और अगर इसको नजरअंदाज किया गया तो स्थिति और भी बदतर होकर बवासीर से खून निकलने लगता  है।  उसमें पलाश के पत्रों में गाय का घी का छौंक लगाकर गाय के दूध से बनी दही की मलाई के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है ऐसे में यह घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है।

#- रक्तार्श -1-2 ग्राम पलाश पञ्चाङ्ग की भस्म को गुनगुने गाय के घी के साथ पिलाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में बहुत लाभ होता है। इसका कुछ दिन लगातार सेवन करने से मस्से सूख जाते हैं।
-पलाश के पत्रों में घी की छौंक लगाकर दही की मलाई के साथ सेवन करने से अर्श (बवासीर) में लाभ होता है।


#- मूत्रकृच्छ - मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। पलाश के फूलों को उबालकर पीसकर सूखा कर पेडू पर बाँधने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र संबंधी समस्या) तथा सूजन में लाभकारी होता है।

#- मूत्र - रक्तस्राव - 20 ग्राम पलाश के पुष्पों को रात भर 200 मिली ठंडे पानी में भिगोकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलाने से गुर्दे का दर्द तथा मूत्र के साथ रक्त का आना बंद हो जाता है।

#- मूत्रकृच्छ - -पलाश की सूखी हुई कोपलें, गोंद, छाल और फूलों को मिलाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर 2-4 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन गाय के दूध के साथ सुबह शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) में लाभ होता है।


#- प्रमेह, मधुमेह - आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि खाने का नियम और ही सोने  का। फल ये होता है कि लोग को मधुमेह या डायबिटीज की शिकार होते जा रहे हैं।ऐसे में प्लान की कोंपलों को छाया में सुखाकर कूट- छानकर गुड मिलाकर , 9 ग्राम की मात्रा में प्रात:काल सेवन करने से प्रमेह मे लाभ होता है।

#- मधुमेह –पलाश की कोंपलों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर गुड़ मिलाकर, 9 ग्राम की मात्रा में सुबह सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।

#- पित्त प्रमेह , मधुमेह -पलाश एवं कुसुम्भ के फूल तथा शैवाल को मिलाकर काढ़ा बनायें, ठंडा होने पर 10-20 मिली काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाने से पित्त प्रमेह में लाभ होता है।

#- शीघ्रपत्तन-पलाश की जड़ों का रस निकालकर, उस रस में 3 दिन तक गेहूँ के दानों को भिगो दें। उसके बाद इन दानों को पीसकर हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन और कामेन्द्रियों का ढीला पड़ जाने उससे राहत दिलाने में मदद करता है।


#अण्डकोष सूजन - पलाश का औषधीय गुण अंडकोष के सूजन को कम करने में मदद करता है।पलाश के फूलों की पुल्टिस बनाकर नाभि के नीचे बाँधने से मूत्राशय संबंधी रोग तथा अंडकोष में बाँधने से अंडकोष सूजन कम होता है।

#- हाईड्रोसिल , अण्डकोष वृद्धि - पलाश के फूलो को पानी मे उबालकर गुनगुने करके अण्डकोष पर बाँधने से ठीक होते है।

#- अण्डकोष वृद्धि -पलाश की छाल को पीसकर 4 ग्राम की मात्रा में लेकर जल के साथ दिन में दो बार देने से अंडवृद्धि में लाभ होता है।


#- गर्भनिरोधनार्थ - पलाश का औषधीय गुण प्राकृतिक गर्भनिरोधक जैसा काम करता है। 10 ग्राम पलाश बीज, 20 ग्राम शहद और 10 ग्राम गाय के घी, इन सबको घोटकर, इसमें रूई को भिगोकर बत्ती बनाकर स्त्री प्रसंग से तीन घण्टे पहले योनि में रखने से गर्भधारण नही होता।


#- सन्धिवात, जोड़ो का दर्द - अक्सर उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों में दर्द होने की परेशानी शुरू हो जाती है लेकिन पलाश का सेवन करने से इससे आराम मिलता है। पलाश के बीजों को महीन पीसकर मधु के साथ मिलाकर दर्द वाले स्थान पर लेप करने से संधिवात या  अर्थराइटिस में लाभ होता है।

#- बँद गाँठ -ढाक के पत्तों की पुल्टिस बाँधने से 3-5 ग्राम पलाश जड़ के छाल का चूर्ण बनाकर उसको गाय के दूध के साथ पीने से बंदगाँठ में लाभ होता है।


#- हाथीपाँव - 100 मिली पलाश के जड़ के रस में समान मात्रा में सफेद सरसों का तेल मिलाकर दो चम्मच सुबह-शाम पीने से श्लीपद रोग या हाथीपाँव  में लाभ होता है।


#- घाव - अगर घाव सूख नहीं रहा है तो पलाश का इस तरह से प्रयोग करने पर जल्दी आराम मिलता है। घावों पर पलाश के गोंद का चूर्ण छिड़कने से जल्दी ठीक होता है।


#- कुष्ठरोग - कुष्ठ के घाव को सूखाने में पलाश मदद करता है। पलाश बीज से बने तेल को लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है।

#- मण्डल कुष्ठ -गाय के दूध में उबाले हुए पलाश बीज, गंधक तथा चित्रक को सूखा कर, सूक्ष्म चूर्ण बनाकर, 2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन, 1 मास तक जल के साथ लेने से मण्डल कुष्ठ में अतिशय लाभ होता है।


#- दाद, खाज, खुजली - ढाक के बीजों को नींबू के रस के साथ पीसकर लगाने से दाद और खुजली को ठीक करने में मदद मिलता है।


#- मिरगी दौरें - पलाश की जड़ों को पीसकर 4-5 बूँद नाक में टपकाने से मिर्गी का दौरा बंद हो जाता है।


#- ज्वरदाह - अम्ल द्रव से पलाश-पत्तों को पीस कर लेप करने से दाह तथा जलन में लाभ होता है।

#- शीत ज्वर - ज्वर में यदि ठंडी का आभास हो तो पलाश , तुलसी , अर्ज़क तथा सहजन के पत्तों के कल्क का लेप करना चाहिए ।


#- रक्तपित्त - चार गुना प्लाश स्वरस से पकाये हुऐ गौघृत को 15-25 ग्राम की मात्रा में मधु के साथ सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।


#- रक्तपित्त - पलाश के पत्रवृन्तों के स्वरस एवं कल्क विधिवत गौघृतपाक कर मात्रानुसार , मधु मिलाकर रक्तपित्त में सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

#- रक्तपित्तजन्य रक्तस्राव - 200 ग्राम प्लाश पुष्प कल्क में 400 ग्राम मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ पीने से रक्तपित्तजन्य रक्तस्राव आदि रोगों का स्तम्भन होता है।

#- शोथ - शरीर के किसी अंग में सूजन होने पर उसको कम करने में पलाश का औषधीय गुण मदद करता है। ठंडे जल में पिसे हुए पलाश बीज का लेप करने से सूजन कम होता है।

#- शोथ - –पलाश के फूलों की पुल्टिस बनाकर बाँधने से सूजन बिखरकर सूजन कम जाती है।


#- बाजीकरण - आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि खाने का नियम और ही सोने  का, जिसका सीधा असर कामशक्ति पर पड़ता है। 5-6 बूँद पलाश मूल अर्क को दिन में दो बार सेवन करने से अनैच्छिक वीर्यस्राव रुकता है और कामशक्ति प्रबल होती है।

#- नपुंसकता -2-4 बूँद पलाश बीज तेल को कामेन्द्रिय के ऊपर (सीवन सुपारी छोड़कर) मालिश करने से कुछ ही दिनों में सब प्रकार की नपुंसकता दूर होती है और प्रबल कामशक्ति जागृत होती है।


#- बिच्छुदंश - पलाशबीज का रस गाय के दूध के साथ पीसकर बिच्छू ने जहां पर काटा है उस पर लेप करने से  दर्द के साथ विष का प्रभाव कम होता है।

#- रसायनार्थ - छाया शुष्क 1 चम्मच पलाश पञ्चांग चूर्ण में मधु एवं गौघृत ( मधु एवं गौघृत विषम मात्रा में ) मिलाकर प्रात:काल और सायंकाल सेवन करने से मनुष्य निरोगी और दीर्घायु होता है।

#- रसायनार्थ - एक मास तक सम्भाग पलाश बीज , वायविडंग बीज तथा आँवला के चूर्ण ( 2-4 ग्राम ) गौघृत तथा मधु विषम मात्रा मे मिलाकर सेवन करने से मनुष्य निरोगी तथा दिर्घायु होता है।

#- रसायनार्थ - समभाग गौघृत , आँवला चूर्ण , शर्करा तथा पलाश बीज चूर्ण ( 2-4 ग्राम ) को रात को सोने से पहले खाने से वली , पलित, आदि रोगों का शमन होकर बल एवं बुद्धि की वृद्धि होती है।


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